देश के गांव-गांव तक पहुंच कर लोगों को पर्यावरण की रक्षा करने का संदेश देना यूं तो सरल कार्य नहीं है, लेकिन जब मालूम हो कि देश के हरेक कोने में केबल टीवी ऑपरेटर भी अवश्य मिलेगा, उत्साह बढ़ाता है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए केबल टीवी ऑपरेटर भला क्याें इन्कार करेगा, हरेक ऑपरेटर ऐसे अभियान में अपना योगदान कर गर्व महसूस करता है। यही कारण है कि एक-दो नहीं बल्कि हर वर्ष लगातार की जाने वाली चेतना यात्रा की यह सातवीं कड़ी है। 5 सितम्बर को देश की राजधानी दिल्ली से आरम्भ होकर हरियाणा-पंजाब-जम्मू व कश्मीर, हिमाचल, चण्डीगढ़, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, वैस्ट बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, गोवा, होते हुए मुम्बई पहुंच चुकी है यात्रा।

मुम्बई की चमक-धमक के आकर्षण में लोग स्वयं खिंचे आते हैं। यहां उत्तरी भारत की तरह से आवभगत कम ही देखने को मिलती है। भाग-दौड़ में अधिक व्यस्त दिखते हैं यहां के लोग, लेकिन सीधी और खरी बात कहने में मुम्बई का जवाब नहीं। ग्लोबल वार्मिंग के प्रति, अच्छी जागरूकता भी है, वैसे भी सामाजिक चेतना मुम्बई वासियों की जैसे सभ्यता में ही समाया हुआ है। इसीलिए लोग जहां भी जरूरत हो स्वयं व्यवस्था निर्माण कर लेते हैं। महानगरी मुम्बई देश की फिल्म नगरी के साथ-साथ कमर्शियल राजधानी भी कहलाती है। देश के, नामचीन रईसों का बसेरा भी फिल्म नगरी के साथ-साथ यहीं है। महिलाएं यहां देश की राजधानी दिल्ली के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित हैं।

वैसे तो आपराधिक गतिविधियां देश के हरेक शहर में ही होती रहती है, लेकिन मुम्बई लोकल हो या फिर कोई अन्य सार्वजनिक स्थान गर कोई जेबकतरा या झपटमार पकड़ा गया तब उसकी पिटाई भी उतनी ही सार्वजनिक होती है। मुम्बई वासी अभी भी पूर्णतया संवेदनशील हैं जबकि दिल्ली के हालातों को देखकर तो यही लगता है कि दिल्ली वासियों की संवेदनशीलता शायद लुप्त ही हो गई है तभी तो दिल्ली में खुले आम अपराध होते हैं। मैट्रो हो या कोई भी लोकल एरिया कहीं भी किसी भी महिला से बदतमीजी की जाती है या फिर उसकी ज्यूलरी छीन ली जाती है या जेब काट ली जाए या मोबाइल छीन लिया जाए या फिर किसी भी चौराहै रैडलाईट पर रूकी कार में से बैग उड़ा लिया जाए, चाकू मार दिया जाए आदि सामान्य सी घटनाएं बनकर रह गई हैं। बहरहाल!

मुम्बई महानगर में चेतना यात्रा का गर्म जोशी के साथ स्वागत करने के लिए भिन्न शहरों से भारी संख्या में से ऑपरेटर वहां लगी एक प्रदर्शनी के बाहर इकट्ठे हुए थे। इन ऑपरेटरों के मुम्बई आकर भारी संख्या में मिलने का एक कारण यह भी रहा कि केबल टीवी के डिजीटिलाइजेशन पर केन्द्रीय सरकार द्वारा आर्डिनेंस जारी कर दिया गया है। यह आर्डिनेंस केबल टीवी में एनालाग टेक्नोलॉजी को खत्म कर पूर्णतया डिजीटल टेक्नोलॉजी पर ले जाने के लिए है। इस आर्डिनेंस के कारण भारतीय ब्रॉडकास्टिंग एण्ड केबल टीवी में नई सम्भावनाओं के मार्ग खुलने है। इसका देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों पर क्या प्रभाव पडे़गा, एवं इसके लिए उन्हें कैसी तैयारियां करनी चाहिए, यही जानने के लिए मुम्बई में केबल टीवी ऑपरेटरों का जमावड़ा लगा है। साथ ही साथ ट्रेड एक्जीबिशन भी उनका आकर्षण बना।

गुजरात-महाराष्ट्र, केरल, गोवा, आन्ध्र प्रदेश सहित राजस्थान से पहुंचे ऑपरेटरों से भी यहां आर्डिनेंस को लेकर इण्डस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर सारे दिन विस्तृत चर्चा हुई। व्यावसायिक चर्चा के साथ-साथ केबल ऑपरेटराें को सामाजिक कार्याें में भी, भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ग्लोबल वार्मिंग के प्रति आम लोगों को जागरूक करने के लिए ऑपरेटर अपने नैटवर्क का इस्तेमाल करें, इसी के साथ-साथ भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण में भी उन्हें, अपना दायित्व निर्वाह करना चाहिए, का सन्देश देकर मुम्बई स्थित भिन्न चैनलों के दफ्रतरों में यात्रा पहुंची।

चैनल वालों (ब्रॉडकास्टर्स) के साथ-साथ भिन्न एम-एस-ओ- से भी आर्डिनेंस पर उनके नजारे को जानने की कोशिश की गई। मीडिया प्रोन्वन अलाईन्स- फूड-फूड, सहारा, संस्कार आदि चैनल प्रमुखों के साथ आर्डिनेंस पर विस्तृत चर्चा के साथ चेतना यात्रा की सफलता की ढेरों शुभकामनाएं साथ लिए यात्रा मुम्बई स्थित प्रमुख एम-एस-ओ हिन्दुजा समूह के इन केबल प्रमुख नागेश छाबड़िया का आर्डिनेंस पर विचार जानने के लिए पहुंची, वहां गर्म जोशी के साथ यात्रा का भव्य स्वागत छाबड़िया सहित, वहां पहुंचे ऑपरेटरों ने भी किया। उन्हीं ऑपरेटरों में से नोएडा से रूक्कू भाई एवं देहरादून के आर-के- बहल भी शामिल थे। ऑपरेटरों में आन्ध्र से आए ऑपरेटर भी यात्रा के स्वागत में शामिल थे।

इन केबल से शुभकामनाएं लिए यात्रा डी-जी- केबल पहुंची वहां योगेश शाह, योगेश राधाकृष्णन, सहित शिशिर पिल्लई, जुजेर राजा, एन-पी- सिंह आदि सभी ने गर्म जोशी से स्वागत किया। आर्डिनेंस पर विस्तार से बातें हुई और फिर ढेर शुभकामनाओं सहित यात्रा मुम्बई आपरेटरों से मिलते-मिलते इंडस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर अन्य सबके विचार लेते हुए मुम्बई से गुजरात की ओर बढ़ चली। मुम्बई से आगे बढ़ते हुए यात्रा को भारी वर्षा का सामना करना पड़ा, जबकि मुम्बई में अनेक फ्रलाइट्स खराब मौसम के कारण देर से उड़ीं। मुम्बई से निकलते-निकलते ही यूं तो काफी देर हो गई थी, तिसपर भारी बारिश यात्रा की गति थाम रही थी, फिर भी रात्रि विश्राम के लिए समय रहते दमन पहुंच गई यात्रा।

दमन के मिन्टू भाई की पत्नी होस्पिटल में एडमिट होने के कारण दमन का कार्यक्रम स्थगित किया गया। बाद में मालूम हुआ कि मिन्टू की पत्नी का देहान्त हो गया है। यात्रा के दौरान ही उनके शोक में केवल मन से ही शामिल हो सके हम। ऐसी लम्बी यात्रा में कभी-कभी ऐसेे क्षण भी आ ही जाते हैं जब कभी खुशी तो कभी गम में भी शामिल हो जाती है यात्रा। दमन में भी वह क्षण आए लेकिन यात्रा लगातार आगे बढ़ती रहती है। दमन से सीधे सूरत पहुंची यात्रा, जहां पहले से ही यात्रा का स्वागत करने के लिए भावेश, मनोज विपुल भाई आद के साथ अन्य ऑपरेटर भी प्रतीक्षारत थे। सूरत में पूर्व यात्राओं में किए गए वृक्षारोपड़ का नतीजा अब देखने को मिला, रोपे गए पौधे बड़े हो गए हैं। आर्डिनेंस पर अब समूची कम्युनिटी चिन्तित दिखाई दे रही है। जहां जो भी ऑपरेटर मिलते हैं आर्डिनेंस पर अवश्य बात करते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से भी बड़ा मुद्दा अब भ्रष्टाचार बन गया है। सूरत से भरूच होकर बड़ोदरा पहुंचने तक रात हो गई, जबकि, हाईवे बना हुआ है, लेकिन सुपर एवन हाईवे के बावजूद भी एक पुल का सुपर निर्माण ना हो पाने के कारण साढ़े चार-पांच घण्टे का जाम इस रूट पर रोजाना की कहानी है। रात्रि विश्राम बडोदरा में ही वहां के आपरेटर जे-बी- गांधी की मेहमाननवाजी में करना पड़ा। बडोदरा से यूं तो मध्य प्रदेश के लिए रवाना हुई थी यात्रा, लेकिन जीटीपीएल प्रमुख बापूभाई (कनक सिंह राना) के विशिष्ट अनुरोध पर सीधे अहमदाबाद पहुंची यात्र। बापू भाई का एक माइनर आप्रेशन हुआ है अतः दोपहर का भोजन उनके घर पर ही करके यात्रा मेहसाना पहुंची जहां आशीष पाण्डया अन्य ऑपरेटरों के साथ यात्रा का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा में थे।
चेतना यात्रा 7 के रूट मैप में मेहसाना नहीं था अतः वृक्षारोपड़ आदि कार्यक्रम अगले वर्ष किया जायेगा, लेकिन यात्रा के उद्देश्य में उस क्षेत्र को भी पूरी तरह से शामिल कर लिया गया है। अहमदाबाद से यह मार्ग मुख्य मार्ग गांधीनगर-हिम्मतनगर से हटकर मेहसाना होते हुए राजस्थान में बाड़मेर-जैसलमेर की ओर पहुंचता है। इसी मार्ग से यात्रा देश के मरूस्थल में पहुंचनी है।

मेहसाना से विदा लेकर यात्रा बाड़मेर के लिए रवाना हो गई। यह मार्ग देश के मरूस्थल क्षेत्र की ओर लिए जा रहा है। ऐसा एहसास मेहसाना से थोड़ा आगे बढ़ते हुए ही प्रतीत होने लगता है क्योंकि पेड़-पौधे दिखने बन्द होते लगते हैं। रात का अन्धेरा बढ़ता जा रहा है, अभी काफी दूर है। एक छोटा सा कस्बा दीसा गुजरात-राजस्थान बार्डर पर विश्रामालय बना यात्रा का। दीसा के ऑपरेटरों को चेतना यात्रा पहुंचने की सूचना मिल चुकी थी अतः वह सब प्रतीक्षा करते मिले। यात्रा के स्वागत-सत्कार के बाद इण्डस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर चर्चा हो जाने के बाद ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक करने का सन्देश दीसा के ऑपरेटरों को दिया। सुबह सवेरे ही यात्रा बाड़मेर के लिए रवाना हो गई।

दीसा से बाड़मेर का रास्ता बिल्कुल सुनसान सा था। सड़कें तो बहुत बढ़िया थीं लेकिन टैªफिक बिल्कुल भी नहीं था, दूरतलक, खाली-खाली सड़कें। दीसा से संचोर-काबुली होकर बाड़मेर दोपहर बाद ही पहुंच गई यात्रा। बाड़मेर का नैटवर्क कन्हैया लाल डलोरा सम्भाले हुए हैं। डलोरा भी मुम्बई से आज ही वापिस पहुंचे हैं। वह बता रहे थे कि आप की चेतना यात्रा को हमने मुम्बई में देखा तो था, लेकिन वहां हम समझ नहीं सके थे, बल्कि सच पूछें तो हम काफी देर तक आपकी यात्रा को लेकर चुटकियां ले रहे थे। हमें आपके आने का पहले से मालूम होता तब हम यहां भी बडे़ कार्यक्रम रखते। बहरहाल ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक करना कितना जरूरी है यह बात उनकी समझ में आ गई और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में मीडिया का योगदान कैसे हो सकता है उन्हें समझा कर यात्रा बाड़मेर से जैसलमेर के लिए रवाना हो गई।

बाड़मेर के निकट पाकिस्तान बार्डर देखने के लिए वह कुछ बन्दोबस्त कर सूचित करें एैसा उन्हें निर्देश देकर यात्रा जैसलमेर के लिए चल पड़ी। बाड़मेर से जैसलमेर का रास्ता और भी सुनसान है। दोनों तरफ रेत ही रेत या यूं कहिए कि मरूस्थल के बीच में से सड़क से सड़क का निर्माण किया गया था। रेगिस्तानी खेतों में फसल नाम की कोई चीज तो दूर तक दिखाई नहीं देती थी, लेकिन हल्की फुल्की हरी झाड़ियों के बीच तरबूज की बेल दीख जाती थीं। तरबूज-फूट जैसे कंटीले फल यहां चिंकारा हिरणों का भोजन होता है। इसीलिए इस मार्ग पर कहीं-कहीं हिरण भी कुलांचे मारते दिखाई दे जाते हैं, जबकि सड़क दूर तक बिल्कुल सुनसान ही है। टैªफिक बिल्कुल ना के बराबर लेकिन मिलैट्री की गाड़ियां कहीं-कहीं आती जाती मिल जाती है। शाम होते-होते यात्रा जैसलमेर पहुंच गई, वहां का ऑपरेटर पुष्प भाटिया निगम पार्षद भी हैं। जैसलमेर में सबसे मिल लेने के बाद जैसलमेर का डेजर्ड सफारी वाला मरूस्थल देखने के लिए होटल में चैक इन कर, हम सीधे वहीं चले गए। वहां मरूस्थल देखने का आनन्द लेने के लिए भी विश्वभर के सैलानी पहुंचते हैं।

सैलानियों के लिए बाकायदा कई ठिकाने उस मरूस्थल में बने हुए हैं। अधिकांश टूरिस्ट वहीं टैण्टों में नाइट हाल्ट भी करते हैं। भोजन आदि के साथ-साथ सैलानियों के मनोरंजन के लिए वहां, राजस्थानी डांस-कला का भी प्रदर्शन किया जाता है। रेत के सागर मे ऊंटों की सवारी के साथ-साथ वे डूबते सूरज का दश्य वहां का मुख्य आकर्षण होता है। डैजर्ट के टीलों पर ऊंट की सवारी एक अद्मुत आनन्द देती है, लेकिन सैलानियों के पीछे-पीछे दूर तलक भीख मांगने वालों की टोलियों विदेशियों के सम्मुख किसी भी भारतीय को बहुत शर्मिंदा करती है। भारत का विशिष्ट डैजर्ट क्षेत्र कहलाता है जैसलमेर का यह क्षेत्र। वापिस होटल पहुंच विश्राम के बाद अगली सुबह पुनः बाड़मेर के लिए निकले, क्योंकि बाड़मेर से सूचना मिली है कि, भारत-पाकिस्तान बार्डर मुनाबाऊ जाने की इजाजत ले ली गई है। अटारी बार्डर की ही भांति भारत-पाकिस्तान का यह बार्डर भी दोनों देशों के आवागमन के लिए खुला हुआ है। इस बार्डर से एक ट्रेन जोधपुर से मुनाबाऊ सप्ताह में एक बार आती-जाती है। मुनाबाऊ स्टेशन भारत का पाकिस्तान बार्डर पर अन्तिम रेलवे स्टेशन है।

यह स्टेशन ही पाकिस्तन से भारत आने वाले मुसाफिरों के होश उड़ा देता है क्योंकि पाकिस्तान रेलवे स्टेशनों के मुकाबलें में भारत का मुनाबाऊ रेलवे स्टेशन ही बहुत भव्य है। स्टेशन की सफाई, स्वच्छ पानी का इन्तजाम एवं साफ-सुथरे महकते टायलेट भी मुसाफिरों को प्रभावित करते हैं, जबकि पाकिस्तान का रेलवे स्टे”ान ना तो साफ-सुथरे हैं व ना ही वहां के टायलेट ही लोगों को प्रभावित करते हैं, तिसपर एक गन्दे से मटके में रखा पीने का पानी भी वहां जाने वालाेंं को अखरता है। वहां के प्लेटफार्म भी हमारे देश के प्लेटफार्म की भांति नहीं होते हैं। वहां का प्लेटफार्म सीधे जमीन पर ही उतर कर आता हैं जबकि हमारे यहां ट्रेन की बोगियों से सीधे प्लेटफार्म पर निकलती हैं सवारियां। यह सारा वृतान्त बाड़मेर के आपरेटर डलोरा जी के अनुभव से जान पड़ा, उन्हीं के साथ हमें भी मुनाबाऊ पहुंच कर बी-एस-एफ- के जवानों से मिलने का अवसर मिला।


जैसलमेर से बाड़मेर का सफर डेढ़ सौ किलोमीटर और बाड़मेर से पाकिस्तान बार्डर मुनाबाऊ का भी सफर तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर ही पड़ता है, लेकिन बिल्कुल सुनसान रास्ता। कहीं बीच-बीच में इक्का-दुक्का गांव जरूर आ जाते हैं लेकिन अधिकांश रास्ता दूर तलक सुनसान और साफ-सुथरी सड़कों वाला है। दिन में खांसी चुभन भरी गर्मी में बी-एस-एफ- के जवान कैसे दे”ा की सीमाओं की रक्षा करते हैं, इसका अनुभव वहां पहुंचकर हो जाता है। बार्डर से पुनः बाड़मेर आकर यात्रा उदयपुर के लिए रवाना हो जाती है। उदयपुर की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है बाड़मेर से, जबकि जैसलमेर से डेढ़ सौ किलोमीटर बाड़मेर और बाड़मेर से बार्डर का आना-जाना तकरीबन तीन सौ किलोमीटर का सफर करते -करते शाम तो बाड़मेर में ही हो गई थी, फिर भी बाड़मेर से आगे की यात्रा का फांसला लम्बा होने के साथ-साथ मुख्य मार्ग भी नहीं था व ना ही इस सफर की सड़कें बेहतर थी, अतः रात्रि विश्राम के लिए बीच में आए एक छोटे से कस्बे जालौर में हाल्ट मारना पड़ा। अगली सुबह पुनः उदयपुर के लिए यात्रा आरम्भ हुई।

जालौर से सिरोही-शिवगंज होते हुए यात्रा उदयपुर पहुंची। उदयपुर में ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम का आयोजन नरे”ा माली एवं अजय पोरवाल द्वारा किया गया। अजय पोरवाल उदयपुर में एक निगम पार्षद भी हैं। उदयपुर से पिण्डवाड़ा चित्तौड़ गढ़ होते हुये कोटा पहुंची यात्रा।


पिण्डवाड़ा क्षे=ा से गुजरना पूर्व में बड़ा जोखिम भरा हुआ करता था क्योंकि इस क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा लूटमार की वारदातों को अंजाम दिया जाता था, लेकिन अब उन पहाड़ियों को काट-कर नेशनल हाईवे बना दिया गया है, अतः वह दुर्गम रास्ता भी अब आराम का सफ बन गया है। इस क्षेत्र में शरीफों के घने जंगल हैं इसीलिए इस हाईवे पर छोटे-छोटे बच्चे टोकरियों में शरीफे लिए कई जगह बेचते दिखाई दे जाते हैं। उदयपुर से चित्तौड़ गढ़ होते हुए कोटार पहुंची यात्रा, जहां कपिल अरोड़ा, अजय सिंह आदि ने गर्म जोशी के साथ यात्रा का स्वागत किया। वही डिजनी चेनल प्रमोद एवं के विशाल सहित ट्टषिकेश के अजय चौधरी भी भेंट एवं इण्डष्ट्री पर आर्डिनेंस पर चर्चा हुई । भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरुकता अभियान में उनकी भूमिका पर संदेश देते हुए यात्रा कोटा से सवांई माधो पुर की ओर बढ़ चली ।

यह मार्ग भी ठीक-ठाक नहीं है, जबकि एक डैम भी इस मार्ग पर पड़ता है, जंगल तो घना है, लेकिन सड़कें ठीक-ठाक नहीं हैं। सवांई माधो पुर पहुँचते-पहुँचते रात्रि हो गई है । रात्रि विश्राम के बाद सुबह-सुबह रणथम्भौर की सैर की लेकिन जंगल के हिसाब से वन्य जीव कम मिले। रणथम्भौर विजिट के लिए, यहां केवल ओपन बस ही उपलब्ध थी, जबकि टूरिस्ट लेकर जंगल में जिप्सी जाती है। जिप्सी के लिए हमने खासी कोशिश की तब कहीं जाकर शाम की राइड हम जिप्सी से कर पाए।

जिप्सी से जंगल में जाना हमारे लिए बहुत ही “ाुभ रहा, क्योंकि रणथम्भौर के टाइगर को फिल्माने का मौका मिल गया। खूबसूरत जंगल खूबसूरत बाघ को नजदीक से फिल्माने के अवसर जीवन में बड़ी मुशिकल से ही मिला करते है विश्व भर से हजारों टूरिस्ट प्रत्येक वर्ष भारतीय जंगलो में वन्य जीवों को देखने के लिए लाखों रुपये खर्च कर आते हैं। ऐसे सौभाग्यशाली विरले ही होते हैं जिन्हें इन जंगलों में बाघ के दर्शन हो पाते हैं। रणथम्भौर भी भारत का एक बड़ा और घनाँ जंगल है, यहां साम्भर-चीतल भी भारी संख्या में हैं। हाथी यहाँ नहीं हैं क्योकि ना तो उनके खाने के लिए यहाँ पर्याप्त भोजन है व ना ही यहाँ विचरण के लिए अनुकूल वातावरण है ।

इस जंगल में नील गाय भी दिखाई दे जाती है । सांपों की अनेक प्रजाति हैं । मगरमच्छ भी है एवं लेपार्ड भी दिखाई दे जाते हैं जबकि पक्षी प्रेमियों के लिए यहां अनेक प्रकार के पक्षी भी मिलते हैं। रणथम्भौर घूमने का आनन्द जिप्सी से ही आता है, लेकिन खुली बसों में भी वन विभाग टूरिस्ट को रणथम्भौर घुमाता है। रणथम्भौर की रोमान्चक स्मृतियाें को समेटकर यात्रा सवाई माधोपुर से ग्वालियर के लिए रवाना हो गई।


राजस्थान से मध्यप्रदेश की सीमाओं पर स्थित यह क्षेत्र उतनी तरक्की नहीं कर सका है जितनत कि देश के अन्य क्षेत्रें में दिखाई देती है। सवाई-माधोपुर से शिवपुरी का मार्ग कहीं-कहीं बहुत ज्यादा खराब है, लेकिन जहां थोड़ा ठीक-ठाक भी है तो सुनसान सा ही है। हाईवे पर ढ़ाबे आदि इधर बिल्कुल नहीं हैं। गाँवों मे दीपावली की तैयारियों में लोग अपने घरों की सफाई- पुताई मे व्यस्त है । शिवपुरी पहुँचने पर यात्रा का गर्मजोशी के साथ भव्य स्वागत किया गया। इण्डस्ट्री पर आए ऑर्डनेंस से आरम्भ हुई चर्चा ग्लोबल वार्मिंग और फिर भ्रष्टाचार मुक्त निर्माण तक पहुँची। फरकान अली, मो- अफजल खान, दिनेश शर्मा, एवं अनिल आदि सहित अन्य आपरेटरों के साथ लंच कर यात्रा ग्वालियर के लिए रवाना हो गई। दीपावली के कारण बाजारों में भीड़ के साथ-साथ बाजारों की सजावट भी बढ़ती जा रही है । शिवपुरी से ग्वालियर मार्ग ठीक-ठाक है अतः समय से ग्वालियर पहुँच गई यात्रा।


ग्वालियर रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन यात्रा के स्वागत सत्कार का बड़ा कार्यक्रम प्रमोद मिश्रा जी ने आयोजित किया। मिश्रा जी ग्वालियर में विन केबल चलाने के साथ-साथ मीडिया प्रो- की भी जिम्मेदारी देख रहे है। ग्लोबल वार्मिंग एवं भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के प्रति लोगों को जागरुक करने का संदेश सशक्त तरीके से ग्वालियर वासियों तक पहुँने के लिए मिश्रा जी ने प्रिण्ट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया सभी को बुला रखा था। नीलेश, रवीन्द्र चतुर्वेदी सहित प्रेस ब्रीफिंग के साथ-साथ इण्डष्ट्री के भविष्य पर भी विस्तृत चर्चा करने के बाद वहाँ सबसे विदा एवं शुभकामनाएँ लिए यात्रा चम्बल क्षेत्र से होते हुए गरा पहुँची। भिण्ड-मुरैना-थौलपुर होते हुए आगरा पहुँच गई यात्र लेकिन दीपावली व रविवार होने के कारण आगरा कार्यक्रम नहीं हो सका। वैसे भी शायद आज धन तेरस है इस कारण भी बाजारों में काफी भीड़ है, दीपावली की तैयारियों व खरीदारी में व्यस्त हैं लोग। आगरा से सीधे मथुरा के लिए यात्रा बढ़ी, लेकिन रास्ते पर लम्बे जाम के कारण मथुरा पहुंचने में बहुत ज्यादा समय लग गया। रात्रि विश्राम कैलाश गुप्ता जी के विशिष्ट अनुरोध पर मथुरा में ही किया। पूर्व यात्र के दौरान मथुरा में लगाए गए पौधे तो अब नहीं दिखाई दिए, लेकिन उनकी जगह कैलाश भाई ने कई और पौधे लगवा कर ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता अभियान में अपना सहयोग दिया है।


मथुरा से हाथरस, अलीगढ़, खुर्जा होते हुए दीपावली से पूर्व दिल्ली के लिए यात्र जारी थी। सभी बाजार सजे-धजे और भारी भीड़ से भरे थे। आपरेटर से भेंट कर पाना भी अब कठिन हो गया था क्योंकि हर कोई अब दीपावली की तैयारियों में मग्न हो गया था। सभी जगह जाम लगे हुए थे। हाथरस के आपरेटरों ने यात्र का स्वागत किया लेकिन अलीगढ़ किसी से मिलना नहीं हो सका। खुर्जा में चीनी मिट्टी के बर्तनों एवं अन्य सामानों के बड़े-बड़े डिस्प्ले लगे हुए थे। खुर्जा से बुलन्दशहर, सिकन्दराबाद मार्ग से गाजियाबाद होते हुए देर शाम दिल्ली पहुंच गई यात्र। इस प्रकार 5 सितम्बर को दिल्ली से आरम्भ हुई चेतना यात्र 7 भी पूर्व निर्धारित समयानुसार पूरा दे”ा घूमते हुए दीपावली की पूर्व संध्या पर 25 अक्तूबर को समूची कम्युनिटी की ढेरों शुभकामनाएं और प्यार लिए पूर्ण सफलता के साथ निर्विध्न सम्पना दिल्ली में हो गई यह यात्र। यात्र की वापिसी का सहर्ष पूरी गर्म जोशी के साथ दिल्ली में स्वागत किया गया।

यात्र की खट्टी-मीठी स्मृतियों से भरी हुई इस झोली के कुछेक अंश ही पाठ कों की समर्पित किए जा सके हैं, जबकि यादों के खजाने में तो हर पल एक नया एहसास दिलाता है। इस यात्र में भी दे”ा के अधिकांश शहरों व गांव-कस्बों में आपरेटरों ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता अभियान में अपना खुलकर योगदान दिया है। इण्डस्ट्री की अनेक समस्याओं व समाधान पर भी बेबाक चर्चाएं हुईं। इस संदर्भ में इण्डस्ट्री एक मत नहीं है, सब अपनी-अपनी तरह से इसके मायने निकाल रहे है। आपरेटरों के साथ-साथ एम-एस-ओ- की स्थिति भी बंटी हुई हैं।


कुल 50 दिन की इस यात्र में तकरीबन बीस हजार किलोमीटर का सफर तय किया गया। गाड़ी में मात्र एक पंचर हुआ, लेकिन ऊबड़-खाबड़ सड़कों से गुजरते हुए डीजल टैंक लीक हो गया। टोयटर की इनोवाक्रिस्टा गाड़ी 30 अगस्त को ही दिल्ली से ली गई थी, जो कि 5 सितम्बर से यात्र पर थी। गाड़ी के डीजल टैंक को बदले जाने का कोई भी बन्दोबस्त टोयटा कम्पनी के द्वारा यात्र के दौरान नहीं करवाया जा सका। अतः टेंक वापिस दिल्ली पहुंच कर ही बदलवाया जा सका।