पर्यावरण एवं प्रदूषण
प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक की थैलियों का भी बड़ा हाथ है। इसके खतरे के मद्देनजर सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग वर्जित कर दिया है। लेकिन पिफ़र भी इनका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। दुकानों एवं आम जगह पर यह तो लिखा मिलता है-‘प्लास्टिक की थैलियां वर्जित हैं, कृपया अपना थैला लाएं, लेकिन इस पर अमल होता बहुत कम दिखता है। उपभोक्ता, ग्राहक घर से अपना थैला ले जाना जैसे चाहते नहीं। यदि वे अपना थैला घर से लाएं, तो इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
हालांकि बहुत से दुकानदारों ने जूट एवं कपड़ों से बने थैलों का प्रयोग कर, सराहनीय काम किया है। लोग इस तरह की समस्याओं का खुद हल निकाल सकते हैं। इसके अलावा वे अपने घरों के गीले एवं सूखे कूड़े को अलग-अलग करके भी प्रदूषण को रोक सकते हैं। जैसे खाली बोतलें, जूस के डिब्बे, आदि को वे अलग रख सकते हैं। इसके अलावा पफ़लों के छिलके, बचा हुआ खाना आदि को अलग कर, घर के पास एवं पेड़-पौधों के नजदीक गड्ढा बनाकर उनमें डाल सकते हैं। यह पेड़-पौधों में खाद का काम होगा। जबकि सूखे कूड़े वा कबाड़ आदि को बेचकर उसे पुनः रिसाइकिल किया जा सकता है।
ऐसे ही रिसाइकिल कचराें से बेंगलुरू में कई सड़कों का निर्माण किया गया है। यह अपने आप में एक अच्छा प्रयास है। वह कूड़ा जो प्रकृति को दूषित करता, उससे सड़क का निर्माण, सुनने वालों को अजीब लग सकता है, लेकिन यह बिल्कुल सच है। इसी तरह देश के अन्य हिस्सों में भी प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए उपभोक्ताओं को जागरूकता दिखानी होगी। गीले एवं सूखे कूड़ों को अलग रखना होगा। इससे पर्यावरण की सुंदरता भी बढे़गी, स्वच्छता भी। बहरहाल इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति प्रकृति से कैसे कटता जा रहा है, पर्यावरण प्रदूषण इसकी एक मिसाल है। जहां साफ जगह दिखी वहां प्लास्टिक की थैलियां पफ़ेंक दीं, सड़कों पर चलते समय थूकना जैसे इंसान की आदत ही बन गयी है। इस पर ‘सु-सु कुमारों’ ने पर्यावरण को प्रदूषित करने में जरा भी कसर नहीं छोड़ी। दिल्ली हो या मुंबई, कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक देश में लोग इसी तरह प्रदूषण पफ़ैला रहे हैं।
दिल्ली जो कि देश की राजधानी भी है यहां का आलम तो और भी बुरा है। जल्द ही राष्ट्रमंडल खेल भी होने वाले हैं, जगह-जगह उठती बदबू, दुर्गंध, क्या तस्वीर पेश करेंगी हमारे दिल्ली की विदेशी पर्यटकों के सामने। हमें इस बात को गहराई से सोचना चाहिए कि ‘स्वच्छ दिल्ली’ विदेशी मेहमानों के दिलों में यहां से उनकी रूखसती के समय अच्छी यादें समेटेगी। लेकिन यदि उन्हें दिल्ली की सड़कों पर गन्दगी, खस्ता हाल सड़कें, दिखाई देंगी, तो यह न हमारे लिए अच्छा होगा और न ही देश के लिए।
इसके साथ-साथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि दिल्ली में पर्यावरण के प्रदूषण का एक प्रमुख कारण यहां सडकों पर बढ़ते वाहन भी हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण को बढ़ावा देता है, वहीं वाहनों का शोर, इंजन की आवाज ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती है, हमें इन सब पर लगाम लगाना होगा। इसके लिए सबसे जरूरी बात यह हो कि निजी वाहनों की तुलना में बस इत्यादि पर सपफ़र करें। ताकि सड़कों पर वाहनों की लम्बी कतारें लगने सेे बचे। इसके अलावा मैट्रो की सवारी भी प्रदूषण को कम करती है। हालांकि यह कहने में जितनी आसान है, अमल करने में उतना ही मुश्किल लेकिन एक कोशिश करने में क्या बुराई है। यूं भी कहते हैं न यदि आपने स्वयं को सुधार लिया, तो समझो सब सुधर गये। बस जरूरत है तो एक पहल करने की।
आज जिस तेजी से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा है, उससे लोगों को सचेत रहना होगा। इसे रोकने के लिए आप सभी मुख्य भूमिकाएं निभा सकते हैं। इसके लिए आप अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, अपने आस-पास सापफ़-सपफ़ाई का विशेष ध्यान रखें। जहां तक संभव हो निजी वाहनों की तुलना में सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। बिजली कम खर्च करने वाले (स्टार माकई) उत्पाद खरीदें। देश में बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग एवं ई-वेस्ट कचरा निदान के प्रति आविष्कार परिवार के मुखिया डा-ए-के- रस्तागी चेतना यात्रा -6 के जरिए आप लोगों के बीच हैं। 5 सितम्बर से 31 अक्टूबर तक चलने वाली इस यात्र में डा- रस्तोगी देश के समस्त केबल ऑपरेटरों, एमएसओ, ब्रॉडकास्टरों, उपभोक्ताओं, आदि को ग्लोबल वार्मिंग एवं ई-वेस्ट कचरा निदान के प्रति सचेत कर रहे हैं। इस यात्र में लोगों से पर्यावरण को हरा-भरा बनाये रखने के लिए शपथ ली जा रही है, पौधे लगाये जा रहे हैं, एवं जरूरी जानकारियां दी जा रही है।