नागपुर से आगे के सपफ़र में सुभाष बान्तै नरेन्द्र, राजठाकरे आदि भी शामिल हो गए, क्योंकि नागपुर से सीधे रालेगण सिद्धी पहुंचकर अन्ना हजारे जी का आशीर्वाद लेना था। नागपुर से निकलते-निकलते शाम ढल चुकी थी और अन्धेरा छाने लगा था, लेकिन सपफ़र लम्बा था अतः तय यही किया गया कि नागपुर हाल्ट ना मारकर आगे का सपफ़र शुरू किया जाए। यहां से आगे मालेगांव अहमद नगर के रास्ते अन्ना हजारे जी के गांव रालेगांव सिद्धी तक का वर्णन ‘दो दिन अन्ना के गांव में’ किया गया है, अतः रालेगण सिद्धी से आगे की यात्रा को चेतना यात्रा-7 का तृतीय भाग कहा जाएगा।


अन्ना जी की शुभकामनाएँ आशीर्वाद लिए रालेगण सिद्धी से सीधे आन्ध्रप्रदेश जाने के लिए जलगांव करमाल के रास्ते कुर्दुवाडीमोहोल होते हुए देर रात सोलापुर पहुंची यात्रा। सोलापुर के मार्ग से पहली बार ही हम सपफ़र कर रहे थे। आन्ध्रप्रदेश-महाराष्ट्र के बार्डर का क्षेत्र होने के कारण यहा सभ्यता की मिक्सिंग दिखाई देनी शुरू हो गई थी, जबकि तेलंगाना आन्दोलन में आन्ध्रप्रदेश की एन्ट्री करने वाला यह क्षेत्र पूरी तरह से डिस्टर्ब था। रात्रि विश्राम सोलापुर में ही किया गया, लेकिन अगली सुबह सोलापुर के रवि पाटिल जो कि मीडिया प्रो के डिस्ट्रीब्यूटर होने के साथ-साथ इन केबल की भी यहां जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं उन्हाेंने यात्रा का स्वागत किया, गो ग्रीन-गो डिजीटल सहित इंडस्ट्री पर विस्तृत चर्चा के बाद पूर्वनिर्धारित आन्ध्रप्रदेश के प्रोग्राम में परिवर्तन कर यात्रा को कर्नाटक के मार्ग पर बढ़ाया गया, जबकि सोलापुर से जाहिराबाद होते हुए हैदराबाद पहुंचना था।

तेलंगाना आन्दोलन इस कदर उग्र रूप धारण कर चुका था कि अनेक टेªन एवं बस सेवा भी उस क्षेत्र में बन्द की जा चुकी थी। सोलापुर से मात्र 100 कि-मी- दूरी पर ही कर्नाटक का शहर बीजापुर है, वहां सीनियर आपरेटर शहर में ना होने के बावजूद भी जूनियर द्वारा पफ़ूलों से यात्रा का स्वागत किया गया। बीजापुर की लोकल मिठाई भी भेंट की गई, लेकिन बीजापुर में हाल्ट ना करते हुए यात्रा सीधे हास्पेटबल्लारी मार्ग से होकर आन्ध्रप्रदेश में दाखिल हुई। आन्ध्रप्रदेश का यह क्षेत्र कर्नाटक-आन्ध्रा बार्डर एरिया कहलाता है। यहां तेलंगाना आन्दोलन की आग तो नहीं है, लेकिन जानकारी मिली कि नक्सलवादी गतिविधियां गाहेबगाहे इस क्षेत्र में हो जाती हैं। सभ्यता की मिक्सिंग यहां भी भिन्न है अन्धेरा जल्दी ही छा गया, इसलिए वाया गूटी ना जाकर सीधे-सीधे अनन्तपुर पहुंची यात्रा।

रात्रिविश्राम अनन्तपुर में किया पिफ़र सुबह वहां अयूबपाशा के साथ भेंट की तकरीबन चार लाख की पापुलेशन वाले इस शहर में मासूम बाबा निजी नैटवर्क एनालाग टैक्नालाजी पर चला रहे हैं। मासूम बाबा कुल 104 चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं, यहां आपरेटरों की सख्या सवा सौ के करीब है, जबकि केबल दर 180 / रूपए (एवरेज) है। चैनल डिष्ट्रीब्यूशन मोहन एवं गोपाल सम्भाल रहे हैं। अनन्तपुर आपरेटरों के साथ इंडष्ट्री पर लम्बी चर्चा के बाद यात्रा आन्ध्रप्रदेश के ही हिन्दुपुर पहुंची। कर्नाटक बार्डर पर आंध्रा का यह आखिरी कस्बा है, लेकिन टी-आर पी टाऊन में शामिल है हिन्दूपुर।


कोआपरेटिव स्टाईल में कुल 38 आपरेटर यहां केबल व्यवसाय में सलंग्न हैं। हिन्दूपुर केबल टीवी वैल्पफ़ेयर एसोसिएशन भी यहां बनाई हुई है। एक ही हैडेण्ड से 88 चैनलों का प्रसारण किया जा रहा है। यहा की पापुलेश मात्र सवा दो लाख के करीब पहुंच गई है जिसमें 25 प्रतिशत अर्बन तो 75 प्रतिशत रूरल ऐरिया है। 150 रू प्रति कनैक्शन केबल दर है, लेकिन टोटल 65 आपरेटर केबल सेवा प्रदान कर रहे हैं। हिन्दूपुर में सचिव खलील भाई एवं अध्यक्ष वैंकटेश हैं। आन्ध्रा में मनोरंजन कर क्पेजज-/5/-ए ैनइ-क्पअ-/4/ , ज्मी/3ध है एवं कनैक्शनों का डिक्लेयरिशन जेमिनी टीवी की भांति होता है। हालांकि राज्य सरकार द्वारा लगाए गए मनोरन्जन कर के विरूद्ध मामला आन्ध्राप्रदेश उच्च न्यायालय में चल रहा है। हिन्दूपुर आपरेटरों से मिलने के बाद पिफ़र आन्ध्रा से कर्नाटक के लिए बढ़ चली यात्रा। हिन्दूपुर से आन्ध्रा बार्डर क्रास करते हुए कर्नाटक के बगंलौर शहर पहुचने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगा, साझ ढ़लने के साथ-साथ यात्रा भी बंगलौर के मालेश्वरम क्लब पहुंच गई, जहां भारी संख्या में कर्नाटक केबल टीवी एसोसिएशन के सदस्य प्रतीक्षा में खड़े मिले।


आंध्रा में तेलंगाना आन्दोलन के कारण वहां की एसो- से मीटिंग ना हो पाने के कारण 2दक अक्टूबर को आन्ध्रा कर्नाटक-तमिलनाडू सहित केरल की भी एसोसिएशन को बंगलौर आने का निमन्त्रण दिया गया। कर्नाटक केबल टीवी आपरेटर्स एसोसिएशन द्वारा यात्रा का मैसूर स्टाईल में गर्मजोशी से स्वागत किया गया। वहीं पर मीडिया को भी निमन्त्रित किया गया एवं गो ग्रीन-गो डिजिटल के साथ-साथ पृथ्वी के बढ़ते जा रहे तापमान पर भी लोगों को जागरूक करने पर विस्तृत चर्चा की गई। गांधी जयन्ती भी है आज यानि कि दो अक्टूबर यानि पूर्ण छुट्टी, सब कुछ बन्द। बंगलौर के मालेश्वरम् क्लब में ही सबके साथ विस्तृत चर्चा में निकल गए यात्रा के यह दो दिन। 3तक वबज की सुबह बंगलौर से आगे बढ़ यात्रा, सीधे मैसूर पहुंच कर वहां के आपरेटरों के साथ बैठक रखी गई। मैसूर में दशहरा पफ़ैस्टिवल के कारण सभी अतिव्यस्त होने के बावजूद भी यात्रा के स्वागत में तत्पर रहें। 3तक को मैसूर में भाई रगांनाथ जी के मेहमानबाजी में रही यात्रा। शाम को मैसूर पैलेस में दशहरा पफ़ैस्टिवल पर आयोजित विशेष सास्कृंतिक कार्यक्रम देखा। जहा प्रसिद्ध गीतकार उदित नारायण अपना प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहे थे। पैलेस मैसूर के रंगारंग कार्यक्रम में भारी संख्या में लोग आए हुए थे, लेकिन रंगानाथ द्वारा अपनी प्रबन्ध वहां सर्वोत्तम किया गया था। रात्रि विश्राम रंगानाथ के गैस्टहाऊस में किया।


अगली सुबह मैसूर के निकट शिवसमुन्द्र पफ़ाल्स एवं विशिष्ट देवी मां का मन्दिर देखने के बाद बान्दीपुर नेशनल पार्क पहुंचे, जहां पफ़ारेस्ट रैस्ट हाऊस में ही ठहरने का बन्दोबस्त करवाया गया था। समय से पहुंचने का पूरा लाभ उठाते हुए बान्दीपुर पहुंचते ही हम सपफ़ारी पर चले गए। वन्यजीवों के लिए आरक्षित यह जंगल तीन प्रदेशों में पफ़ैला हुआ विशाल जंगल है। कर्नाटक-तमिलनाडू से केबल तक पहुंचता है यह जंगल। यहा कभी वीरप्पन का ठिकाना भी हुआ करता था। लैन्टिना की घनी-उंची-ऊंची झाड़ियों सहित भारी मात्र में यहा बांस के जंगल भी हैं अतः जंगली हाथियों की संख्या यहां बहुतायत में है। वन्य जीवों में टाईगर-वाइल्ड डोग-जंगली भैंसे-रीछ आदि भी इस जंगल में आने वालों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं, जबकि स्पोटेड डियर और साम्भर की संख्या भी बहुत अधिक है।

मैसूर से ऊटी जाने वालों के लिए यहीं से सड़क का रास्ता है। यह मार्ग शाम 7 बजे से आवागमन के लिए बन्द कर दिया जाता है, क्याेंकि रात्रि में वन्य जीव सड़क पर स्वछन्द विचरण करते हैं। हाथियों के झुण्ड तो अक्सर वहां से गुजरने वालों को दिखाई देते हैं। कभी-कभी टाइगर और जंगली भैंसे भी सड़क पर ही विचरण करते हुए मिल जाते हैं, लेकिन वाइल्डडोग एवं रीछ मुकद्दर वालों को ही मिल पाते हैं। हिरनों की वहां कोई कमी नहीं है, वह कहीं भी अपनी क्रीड़ाएं करते नजर आ सकते हैं। यहां बिच्छू-नेवले, साही भी पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं, जबकि सांप की भी कई प्रजातियां इस जगंल में होती हैं। यहां के बन्दरों की पूंछ लम्बी एवं सिर पर मांग निकली होती है जबकि लंगूर भी बन्दरों के साथ-साथ बैठे मिल जाते हैं।

जंगल सपफ़ारी के लिए बांदीपुर पफ़ॉरिस्ट की ओर से विशेष प्रकार बसों की व्यवस्था होती है, लेकिन बान्दीपुर के नजदीक बनी बहुत सारी रिर्सोट्स द्वारा अपने पर्यटकों की खुली जिप्सियां भी उपलब्ध करवाई जाती हैं। आज 5 अक्टूबर की सुबह हो चुकी है यानिकि दशहरा से एक दिन पूर्व, आज प्रातः की सपफ़ारी से वापिस आने पर दिखाई दिया कि पफ़ारेस्ट के समस्त वाहनों सहित पालतू जानवरों की भी पूजा-अर्चना की जा रही है। वाहनों के साथ-साथ वहां के हाथियों को भी खूब अच्छी तरह सजाया गया है एवं उनकी भी पूजा-अर्चना की जा रही है। यह सब उत्तरी भारत से बिल्कुल भिन्न प्रथा है।

साऊथ रीजन में दशहरा के अवसर पर ठीक दशहरा से एक दिन पूर्व यहा अपने-अपने व्यावसायिक अथवा निवास परिसर के बाहर नजर ना लगे के लिए पेठा पफ़ोड़ा जाता है, जबकि वाहनों पर केले के पेड़ों सहित पफ़ूल मालाओं से सजाने की प्रथा है। जगल से पुनः मैसूर पंहुची यात्रा, जहां विशेष रूप में सजाए गए पूरे मैसूर की छटा ही निराली दिखाई देती है। मैसूर को पफ़ूलों के साथ-साथ पूरी तरह से लाइटों से भी सजाया जाता है। मैसूर का कोई भी सिरा ऐसा नही मिलेगा जिसे दशहरा पर्व के लिए विशेष रूप में सजाया संवारा ना गया हो। भिन्न चौराहों पर अलग-अलग झांकियां वहां आने वालों का मनमोह लेती हैं। आज की रात मैसूर में विश्राम कर कल मैसूर का विशेष आयोजन देखने के लिए विशिष्ट पास का बन्दोबस्त रंगानाथ द्वारा किया गया।


6जी अक्तूबर अर्थात् विजयदशमी यानिकि दशहरा महोत्सव वह भी मैसूर का दशहरा महोत्सव, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से लाखों लोग मैसूर पहुंचे हैं। हम भी उन्हीं लाखों लोगों में इस दशहरा महोत्सव पर वहां की संख्या में दर्ज हो गए। बेहिसाब भीड़ को सम्भालने के लिए शहर के अनेक मार्गों पर वाहनों की एन्ट्री बन्द की जा चुकी थी, जहां कोई वाहन आ जा भी रहे थे वहां जाम की परेशानी विवश किए हुई थी, जबकि चारों तरपफ़ से किसी भी सड़क से भीड़ का रेला बढ़ा जा रहा था। हर कोई आज पैलेस के उस स्थान तक पहुंच जाना चाहता था जहां मैसूर का दशहरा महोत्सव कार्यक्रम होना है। जगह-जगह सिक्योरिटी चैकिंग, सामान्य वाहनाें की डाईवर्टिंग, लेकिन विशेष पास वाली गड़ियों की संख्या भी बहुतायत में थी।

लाखों लोगों का जमावड़ा, हर कोई सबसे आगे पहुंचने की होड़ में दिखाई दे रहा था, जबकि आगे की सीटें पहले से ही पफ़ुल हो चुकी थीं। जिसको जहां जगह मिल रही थी वह वहा सैट हो रहा था, हमें साई रगांनाथ के प्रयासों से सबसे आगे बनाए गए मीडिया मंच पर जगह मिल गई थी। अतः मैसूर के दशहरा महोत्सव को नजदीक से देखने एवं उसे पिफ़ल्माने का अवसर मिल गया। धूप में कापफ़ी गर्मी थी, कोई छाया भी नहीं थी इसी कारण लगातार पसीना टप-टप कर रहा था, परन्तु दशहरा महोत्सव को देखने की लालसा में धूप-गर्मी सब हल्की साबित हो रही थीं।


कर्नाटक के मुख्यमन्त्री सहित अनेक विशिष्ट अतिथि इस महोत्सव के विशेष मेहमानों में थे। ज्यों ही वहां मुख्यमन्त्री जी का कापिफ़ला आया उसी ओर सभी मीडिया कर्मियों के कैमरे घूम गए। विशेष प्रकार से सजे-धजे हाथियों की परेड भी शुरू हो गई। दशहरा महोत्सव में भिन्न सुरक्षा दल ऊंट-घोडे़ और हाथियों पर सवार थे, जबकि पैदल सेना के जवानों की लकझक करतीं वर्दियां पयर्टकों को लुभा रही थीं। महोत्सव में अनेक प्रकार की झांकियों सहित नाना प्रकार के लोक नृत्य भी लोगों का आकर्षण बने हुए थे। देश की राजधानी दिल्ली में जिस प्रकार से छब्बीस जनवरी की परेड निकलती हे, वैसा ही मनमोहने वाला दृश्य कुछ मैसूर दशहरा महोत्सव का था। बैक ग्राऊण्ड में से अब तोपों द्वारा दी जाने वाली सलामी की भी गूंज सुनाई देने लगी थी।

सबसे आखिर में वह हाथी भी परेड में उतर आया जिस पर मैसूर पैलेस का सोना लदा हुआ था। कितना सोना लदा हुआ था उस पर सबके अपने-अपने कयास थे, लेकिन 750 किलो ग्राम साढ़े सात सौ किलो ग्राम सोना लदा होता है इस तरह की बातें वहां की जा रही थीं। सोने से लदे हाथी को दो हाथियों के बीच में लेकर चला जा रहा था, जिसके लिए घुड़सवार सेना रास्ता बनाती जा रही थी। परेड का आंखों देखा हाल लाऊडस्पीकर पर लगातार दिया जा रहा था, हरेक झांकी कर्नाटक की जीवन शौली व शौर्यता की प्रतीक थी, जबकि रंग-बिरंगी वेशभूषा में अपने-अपने करतब दिखलाते हुए गुजर रहीं टोलियां भी सबके आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थीं। तकरीबन चार-साढ़े चार घन्टे चली इस परेड-कार्यक्रम का हरेक लम्हा अपना विशेष आकर्षण रखता था। जिस तरह से कार्यक्रम आरम्भ हुआ था उसी भांति समापन भी आकर्षक अन्दाज में हुआ।


मैसूर दशहरा महोत्सव की यादों को समेटते हुए यात्रा मैसूर से अगले पड़ाव की ओर बढ़ चली। वापिसी बान्दीपुर होते हुए कर्नाटक बार्डर पार कर तमिलनाडू के ऊटी शहर पहुंची यात्रा। मैसूर से ऊटी की दूरी तकरीबन 200 किमी- के करीब हो जाती है, लेकिन घने जंगलाें से गुजरते हुए जो घुमाओदार खड़ी चढ़ाई के रास्ते ऊटी पहुंचाते हैं वहां गाड़ियों के इन्जन की जान और ड्राइवर की दक्षता दोनों के लिए कड़ी परीक्षा की घड़ी होती है, जबकि बेहतर सड़कें तेज रफ्रतार के लिए ललचाती हैं। पहाड़ी रास्तों में ऊटी की चढ़ाई के साथ-साथ उतराई भी खासी रोमान्चक होती है। दशहरा के कारण पर्यटकों की खासी भीड़ से भर गई है ऊटी, अतः होटलों में बामुश्किल ही जगह मिल पाई।

सुबह नाश्ता नहीं मिल सका ऊटी में क्योंकि यहां लोग समय से काम समेट देते हैं। ऊटी के पफ़ारूख भाई से सम्पर्क नहीं हो सका, लेकिन मालूम पड़ गया है कि तमिलनाडू सरकार द्वारा लाए गए कानून से ऊटी भी अछूता नहीं रहा है। ऊटी से नोलाम्बर मार्ग से होकर केरल के मज्जेरी शहर छभ्-213 होते हुए सीधे कोजीकोड पहुंची यात्रा, यहां से छभ्-17 पकड़ कर आगे बढ़ी यात्रा। केरल के आपरेटरों के साथ मुम्बई में मिलना तय हुआ। अन्धेरा कापफ़ी बढ़ने लगा था और सड़क भी ठीक नहीं थी अतः पथोली कालीकट शहर में एक अच्छी सी रिसोर्ट हाईवे पर ही दिखाई दी तब वहीं हाल्ट कर सुबह आगे के सपफ़र पर बढ़ चली यात्रा।


छभ्-17 के इस मार्ग पर समुन्द्र भी साथ-साथ चलता है, अतः लीजार्ड (गोय) सड़कों पर वाहनों से कुचली मिलीं। केरल के कालीकट जिले में पायोली एक छोटा सा कस्बा होने के बावजूद भी यहां हाईवे पर एक अच्छा रिसोर्ट रात्रि पड़ाव के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है। सुबह पिफ़र शुरू हुई यात्रा पायोली से छभ्-17 पर चलते हुए केरल में ही एक शहर माहे पड़ा, जहां शराब की दुकानें ज्यादा संख्या में खुली हुई थीं। पता लगा कि माहे पान्डुचेरी का भाग है ना कि केरल का यानि कि यह छोटा सा कस्बा एक यूनियन टैरिटरी (पान्डुचेरी) का हिस्सा है। माहे से डीजल लेकर यात्रा छभ्-17 पर ही आगे बढ़ते हुए केरल के कन्नर-कसार गोड होते हुए पुनः कर्नाटक में दाखिल हो गई।

कर्नाटक के मंगलौर में श्रीनिवास सी-केनी यात्रा का स्वागत करने के लिए परिवार सहित प्रतीक्षा करते मिले। केनी ने अपनी नैनों का एक नया लुक दिया हुआ था पेन्ट करके। केनी का केबल टीवी के साथ-साथ पेंट की भी पफ़ैक्ट्री है जबकि गाड़ियों की कलैक्शन उनकी हाबी। मंगलौर से उडीपी-माल्पे बीच होते हुए यात्रा उडीपी जिले की तहसील कुन्डापुरा के हेम्माडी कस्बे पहुंची यहां भी छभ्-17 पर ज्वैल पार्क नाम से एक अच्छी रीसोर्ट है। रात्रि विश्राम के लिए यहीं रूक कर सुबह मारवान्थै उस स्थान पर पहुंचे जहां छभ्-17 के एक साईड में दूर तक शान्त नहीं चलती है तो दूसरी ओर विशाल समुन्द्र की लहरें कुछ इस तरह कुलांच मारती हैं जैसे
छभ्-17 को पार कर नदी को ही निगल लेना चाहती हों। भारत की पृथ्वी पर प्रकृति का यह अद्भुत नजारा है।

यहां से आगे बढ़ते हुए कारवाड़ से गोवा में प्रवेश किया जहां गोवा की ओर से मडगांव में आपरेटरों ने यात्रा का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। गो ग्रीन-गो डिजीटल पर विस्तृत चर्चा के बाद यात्रा पणजी पहुंची, वहा आपरेटरों से भेंट कर यात्रा सीधे महाराष्ट्र के लिए बढ़ चली। गोवा से महाराष्ट्र का यह मार्ग कोंकण कहलाता है, जबकि महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी सिंघुदुर्ग भी इसी क्षेत्र में स्थित है। गोवा से सावंतवाड़ी-कुडाल के रास्ते कनकवली पहुंची यात्रा। कनकवली एक छोटा सा कस्बा सा है लेकिन इस क्षेत्र का औद्योगिक रूप में तेजी से विकास हो रहा है। नारायण राणे (पूर्व मुख्यमन्त्री महाराष्ट्र) का क्षेत्र होने के कारण यहां खासा विकास दिखाई देता है।

सड़कों की प्रशंसा के साथ-साथ छभ्-17 पर स्थित नारायण राणे के होटल नीलम कन्ट्रीसाईड भी प्रशंसनीय है। इसी होटल में रात्रिविश्राम कर सुबह पूर्व सी-एम-की कार्यस्थली को भी बारीकी से अध्ययन करने का प्रयास किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में राणे जी का इन्जीनियरिंग कालिज ैैच्ड कापफ़ी बड़ी जगह में स्थित है जहां देश के कोनेे-कोनेे से छात्र पढ़ने आते हैं। छात्र-छात्रओं के लिए अलग-अलग होस्टल सहित जिम और तैराकी के लिए स्वीमिंग पुल भी बना हुआ है। कालेज के छात्रें सहित प्रिंसिपल-स्टापफ़ से भेंट कर उन्हें भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता का संदेश देते हुए यात्रा राणेजी के सिंधुदुर्ग महिला भवन (एक दूरगामी योजना) पहुंची, जिसे अब सिपफ़र् उद्घाटन की प्रतीक्षा है।


यहां से सीधे छत्रपति शिवाजी के सिंधुदुर्ग किले पहुंचे। किला देखने के लिए केवल मीटर बोट से ही जाया जा सकता है, क्योंकि किला चारों तरपफ़ से समुन्द्र से घिरा हुआ हैं सिंधुदुर्ग किले को देख कर उसकी बुलान्दियों का आगास होता है। समुन्द्र के बीच बने हुए हैं। शिवाजी की विशाल प्रतिमा के साथ-साथ उनकी तलवार भी किले में मौजूद है। शिवाजी के साथ से उनके साथ रहने वालों की सातवीं पीढ़ी अभी भी वहीं किले के भीतर रहती है। सिन्धुदुर्ग किले को देख आने के बाद पुनः नीलम कन्ट्रीसाइड रिसोर्ट कनकवली आकर रात्रि विश्राम के बाद अगली सुबह मुम्बई के लिए रवाना हो गई यात्रा।

कनकवली के बाद रत्नागिरी -चिपलूण के रास्ते यात्रा आगे बढ़ रही थी कि तभी दो साइकिल सवार जो कि कन्याकुमारी से कश्मीर के भ्रमण पर थे दिखाई दिए। साइकिल से यात्रा पर निकले दोनो यात्री सिख एवं रिश्ते में भाई थे। इनमें एक कृष्णा वासुदेवा मैसूर से एवं अश्विन गुरूराज बंगलौर से थे। इनकी यात्रा का आज 16 वां दिन था। इनकी साइकिल 16 गेयर वाली थी और इन्हाेंने प् ैनचवतज ।ददं का एक बैज भी लगाया हुआ था। दोनाें साइकिल सवारों को साथ बैठाकर थोड़ा सा अल्पाहार करवा कर यात्रा पुनः आगे बढ़ चली यात्रा।


साइकिल सवारों के साथ अल्पाहार के समय से आरम्भ हुई भारी बारिश के कारण आगे बढ़ पाना बहुत कठिन हो रहा था, लेकिन आगे बढ़ने की जैसे-जैसे कोशिश कर रहे थे, वैसे-वैसे बारिश भी तूपफ़ानी बनती जा रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली कड़कने की गति बहुत ही भयावह रूप धारण किए थी। जब बिल्कुल ही सामने का दिखना कठिन हो गया तब पुनः छभ्-17- पर एक रैस्ट्रा में कुछ मिनट रूक कर यात्रा पुनः आगे बढ़ी। तभी सड़क पार कर रहे एक बड़े सांप को रास्ता देने के लिए गाड़ी रोकी और पिफ़र पुनः मुम्बई के लिए यात्रा आगे बढ़ती रही। आखिरकार अर्धरात्रि में मुम्बई पहुंच ही गई यात्रा। महानगरी मुम्बई में इंडष्ट्री के अनेक प्रमुखों से मिलने का कार्यक्रम है एवं इंडष्ट्री पर एक प्रदर्शनी भी हो रही है, वहां भी भिन्न क्षेत्रें से आए अनेक आपरेटरों से मिलने का कार्यक्रम है। अतः मुम्बई दो दिन कापफ़ी व्यस्त रहेंगे। अतः चेतना यात्रा-7 के तृतीय भाग को यहीं विराम दिया जाता है, शेष भाग के लिए यात्रा के चतुर्थ भाग की प्रतीक्षा करें।