भारतीय ब्रॉडकास्टिंग एण्ड केबल टीवी इंडस्ट्री में जिस प्रकार से समस्याएँ बढ़कर चरम सीमा तक पहुंच गई हैं, उसी प्रकार से इंडस्ट्री की यह चेतना यात्रा-6 भी खासे संकटाें से गुजर रही है। इससे पूर्व की गई पांचों यात्राओं में कष्ट तो आए लेकिन ऐसे नहीं कि यात्रा के लिए पहाड़ ही बन गए हों। इस बार की यात्रा में तो आरम्भ से ही चुनौतियां मिलनी शुरू हो गई जो अन्त तक साथ-साथ चलीं। बहरहाल गाड़ी में आ रही खराबियों को देखते हुए यही निर्णय करना पड़ा कि अपनी गाड़ी को नागपुर में ही छोड़कर दूसरी गाड़ी से आगे की यात्रा को सुचारू रखा जाए। गाड़ी ठीक हो जाने के बाद नागपुर के सहयोगी गाड़ी लेकर 22 अक्टूबर को मुम्बई ले आएंगे, तभी यात्रा भी मुम्बई पहुंचेगी। दूसरी इनोवा गाड़ी को भी यात्रा के नए स्टीकर्स से चेतना यात्रा वाहन बनाकर यात्रा आगे बढ़ी। नागपुर में दशहरा महोत्सव के हर्षोल्लास में चहुंओर गरबा की धूम मची हुई थी। गरबे महोत्सव में यात्रा का गर्मजोशी के साथ स्वागत सत्कार हुआ। नागपुर के भिन्न एम-एस-ओ के साथ खुलकर क्वालिटी सर्टिफिकेशन प्रतिक्रया एवं इंडस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर खुलकर चर्चाएं हुई ।
नागपुर के ही एम-एस-ओ यू-सी-एन द्वारा भारत सरकार से सर्टिफिकेशन के लिए अप्लाई किया गया है जिसका ऑडिट बेसिल द्वारा किया जा रहा है, इसी सन्दर्भ में यू-सी-एन के डायरेक्टर्स से अलग-अलग यह जानकारी ली गई कि सरकारी सर्टिपिफ़केशन की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी—\ इसके लिए मांगा गया शुल्क पांच लाख रूपए क्या उचित है\ एवं बेसिल द्वारा किए जा रहे ऑडिट से उन्हें क्या हांसिल हुआ\ नागपुर के एक एम-एस-ओ- यू-सीएन के डायरेक्टर्स से मिले जबाब बहुत ही पॉजीटिव थे। उन्हाेंने बताया कि स्वयं को सच की कसौटी पर जांचने-परखने के लिए भारत में यही एक मात्र उपाय है, इसीलिए हमने भी अपने नैटवर्क के लिए सरकार को पांच लाख रूपए पफ़ीस जमा करवाकर ऑडिट की मांग की। नैटवर्क पर करोड़ों रूपया लगा हो तब सरकारी पफ़ीस पांच लाख ज्यादा नहीं है। बेसिल द्वारा किए गए पहले ही विजिट में हमे अपने नैटवर्क का वह आईना दिखाई दे गया, जिसके बारे में हमें कुछ ज्ञाान ही नहीं था। अपनी खामियां जानने को मिलीं और उनमें सुधार का मार्गदर्शन भी दिया गया। यू-सी-एन को पूर्णतया सन्तुष्ट पाकर हमारा वह भ्रम भी दूर हो गया, जोकि ट्राई की बैठको में उठा था, यू-सी-एन के आई-सी-सी- पूना के डायरेक्टर्स ने भी बेसिल सर्टिपिफ़केशन पर बहुत सकारात्मक उत्तर दिया। लेकिन हां आश्चर्यजनक पहलू यह है कि सम्पूर्ण भारत से मात्र पांच नैटवर्क द्वारा ही बेसिल सर्टिपिफ़केशन के लिए आवेदन किया गया है, जिनमें से ओरटैल (भुवनेश्वर उड़ीसा) आई-सी-सी- (पुणे) को उनके नैटवर्क का क्वालिटी सर्टिपिफ़केट जारी हो चुका है जबकि यू-सी-एन (नागपुर), (चैन्नई) व (बंगलौर) की ऑडिट प्रक्रिया अभी जारी है।
नागपुर से आगे के पूर्व निर्धारित रूट में भी परिवर्तन किया गया, अब यात्रा भण्डारा के रास्ते राजनंद गांव-दुर्ग-भिलाई होते रायपुर पहुंची। इसी दरमियान विजय दशमी त्यौहार की तैयारियां भी सभी जगह देखने को मिल रही हैं। अष्टमी होने के कारण ऑपरेटर भी हवन-पूजा में व्यस्त हैं अतः उनके साथ बैठकें अथवा ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग कार्य को रफ्रतार नहीं मिल पा रही है। त्यौहार के माहौल में सभी की अतिव्यस्तता एवं समय की कमी को देखते हुए यात्रा छत्तीसगढ से आन्धप्रदेश की ओर बढ़ी। रायपुर से धमतरी पहुंच ऑपरेटरों का गर्मजोशी के साथ स्वागत सत्कार मिला, जबकि सारे रास्ते बारिस होती रही एवं जगह-जगह नवमी के कार्यक्रमों में व्यस्त दिखाई दे रहे थे लोग। धमतरी से कांकेर होते हुए कोड़ागांव पहुंची यात्रा। यह पूरा क्षेत्र नक्सलवादियों की बैल्ट के रूप में विख्यात है। यहां की भौगोलिक स्थिति भी नक्सलवादियों के लिए पूर्णतया मददगार है। कोण्डागांव से सिवनीगुड़ा बस्तर होते हुए जगदल पहुंच गई यात्रा। जगदलपुर में डीजी का नैटवर्क है जानकर आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह क्षेत्र एक तो पूरी तरह से नक्सलवादियों से घिरा हुआ है, दूसरे बिल्कुल उड़ीसा की बार्डर लाइन पर है। उड़ीसा में ओरटैल का लगभग एकछत्र राज है लेकिन ओरटैल भी अब पड़ोसी राज्यों में अपना नैटवर्क बढ़ाने में लगा हुआ है। छत्तीसगढ़ में रायपुर डीजी -ओरटैल कम्प्टीशन से ग्रस्त है ही, यही कम्प्टीशन जगदलपुर में भी देखने को मिल सकता है।
बहरहाल, जगदलपुर में एक रात पड़ाव कर अगली सुबह आन्ध्र की ओर बढ़ी यात्रा। हालांकि अगले ही दिन विजय दशमी (दशहरा) होने के कारण जगदलपुर में एक बड़े मेले का आयोजन हमारे कदम रोक रहा था, लेकिन समयाभाव के कारण यात्रा को एक अतिरिक्त दिन नहीं रोका जा सका परन्तु मेले का आकर्षण हमें बार-बार रूकने के लिए ललचा रहा था। जगदलपुर में विजय दशमी के अवसर पर लगने वाले मेले में विशिष्ट आकर्षण उस मेले में आने वाले आदिवासी की पारंपरिक वेशभूषा श्रृंगार आदि होता है। भारी संख्या में यहां आदिवासी इस अवसर पर इकट्ठे होते हैं। मेले का मोह छोड़ आन्ध्रा की ओर बढ़ती यात्रा जगदलपुर से आगे डोबी-सुकमा-कोणा होते हुए मद्राचलम (आन्ध्रप्रदेश) पहुंची यात्रा। यह पूरा मार्ग पूर्णतया बीहड-जंगल और नक्सलवादी गढ़ के रूप में जाना जाता है। विजयदशमी पर्व की तैयारियां आन्ध्रा में भी जोर-शोर के साथ चल रही थीं। आन्ध्रा के ऑपरेटर भी विजयदशमी की तैयारियों में व्यस्त दिखाई दिए, क्योंकि दशहरा आन्ध्रप्रदेश के लिए भी एक बड़ा पर्व होता है। दशहरा पर यहां विशिष्ट पूजन-हवन करते हैं। सभी वाहनों को केले के पत्तों व पफ़ूलों से सजाया जाता है व व्यवसायिक परिसरों में विशेष हवन-पूजन कर नारियल पफ़ोड़े जाते हैं।
भद्राचलम के रास्ते छोटे-छोटे गांवों से गुजरते हुए यात्रा विजयवाडा पहुंची। विजयवाड़ा पहुंचते-पहुंचते रात का अंधेरा कुछ ज्यादा ही गहरा गया, तिस पर विजय दशमी। ठहरने के लिए एक ठीक-ठाक सा होटल तो किसी तरह मिल गया लेकिन खाने के लिए कुछ भी मिल पाना कठिन हो गया, जबकि भूख भी अच्छी-खासी लगी हुई थी, क्योंकि सुबह जगदलपुर से ही चलते समय जो नाश्ता करके चले थे वह भी जंगल के बीहड़ों में सफर के दौरान पूरी तरह से हजम हो चुका था। विजयवाडा रैलवे स्टेशन से खाना मिला तब कहीं रात ठीक से कट पाई अगले दिन चहुंओर विजय दशमी की रौनक थी, ऑपरेटरो से मिल पाना या पिफ़र ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग पर कोई प्रोग्राम कर पाना यहां सम्भव नहीं था अतः यात्रा सीधे चैन्नई के लिए रवाना हो गई, क्योंकि चैन्नई के ऑपरेटरों से दशहरा से अगले दिन मीटिंग तय हो गई थी। विजयवाड़ा से चैन्नई हाईवे बहुत ही बेहतरीन है अतः लम्बा सपफ़र समय से नाप लिया गया।
चैन्नई में किशोर भाई के साथ-साथ अन्य ऑपरेटरों व चैनल डिस्ट्रीब्यूटर्स से मीटिंग आदि से निबट कर यात्रा अगले पड़ाव की ओर बढ़ चली। चैन्नई में तमिलनाडु केबल टीवी ऑपरेटर के साथ बैठक नहीं हो सकी क्योंकि वह सभी चैन्नई से बाहर थे। चैन्नई से कांचीपुरम वैल्लोर होते हुए कृष्णागिरी पहुंची यात्रा। रास्ते में ऑपरेटरों द्वारा यात्रा का गर्मजोशी से स्वागत, सत्कार किया जाता रहा, इसी मार्ग से होसूर होते हुए बंगलौर पहुंच गई यात्रा। बंगलौर में यात्रा का बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ। रात्रि विश्राम महाबलेश्वर क्लब में हुआ वहीं ऑपरेटरों के साथ बड़ी बैठक भी हुई। अगले दिन बगंलौर में ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग का संदेश देते हुए यात्रा आगे बढ़ी। बंगलौर ,बेल्लूरू, हसन, सक्लेशपुर के रास्ते मंगलौर पहुंची यात्रा। मंगलौर में भाई कीनी ने परिवार सहित यात्रा का गर्मजोशी से स्वागत किया। यात्रा आगे बढ़ती रही, उडूपी, माल्पे बीच होते हुए भटकल के ज्वैल रिसोर्ट पहुंच कर रात्रि विश्राम किया। ज्वैल रिसोर्ट से मात्र 5-6 किमी- नजदीक ही वह स्थान है जहां दूर तक एक तरपफ़ उछालें मारता समुन्द्र है तो दूसरी ओर शान्ति के साथ बहती नदी स्थित है। दोनों के बीच एक्सप्रैस हाईवे पर ड्राईविंग का आनन्द अद्भुद होता है। रिसोर्ट से रवाना होकर कुछ दूर समुन्द्र की उफनती लहरों के सम्मुख चुपचाप बह रही नदी को निहारना बहुत ख्ुाबसूरत लगता है।
यात्रा गोवा की ओर बढ़ते हुए मुरदेशवाडा, कुमठा, अंकोला कारवाड़ शहरों से गुजरी। गोवा में मडगांव होते हुए सीधे पणजी पहुंचकर सर्वप्रथम वहां बी-सी-एस- रत्ना अवॉर्ड के लिए वैन्यु देखने का काम किया। कई वैन्यु में से सबसे श्रेष्ठ वैन्यु पणजी की कला-अकादमी ही लगी, जिसे इत्त्ेापफ़ाकन वहां के अकादमी के वाइस चैयरमैन से भेंट हो जाने के कारण उनके निर्देश पर अच्छी तरह से दिखला दी गई।

गोवा की कला अकादमी बी-सी-एस- रत्ना अवार्ड 2011 के लिए पूरी तरह से बेहतर वैन्यु है। इस वैन्यु को बुक करने की प्रक्रिया बाद में शुरू की जाएगी। गोवा में स्थानीय सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बहुतायत में आयोजित होते हैं। गोवा से यात्रा आगे बढ़ी, सावंतवाडी होते हुए कुडाल से आगे निकल कर गंगोह रिसोर्ट में रात्रि विश्राम किया। यात्रा के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 22 अक्टूबर को यात्रा ने मुम्बई होना था अतः कुडाल गंगोई रिसोर्ट से पफ़ोण्डा के रास्ते कोल्हापुर-कराड-सतारा होते हुए पूना पहुंची यात्रा।
पूना में आई-सी-सी-नैटवर्क का निरीक्षण कर उनके डायरेक्टर्स एजाज ईनामदार एवं रज्जाक भाई के साथ लम्बी गुफ्रतगू कर यात्रा मुम्बई की ओर बढ़ चली। आई-सी-सी– पूने का नैटवर्क देखे बिना इस नैटवर्क की तारीपफ़ बेमानी सी लगती है, लेकिन इसे बारीकी से देखने के बाद आप इसे देश का नम्बर वन नैटवर्क कह सकते हैं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि आई सी-सी- टोटली डायरेक्ट प्वाइंट पर चल रहा है, यह एल-सी-ओ पर निर्भर नहीं है। यहां की क्वालिटी के कारण ही ग्राहक पेमेंट भी सम्मान के साथ करते हैं। देश में केबल टीवी का सबसे अधिक सब्स्क्रिप्शन यहीं लिया जाता है, 250/- रूपये ही सब्स्क्राईबर से ले सकते हैं ऑपरेटर को निगल पाना आई-सी-सी के लिए बहुत कठिन होगा। इसी नैटवर्क द्वारा कॉमनवेल्थ गेम्स के प्रसारण को हाईडेफिनिशन (भ्क्) पर प्रसारित किया गया।
रज्जाकभाई से लम्बी गुफ्रतगू के बाद यात्रा सीधे मुम्बई के लिए रवाना हो गई। मुम्बई पहुंचते-पहुंचते आधी रात बीत गई, लेकिन समयानुसार मुम्बई पहुंच ही गई यात्रा। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन मुम्बई की स्केट प्रदशिर््ानी में पहुंच कर तमाम ऑपरेटरों से भेंट मंत्रणा चलती रही। सभी को गो ग्रीन, व गो डिजीटल का सन्देश देते-देते सुबह से शाम हो गई। दोनों वाहन प्रदर्शिनी वैन्यु के बाहर खड़े विशेष आकर्षण बने हुए थे, बार-बार जमा होती ऑपरेटरों की भीड़ वहां सबका ध्यान खींच रही थी। इंडस्ट्री की भावी सम्भावनाओं के साथ-साथ ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग के सही मायनों पर भी सारे दिन चर्चा होती रहीं, तत्पश्चात रात्रि विश्राम के लिए होटल पहुंचे। होटल पहुंच कर नागपुर से किराए पर ली गई गाड़ी का हिसाब-किताब निबटा कर उसे विदा किया और अपनी गाड़ी जो नागपुर से ठीक हो कर आई थी उसमें सारा सामान सैट किया।
मुम्बई में केबल टीवी पर स्कैट प्रदर्शिनी के अलावा एक प्रदर्शिनी ब्रॉडकास्टिंग पर भी गोरेगांव में प्रदर्शिनी मैदान में चल रही थी अतः उसको भी विजिट किया। मुम्बई में दिल्ली से पहुंचा शंकर भी साथ रहा एव प्रदर्शिनी में संजीव टण्डन। दोनाें ही प्रदशर्नियां ठीक-ठाक थीं, रेला-पेला भी दोनों ही प्रदशर्नियों में ठीक था, सबसे मिल-मिला कर मुम्बई से आगे बढ़ी यात्रा। कई दिनों बाद पिफ़र से अपनी गाड़ी में थे हम, लेकिन गाड़ी अभी भी पूरी तरह से पिफ़ट नहीं थी। नागपुर से ठीक होकर गाड़ी किसी तरह से मुम्बई तक तो पहुंच गई लेकिन मुम्बई से यह दिल्ली तक की यात्रा भी कर पाएगी इसका पूरा यकीन नहीं हो पा रहा था। गाड़ी में सबसे बड़ी परेशानी थी कि चलते हुए गर्म हुई गाड़ी को यदि बन्द कर दिया गया तब वह बिना ठण्डे हुए स्टार्ट नहीं होगी। ठण्डा होने के लिए गाड़ी को समय देना होगा अन्यथा धक्के मारकर उसे स्टार्ट किया जा सकता है। यह प्रोब्लम कहां से है इस पर हर किसी की राय अलग-अलग हैं। दूसरी समस्या यह है कि बोनट खोलने पर सीधे-सीधे कहीं से इंजन आयल जैसा कुछ लीकेज होने के निशान दिखाई दे रहे हैं। यह लीकेज कहां से है या पिफ़र इसी लीकेज के कारण ही तो नहीं हो रही है स्टार्टिंग की प्रॉब्लम यह जांच का विषय है।
इन्हीं हालातों में मुम्बई से नासिक के लिए बढ़ चली यात्रा। नासिक पहुंच कर सीधे-सीधे मैकेनिक को दिखलाने पर उसने स्टार्टिंग समस्या के लिए सैल्पफ़ खोल कर सर्विस कर लगा दिया, जबकि ऑयल लीकेज की प्रोब्लम नासिक में ठीक नहीं हो सकी, लेकिन रिसे हुए ऑयल को सापफ़ करने के लिए गाड़ी की सर्विस (धुलाई) करवा ली गई। रात्रि विश्राम नासिक में कर अगले दिन महाराष्ट्र से गुजरात का सपफ़र शुरू हुआ। नासिक के ऑपरेटरों के साथ मुम्बईं में ही मीटिंग हो चुकी थी एवं धुले के ऑपरेटरों से भी मुम्बई में ही भेंट हो चुकी थी, इसीलिए नासिक से सापू तारा होते हुए सूरत की ओर बढ़ी यात्रा। सूरत में भरत भाई आज ही अस्पताल से वापिस घर पहुंचे हैं अतः यात्रा सीधे बड़ोदरा के लिए आगे बढ़ गई जहां जीटीपीएल के डायरेक्टर कनक सिंह रणा (बापूभाई) यात्रा की प्रतीक्षा कर रहे थे। बड़ोदरा में रात्रि विश्राम के बाद सुबह बापू भाई के साथ गो ग्रीन व गो डिजीटल पर लम्बी बैठक के बाद दर्शकाें के लिए ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग पर संदेश रिकॉर्ड करवा कर यात्रा बड़ोदरा से आगे की यात्रा के लिए बढ़ चली।
टोयोटा की वर्कशॉप बड़ोदरा में भी थी अतः गाड़ी को पिफ़र एक बार टोयोटा वर्कशॉप भेजा गया, लेकिन उनका वही पुराना रवैया कि छोड़ जाओ शाम को मिलेगी, के कारण वापिस आ गई। गाड़ी में ऑयल लीकेज प्रोब्लम निबटाने के लिए जो सामान चाहिए था वह बामुश्किल सिफारिशी पफ़ोन करवाकर उनसे खरीद कर यात्रा आगे बढ़ चली। बड़ोदरा से तारापुर, नाडियाद के रास्ते यात्रा भावनगर पहुंच गई, जहां एक अच्छी वर्कशॉप में गाड़ी ठीक करने के लिए दी गई। भावनगर का ऑपरेटर सुरेश तिवारी स्वयं सूरत रवानगी पर था लेकिन हमारा पूरा प्रबन्ध कर वह अपनी यात्रा पर गया। भावनगर की वर्कशॉप रात में भी काम करती है, अतः अपनी गाड़ी की ऑयल लीकेज प्रोब्लम का काम रात में ही निबटा दिया गया। रात्रि विश्राम भावनगर में ही कर सुबह वर्कशॉप से गाड़ी लेकर आगे की यात्रा शुरू की।
भावनगर से सीधे सासन गीर के वन हमारा पड़ाव था, जहां भारत का प्रतीक सिंह (शेर) निर्भय होकर विचरण करते हैं। वहां के ऑपरेटर जितेन्द्र कुमार से हम बराबर सम्पर्क में रहे। गीर के निकट ही तलाला गांव में ऑपरेटर का नैटवर्क है। जितेन्दर हमारे स्वागत में सासनगीर पहुंच चुका था। सासनगीर के फारेस्ट रैस्ट हाऊस श्रीनाथ में यात्रा का पड़ाव हुआ। गिरीवन के क्षेत्र में केबल टीवी आपरेटरों को अलर्ट किया जा चुका था कि कहीं भी लायन की गतिविधि की जानकारी मिले तो सूचित किया जाए, अतः लायन द्वारा एक गांव की बाहरी सड़क पर ही बैल किल करने की सूचना आ चुकी थी। श्री नाथ पफ़ारेस्ट रैस्ट हाऊस में पड़ाव कर खानादि खाकर हम उस स्पॉट पर पहुंचे जहां लायन ने किल किया हुआ था। थोड़ी देर संयम के साथ प्रतीक्षा करने पर लायन को किल खाते हुए हमें कैमरे में कैद करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एशिया में सिर्फ भारत में ही लायन होते हैं, जिनके लिए गिरीवन बहुत ही सुरक्षित स्थान हैं, इनकी संख्या भी यहां लगातार बढ़ रही है, क्योंकि गिरी पफ़ारेस्ट के लोग यहां के निवासियों के साथ लगातार सम्पर्क बनाए रखते हैं और उन्हें जल-जंगल और वन्य जीवों के प्रति शिक्षित करते रहते हैं। गिरीवन के तमाम गार्ड्स व कर्मचारियों के साथ हुई हमारी लम्बी बातचीत से ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग के अंतर्गत ग्लोबल वार्मिंग के प्रति चलाए जा रहे अभियान में उन सबने सहयोगी बनने की सहमति दी।
गिरीवन के शेर विश्वभर के पशु प्रेमियों को गुजरात आने के लिए आकर्षित करते हैं। शेर यहां के निवासियों के साथ बहुत ही फैमिलिया हो चुके हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि यहां के निवासियों के लिए भी यह शेर उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गए हैं। यहां यह जान कर आश्चर्य हुआ कि इन शेराेें ने कभी इन्सानों पर हमला नहीं किया। इन्सानों से यहां के शेर निडर होकर गिरीवन में विचरण करते हैं, जबकि इन्सान भी इन शेरों से कुछ दूरी बनाए रखते हैं। वैसे पेट भरे शेराें को इस जंगल में अक्सर आराम करते हुए देखा जा सकता है। परिवार में रहने वाले इन सिंहों को देखते हुए भय नहीं लगता है, जबकि टाईगर को देखने में भय भी साथ होता है। गुजरात के क्षेत्र के एक ओर समुन्द्र है एवं सोमनाथ मन्दिर और कृष्ण की द्वारिका भी यहीं है। यही दीव का खूबसूरत समुन्द्र भी सैलानियों को आकर्षित करता है। इस क्षेत्र में सोयाबीन और कपास भारी मात्र में होती है। एवं आम की भी यहां उम्दा पफ़सल होती है। यहां के केसर, आम की मांग विश्वभर में है।

गिरीवन में सिंहों के साथ-साथ यहां की अपफ़्रीकन प्रजाति भी भारत में सिपफ़र् यहीं पर है। कहा जाता है कि अंग्रेजों के राज में रेलवे लाईन बिछाने के लिए अपफ़्रीका से कुछ लोगों को यहां लाया गया था तब से वह लोग यहीं बस गए हैं। उनकी अगली पीढ़ियां भी यहां के लोगों और समाज के साथ-साथ बसर कर रही हैं। वह अब गुजराती भाषा भी बोलने लगे हैं। उनके बच्चों को यहां शिक्षा भी दी जा रही है। उनकी वेशभूषा-सभ्यता, संस्कृति एवं रहन-सहन भी गीर पहुंचने वालों के लिए आकर्षण होता है, अतः विशेष तौर पर हमने उनके गांव व घरों का दौरा किया और पिफ़र उनके परम्परागत डांस को भी कैमरे में कैद किया। इस प्रकार ‘टू नाइट इन गिरीवन’ में हमने कापफ़ी कुछ बटोर लिया। गिरी पफ़ारेस्ट द्वारा बनाई गई लायन से वापिसी में विजिट की, जहां पशु अस्पताल भी बनाया हुआ। मीलों वर्ग क्षेत्र में पफ़ैली इस सैंचुरी में जानवरों को प्राकृतिक वातावरण मिलता है। यहां लायन और नील गाय हिरण आदि सभी प्राकृतिक वातावरण में विचरण करते हैं। इसी सेन्चुरी में यहां आने वाले स्कूली छात्रें एवं क्षेत्रीय निवासियों को भी वाइल्ड लाइपफ़ के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता है।
गिरीवन से स्मृतियां समेटते हुए यात्रा सीधे अहमदाबाद पहुंची। अहमदाबाद में जीटीपीएल (एम-एस-ओ-) का आतिथ्य ग्रहण कर अगले दिन उदयपुर के लिए रवाना हो गई यात्रा। गुजरात के अधिकांश क्षेत्रें में जीटीपीएल का ही प्रसारण नैटवर्क है, अतः गो ग्रीन-गो डिजिटल का संदेश रिकॉर्ड करवा कर यात्रा ने राजस्थान में प्रवेश किया। अहमदाबाद से उदयपुर हाईवे बहुत अच्छा मिला इसलिए समय से ही उदयपुर पहुंच गई यात्रा, लेकिन वहां के ऑपरेटरों से भेंट अगले दिन ही हो सकी। चैनल डिस्ट्रीब्यूटर एवं ऑपरेटरों के साथ बैठक के बाद यात्रा सीधे जयपुर पहुंची। राजस्थान में दीपावली की विशेष तैयारियां दिखाई दीं। बाजार में विशेष सजावट और बिजली की रोशनी में सारे शहर जगमग हो रहे थे। रात्रि विश्राम जयपुर में कर अगले दिन अर्थात पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार 31 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंच गई यात्रा। इस प्रकार 5 सितम्बर को दिल्ली से आरम्भ होकर पचपन दिनों बाद 31 अक्टूबर को सारे देश में गो ग्रीन व गो डिजीटल का सन्देश देते हुए ‘ग्रीन ब्रॉडकास्टिंग चेतना यात्रा-6’ सकुशल वापिस दिल्ली पहुंची। दिल्ली में भारी स्वागत-सत्कार के लिए लोग उमड़ पड़े, सभी ने यात्रा की सफलता पर बधाईयां दीं।
इस प्रकार ब्रॉडकास्टिंग एण्ड केबल टीवी इंडस्ट्री की सहभागिता में पृथ्वी के बढ़ते जा रहे तापमान एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए लोगों को जागरूक करने का एक और अभियान सपफ़लता पूर्वक सम्पन्न हो गया, लेकिन अभियान निरन्तर जारी रहेगा, यह तो छठीं यात्रा का बस एक पड़ाव हुआ है। इस अभियान में जितना भी किया जा सके वह कम है। जरूरत समूची मानव जाति को ऐसे अभियान में जुट जाने की है। अपने और अपनाें के लिए ही जीने वालों को आने वाली पीढ़ियों के बारे में भी अब ऐसा ही कुछ करना चाहिए अन्यथा यदि उन्हें स्वस्थ वातावरण ही ना मिल सका तब आज का किया धरा उनके किस काम आएगा—\ जरा सोचिए– एवं प्रतीक्षा कीजिए अगले वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में की जाने वाली चेतना यात्रा-7 की!!