(छठा भाग)चेतना यात्रा-9 कानपुर से दिल्ली तक
एक दिन की देरी से चल रही है यात्रा, पूर्व घोषित कार्याक्रमानुसार क्योंकि 25 अक्टूबर को जबलपुर में ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ के आयोजन में यात्रा को शामिल होना है, जबकि यात्रा की शुरुआत उत्तरप्रदेश की राजधानी नवाबों के शहर लखनऊ से हुई थी। लखनऊ से रवाना होकर कानपुर का कार्यक्रम निबटाते हुए फतेहपुर बान्दा होते हुए कार्वी से सीधे चित्रकूट धाम यानिकि पंचवटी आरोग्यधाम पहुंची यात्रा। भगवान श्री रामचन्द्र जीके 14 वर्षीय बनवास में से साढ़े ग्यारह वर्ष यहीं गुजरे थे, यही वह पावन भूमि है जहां भगवान राम ने अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय व्यतीत किया था। माननीय पं- दीन दयालजी की शोधशाला भी यहीं पर स्थित है। चित्रकूट हिन्दुओं के लिए एक पावन तीर्थ स्थान है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि बाजारों में बिकने वाली इण्डिया रोड एटलस में चित्रकूट नाम है ही नहीं, बल्कि कार्वी का नाम अवश्य है।
बांद्रा से कार्वी तक का मार्ग खासा क्षतिग्रस्त मिला, साथ ही रूट भी काफी घुमावदार था, अतः पहुंचते-पहुंचते अंधेरा घिर आया। यहां से जबलपुर की दूरी इतनी निकट नहीं थी कि दो-चार घ्ांटों में पूर्ण कर ली जाए, जिस पर मार्ग भी काफी क्षतिग्रस्त एवं बिलकुल अनजाना था। यह मार्ग अधिकांश आदिवासी एवं वन्य क्षेत्र था। बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व पार्क के बीच में से ही होकर गुजरी यात्रा। इस मार्ग के एक ओर पन्ना तो दूसरी ओर शहडोल था। कानपुर से रवाना होने के बाद एक रात्रि चित्रकूट आरोग्यधाम पंचवटी में भी विश्राम किया, तब अगली सुबह शीघ्र ही जबलपुर के लिए यात्रा शुरू हो गई थी। मार्ग इतना क्षतिग्रस्त था कि एक बार स्वयं टायर में पंचर लगाना पड़ा, क्योंकि अन्य कोई विकल्प था ही नहीं। कार्वी से सतना होकर बांधवगढ़ के जंगल मार्ग से गुजरते हुए उचेहरा-उमरिया होते हुए शाम को समयानुसार जबलपुर पहुंच गई यात्रा, जहां बहुत ही गर्मजोशी के साथ यात्रा का स्वागत-सत्कार किया गया। जबलपुर में यात्रा के सकुशलता के लिए प्रार्थनाएं की जा रही थी, एवं लम्बे समय से वहां सब प्रतीक्षा में खड़े थे। जैसे ही यात्रा वहां पहुंची सबने बैण्ड-बाजे के साथ फूलों के हारों से यात्रा का जबर्दस्त स्वागत किया यानिकि एक तरीके से हारों से लाद दिया गया।
जबलपुर में ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ के आयोजन का भी कार्यक्रम रखा गया था। ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ मध्यप्रदेश के आयोजन का कार्यक्रम मध्यप्रदेश केबल टीवी ऑपरेटर एसोशिएसन द्वारा किया गया था, जिसका संचालन पूर्णतया पप्पू चौकसे आदि कर रहे थे। माननीय विधानसभा अध्यक्ष मध्यप्रदेश श्री ईश्वरदास रोहाणी के कर कमलों द्वारा द्वीप प्रज्वलित करवाकर ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ की शुरुआत की गई एवं विशेष अतिथियों में वहां के मेयर ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। पहली बार दिल्ली से बाहर मध्यप्रदेश के जबलपुर में आयोजित किए गए ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ के कार्यक्रम की प्रशंसा कर रहा था। आयोजकों के द्वारा हर संभव प्रयास किए गए थे कि ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ केवल उन्हीं को दिया जाए जो वास्वत में इसके अधिकारी है।
माननीय विधानसभा अध्यक्ष मध्यप्रदेश श्री ईश्वर दास राहाणी जी के गरिमामयी औजस्वी भाषण से शुरू हुआ कार्यक्रम का सीधा प्रसारण जबलपुर के लाखों टैलिविजनों तक भी पहुंचाया जा रहा था। जबलपुर की जनता ने भी कार्यंक्रम का खूब आनंद लिया एवं मध्यप्रदेश के केबल टीवी ऑपरेटरों के द्वारा आयोजित ऐसे कार्यक्रम के लिए जनता के बीच विशेष सम्मान के योग्य भी हो गए। यही इस कार्यक्रम का उद्देश्य भी है। केबल टीवी, ऑपरेटरों केा समाज वह सम्मान भी दे, जिसके वह अधिकारी हैं। इसके लिए देशभर में ऐसे ही अनेक आयोजन करने होंगे। ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ एक ऐसा मंच बन जाएगा, जिस मंच से समाज को विशिष्ट योगदान देने वाला देश का कोई भी नागरिक अथवा संस्था सम्मानित होना चाहेगी। देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों सहित मीडिया द्वारा आरम्भ किया गया यह ‘सम्मान’ दिल्ली से निकलकर अब जिस तरह से मध्यप्रदेश के जबलपुर तक आ पहुंचा है, वैसे ही देश के अन्य शहरों तक भी शीघ्र ही पहुंच जाएगा।
जबलपुर में ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ के सफल आयोजन के बाद रात्रि विश्राम जबलपुर में ही कर अगली सुबह यात्रा भोपाल होते हुए देर रात इंदौर पहुंची। मुख्य मार्ग पूर्णतया क्षतिग्रस्त होने के कारण नए मार्गों से होते कार्यक्रम की प्रशंसा कर रहा था। आयोजकों हुए यात्रा किसी तरह से इंदौर पहुंच गई, लेकिन इंदौर के भी प्रमुख ऑपरेटर मुम्बई प्रदर्शनी में गए हुए हैं। मध्यप्रदेश के तीन शहर जबलपुर -भोपाल एवं इंदौर भी डैस की द्वितीय चरण में शामिल 32 शहरों की लिस्ट में है, इसीलिए केबल टीवी ऑपरेटरों में काफी गहमागहमी है। अधिकतर ऑपरेटर इस दौरान मुम्बई दौरे पर हैं क्योंकि मुम्बई में एक प्रदर्शनी लगी हुई है। इसी कारण यात्रा जबलपुर से आरम्भ होने के बाद सीधे इन्दौर रुकी रात्रि विश्राम के लिए। जबलपुर से भोपाल का मार्ग भी काफी क्षतिग्रस्त रहा, लेकिन थोड़ा सा लम्बा रूट लिए जाने से बहुत ज्यादा खराब मार्ग से बचा जा सका। यह तभी सम्भव है जब आगे के मार्ग के लिए लोकल लोगों से पूछ लिया जाए, अन्यथा फिर से मार्गोें पर सड़कें ढूढंते रह जाना होगा। यह पूरा मार्ग आदिवासी क्षेत्र भी है अतः अन्तर्मन की आंखों से पढ़ने जानने के लिए यहां बहुत कुछ है।
पंचर लगाने के अनुभव के बाद मध्यप्रदेश इस मार्ग पर हमें एक ओर अनुभव हुआ कि डीजल खत्म होने की सूचना देने वाली लाइट को जले हुए काफी देर हो चुकी थी, इसलिए एक अच्छे से गांव के बीच में से निकलते हुए खुुली तमाम दुकानों में से एक दुकान से हमने जानकारी लेनी चाही कि पैट्रोलपम्प यहां से कितनी दूर पड़ेगा। दुकानदार ने हाथ के ईशारे से हमे यह बता दिया कि वह जो सामने एक दीवार पर कुछ लिखा दिखाई दे रहा है ना, वहीं है पैट्रोल पम्प। हम खुश होकर उस दीवार के नजदीक पहुंचे, वहां से थोड़ा आगे बढ़े दायं-बाएं सब देख उससे और आगे बढ़कर दूर दिख रही एक अगली दीवार तक भी पहुंचे मगर पेट्रोल पम्प कहीं नहीं मिला एक ऐसे गांव का आदमी झूंठ क्यों बोलेगा, शायद हमारे ढूढ़ंने में ही कमी रह गई हो, अतः पुनः गाड़ी बैक कर फिर उसी मार्ग पर पैट्रोल पम्प को तलाशत-तलाशत गाड़ी को उसी दुकान के सामने खड़ा कर हमने फिर से पैट्रोल पम्प के लिए पूछा तो उस दुकानदार ने अपने हाथ के ईशारे से जो बताया उसकी दूरी उतनी नहीं थी, जितनी कि हम पर कर गए। हम बहुत ही धीरे-धीरे उस दुकानदार के बताए गए स्थान तक पहुंचे, लेकिन वहां तो कोई पेट्रोल पम्प नहीं था, आखिरकार वहां जो दुकान थी उससे पेट्रोल पम्प के लिए पूछा, तब पता लगा कि यहीं पर मिलता है पैट्रोल या डीजल कितना चाहिए।
जवाब मिला तो हमने 10 लीटर तो डलवा ही लिया क्योंकि यहां से अभी 20-25 किमी दूर था पेट्रोल पम्प। अब भाव की बात करना बेमानी थी, क्योंकि इतना भी कम नहीं था कि एक परचून की दुकान पर डीजल मिल गया था। यह दुकान एक महिला चला रही थी, इसीलिए ज्यादा सवाल-जवाबों का कोई अर्थ ही नहीं था। इन्दौर से आगे निकलकर महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंची यात्रा। आपरेटरों के साथ बैठक के बाद महाकाल केे दर्शन किए और फिर मध्यप्रदेश से राजस्थान की ओर बढ़ चली यात्र। फिर से शाम ढ़लने लगी थी और यात्रा दो राज्यों के बार्डर एरिया से गुजर रही थी। यह मार्ग राजस्थान झालावड़ की ओर से कोटा पहुंचता है, जबकि दूसरा रास्ता नागदा-मंदसौर -नीमच-रतनगढ़ होते हुए कोटा जाता है।
अगर सीधे झालावाड़ पहुंचने में ही काफी रात हो चुकी थी। राजस्थान में कपिल भाई कोटा में नहीं थे लेकिन झालावाड़ में भी उन्हीं का नेटवर्क चलता है। उन्होंने झालावाड़ रात्रि विश्राम का आग्रह किया एवं कोटा में भी उनका प्रबंध थ्ज्ञा लेकिन रास्ते में ना ठहरकर यात्रा सीधे सावाई माधोपुर ही पहुंचकर रुकी। सवाई माधोपुर में कपिल भाई का एक बन्दा हमारे स्वागत के लिए काफी देर से प्रतीक्षा कर रहा था। उज्जैन से चलने के बाद बिन कहीं रुके सीधे-सीधे चलते रहने के बावजूद भी अर्धरात्रि में ही पहुंच सकी यात्रा। सवाई माधोपुर में कपिल भाई के प्रतिनिधि दिलीप सिंह द्वारा यात्रा का गर्मजोशी से स्वगत किया गया। यहां भाई कपिल को मेहमानवाजी में थी यात्रा। पांच सितारा रिसोर्ट मे विश्राम का विशेष बन्दोबस्त किया गया था, लेकिन यह बन्दोबस्त भी दूसरे मायनों में यादगार बन गया।
यह तो पहले से ही तय था कि यात्रा देर से पहुंचेगी अतः रिसोर्ट में रूम बुक करवाने के साथ-साथ सबके लिए भोजन भी पैक करवाकर रखवा दिया गया था, लेकिन जब दिलीप भाई के साथ हम देर रात रिसोर्ट पहुंचे तब वहां हमारे लिए एडवांस में बुक करवाया गया रूम उपलब्ध ही नहीं था। जानकारी मिली कि एक ओर कोई गैस्ट देर रात वहां पहुंचे थे, गलतफहमी में वह रूम उन्हें दे दिया गया था। रूम तो रिसोर्ट वालों ने दूसरा उपलब्ध करवा दिया, लेकिन भोजन बिल्कुल भी नहीं था। अतः रात को सवाईम माधोपुर रेल्वे स्टेशन पर जो भी मिल सका उसी से रात्रिभोज का आनंद लिया गया। वैसे भी इन्दौर से चलकर यहां पहुंचने तक का सफर काफी लम्बा और थकाऊ हो चुका था। यहां से सुबह-सुबह रनथम्बौर टाईगर रिजर्व पार्क जाना था, अतः बिना समय गवाएं शीघ्र ही रात्रिविश्राम पर चले गए। सुबह भोर से पूर्व रणथम्भौेर के लिए एण्ट्री टिकट के बन्दोबस्त में जा लगे अमन भाई! एक अन्य फैमिली जो अजमेर से रणथम्भौर घूमने आई थी उसके साथ जिप्सी शेयर पर मिल सकी, तब रूट न- 2 की पर्मीशन के साथ रणथम्भौर का सफर शुरू हो सका। वही जंगल जहां से हमें कभी निराशा हाथ नहीं लगी, इस बार पूरा जंगल छान मारा लेकिन निराशा साथ लिए वापिसी करने लगे थे हम तभी करिक्ष्माई तरीके से एक टाईगर की झलक दिखलाई दे गई। टाईगर का पीछा कर और नज़दीक पहुंचे तब लुका-छुपी करते -करते टाईगर भी काफी लम्बा सफर पूरा करके वापिस अपने शिकार पर पहुंच रहा था।
यानिकि अब तो जैसे आज ही ईद हो गई हो। यह टाईगर अब तक अपने किल को मुंह में उठाए झाड़ियाें की ओर ले जा रहा था। उसका कोई भी मूवमैंट हम अपने कैमरों सें ओझल नहीं होने दे रहे थे। लगातार उसको अपने कैमरों में कैद करते हुए जो आनन्द एवं सन्तुष्टि हमें हो रही थी उसका अनुभव बिल्कुल अदभुद था ऐसे दृश्यों को देखना अलग बात होती है और फिल्माना बिल्कुल अलग बात हुआ करती है। एक टाईगर को मुंह में पूरा हिरन दबाए लेकर चलते हुए देखना सरल नहीं होता है, तिस पर इतना नजदीक कि कैमरों स्पष्ट रूप में कैद किया जा सके बाकई जीवन की एक बड़ी उपलब्धी वाला दृश्य रहा, यह रणथम्भौर का सफर। इस टाईगर ने आज सुबह ही यह शिकार किया होगा, शिकार करकें वह अपनी टैरिटरी को विजिट करने के लिए आगे चला गया होगा लेकिन तब वह उतना भूखा नहीं रहा होगा। सुबह सें अब तक वह कई किलोमीटर घूम लेने के बाद भूखा भी हो की गया था, अतः हमारी मौजूदगी से वह बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं था।
वह सीधे चलते हुए पहले अपने पर आया, फिर उस शिकार को उसने अपने जबड़ों में उठाया और उसे पास ही की झाड़ियों में लें जाने लगा। एक बड़ा सा हिरन जिसके सींग भी थे उसका आज का शिकार बना था। टाईगर के मुंह में झूलता हुआ वह हिरन बिल्कुल विवश और मासूम लग रहा था। उसकी खुली हुई आंखे और उठे हुए अगले पैर कैमरों में स्पष्ट कैद किए जा रहे थे। मुंह में जकड़े शिकार को ऊपर उठाते हुए अपनी पूंछ को भी पूरा उठाकर वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसा दृश्य कैमरे में कैद करने के लिए किसी कैमरा मैन के लिए जीवन भी कम हो जाता है।
सारा जीवन कन्धे पर कैमरा रखे जंगलों में घूमते रहने बालों के लिए भी ऐसा दृश्य मिल पाना सरल नहीं होता है। जबकि कम से कम दो रात्रि रणथम्भौर के लिए हमने भी सुरक्षित रखी हुई थीं। लेकिन इतना कुछ मिल जाने के बाद वहां और रूक जाने का कोई अर्थ ही नहीं था। रिसोटर््स से चैक आऊट कर दिलीप सिंह के सहयोग से वहां के ए सी एफ (एसीएफ ) दौलत सिंह के साथ विशेष भेंट वार्ता की। दौलत सिंह ट्रंकलाइजर विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने ना जाने कितने ही जानवरों को ट्रंकलाइजर देकर बेहोश किया होगा। ऐसे ही एक प्रयास में रणथम्भौर के एक टाईगर की चपेट में वह स्वयं आ गए। जंगल का राजा वास्तव में जंगल में अपनी पूरी आजादी के साथ स्वच्छन्द एवं निर्भय विचरण करता है, लेकिन एक टाईगर गलती से इन्सानों के बीच पहुंच गया, तब इन्सानों के झुण्ड उस बेजुबान जानवर के दुश्मन हो गए।
जिधर भी दिखाई दे इन्सानों के झुण्ड के झुण्ड उस टाईगर के पीछे पड़ जाते थे, बेचारा टाईगर कभी गन्ने के खेत में छुपता तो कभी झाड़ियों में छुप उन इन्सानों से स्वंय को बचाने की कोशिश करता था, लेकिन जैसे ही इन्सानों की नजर में वह टाईगर आ जाता था, तब चारों तरफ से घेरते हुए इन्सान उस पर पत्थर बरसाने लगते थे। टाईगर की समझ में यह बात नहीं आ पा रही थी कि आखिर ये इन्सान उसके दुश्मन क्यों हो गए हैं, जबकि रणथम्भौर में उसने इन्सानों को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था।
टाईगर जब इन्सानों की बस्ती में पहुंच जाए तो उसे वापिस जंगल में पहुंचाने के लिए बेहोश करना जरूरी होता है। इसी मिशन पर रणथम्भौर के ए-सी-एफ- दौलत सिंह लगे हुए थे, लेकिन टाईगर को यह नहीं मालूम था कि दौलत सिंह उसी की सुरक्षा के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाए हुए है। गांव वालो ने टाईगर को डी शेष में घेर रखा था और सभी तरफ से उस पर पत्थर फेंके जा रहे थे, जबकि दौलत सिंह टाईगर को गांव वालों से बचाने एवं जंगल ले जाने के लिए उसे बेहोश कर देना चाहते थे, लेकिन दौलत सिंह से पूर्व टाईगर ने उन पर हमला कर दिया, या कि टाईगर ने स्वयं के बचाव के लिए दौलत सिंह को दबोच लिया।
टाईगर के एक ही झपट्टे में दौलत सिंह के चेहरे का दायी तरफ वाला भाग पूर्णतया क्षतिग्रस्त हो गया। उनकी दांयीआंख भी टाईगर को भेंट चढ़ गई। लेकिन ईश्वर के यहां उनके दिन अभी बाकी थे तब टाईगर भला उनको कैसे मार सकता था। बामुश्किल दौलत सिंह को उस टाईगर की गिरफ्रत से छुड़वाया जा सका एवं ऐसी आपात स्थिती में उन्हें हास्पिटल पहुंचाने के लिए माननीय मुख्यमन्त्री जी का हैलिकाप्टर भी तुरन्त आ गया। इलाज के बाद दौलत सिंह अभी भी रणथम्भौर में ही कार्यरत हैं, उसी जिम्मेदारी पर, उन्हें अपना यही जीवन पसन्द है, जबकि उनकी दांयी आंख टाईगर अटैक में बलि चढ़ चुकी है। उनके चेहरे के अनेक आपरेशनो के बाद अब कोई यह मुश्किल से ही जान पाता है कि जो दीख रहा है वास्तव में वैसा नहीं था उनका चहरा उन्हें जीवित एवं स्वस्थ देखकर यही कहना पड़ता है कि जाको राखे साईयां मार सके ना कोय। वह टाईगर रणथम्भौर से चलते-2 बहुत दूर निकल गया था।
कहा जाता है कि मथुरा तक जा पहुंचा था वह टाईगर, लेकिन बाईज्जत उसे पकड़ कर वापिस जंगल में लाकर छोड़ा गया। वही टाईगर अब सरिस्का टाईगर रिजर्व पार्क में स्वच्छन्द विचरण करता है, लेकिन उस पर निरन्तर निगरानी रखने के लिए उसे कालर पहना दिया गया है। दौलत सिंह जी भी ए-सी-एफ- के पद पर रणथम्भौर टाईगर रिजर्व पार्क में ड्यूटी पर हैं। उनके साथ विस्तृत चर्चा व साक्षात्कार कर यात्रा रणथम्भौर से जयपुर के लिए रवाना हो गई, लेकिन रणथम्भौर के नजदीक से देखना चाहते थे। यहां भी कहीं-कहीं नील गााएं दिखाई दे जाती थी, जबकि सड़कें बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त मिलीं। दे जरूर लगी परन्तु राजस्थान का अन्दरूनी ग्रमीण क्षेत्र वाकई शहरों से भिन्न था। रात्रि विश्रम जयपुर के एक आरटीडीसी के होटल गणगौर में किया। दीपावली के अवसर पर बहुत ही खूबसूरती के साथ जयपुर की सजावट की गई थी। लाईटों में जगमगा रहा था जयपुर ।
जयपुर भी डिजीटाईजेशन के द्वीतिय भाग की 38 सिटी में शमिल है, इसलिए यहां के केवल टीवी आपरेटर के साथ भी एक बैढक रखी गई। सभी आपरेटर होटल गणगौर में ही पहुंच गए। डैस पर खुलकर विस्तृत चर्चा हुई, उसके बाद आपरेटरों को दिल्ली निमन्त्रित कर थोड़ी सी शापिंग भी की गई जयपुर से कौशल एवं महेश सोलकी के साथ जयपुर शापिंग थोड़ी आसान सी हो गई, वर्ना जयपुर के बाजारों में भारी भीड़ के चलते हुए किसी बाहरी व्यक्ति के लिए काफी ज्यादा समय शापिंग में लगाना पड़ता।
जयपुर से निकल कर यात्रा का अगला पड़ाव सरिस्का ही था, क्योंकि उस टाईगर को देखने का मोह हम छोड़ नही पा रहे थे, जिसने इतना बड़ा स्ट्रागल झेल कर अब स्वंय को नियन्त्रित का सामान्य जीवन जीना तय किया है। ऐसी विषम स्थितियों में से गुजरने के बाद टाईगर एवं दौलत सिंह दोनो ही अपने सामान्य जीवन को जी रहे हैं यह वाकई ईश्वरीय ही कहा जाएगा। सरिस्का टाईगर रिजर्व पार्क पहुंचने में काफी रात हो चुकी थी। सड़के यहा भी बहुत खराब थी, लेकिन जंगल के कानूनुसार समय रहते सरिस्का पहुंच गई यात्रा। सरिस्का विचरण के लिए विशेष तौर से उस टाईगर को देखने के लिए सुबह ही समयानुसार बुकिंग खिड़की पर पहुंच गए हम एवं बताया कि हम विशेष तौर पर वह टाईगर देखने आए है, जिसने दौलत सिंह जी पर हमला किया था। उस टाईगर पर निगरानी रखने वाले दल से उसकी जानकारी प्राप्त कर फारेस्ट में घुमाने वाली जिप्शी में सवार होकर सरिस्का टाईगर रिजर्व पार्क के अन्दर उस टाईगर की तलाश में निकल पड़े हम बहुत ढूंढ़ा परन्तु कोई टाईगर नही मिल सका जबकि सरिस्का के सभी टाईगर को कालर पहनाया हुआ है। यहां एक टाईग्रैस ने अभी हाल ही में ही दो बच्चों को जन्म दिया है, उन शावको को छोड़ कर बाकी सभी टाईगर्स को कालर पहना रखा है।
सरिस्का पार्क में घूमते हुए सिग्नल तो कई जगह मिले लेकिन कोई टाईगर नहीं मिल सका । खूब ढूढ़ने की कोशिशें की गई लेकिन सफलता नहीं मिल सकी, जबकि साम्भर, नील गाय आदि भारी सख्या में दिखाई दिए सरिस्का टाईगर रिजर्व पार्क में देश के अन्य टाईगर रिजर्व पार्क से थोड़ा अलग है। यहां लोग अपने पालतू पशुओं को भी चारा खाने के लिए खुला छोड़ देते है। इन्फोरमेशन से यह तो जानकारी हमे मिल गई थी कि टाईगर ने एक बैल मार रखा है, वह अपने शिकार से ज्यादा दूर नहीं जा सकता है, लेकिन जहां उसके होने की सम्भावनाएं बताई जा रही है, वहा यह गाड़ी नहीं ले जाई जा सकती है। सरिस्का से आगे बढ़ी यात्रा, तो सीधेमथुरा पहुंची मथुरा में नया डिंजिटल हैडण्ड लगाया गया है। भाई कैलाश गुप्ता का निओ नेटवर्क का एक नई विदेशी कम्पनी के साथ गठबंधन हुआ है। नई कम्पनी के साथ नई सम्भावनाओं ने जन्म लिया है। हांलाकि मथुरा अभी डैस के सेकैन्ड फेस में शामिल नहीं है। लेकिन थर्ड फेस में तो मथुरा भी शामिल हो जाना है अतः नी ओ नैटवार्क थर्ड फेस के लिए अब पूरी तरह से तैयार हो गया है। मथुरा में ही रात्रि विश्राम कर सुबह केलाश भाई जी का नया डिजीटल सैटाप का निरीक्षण कर यात्रा मथुरा से आगे बढ़ गई।
5 सितम्बर 2013 को दिल्ली से आरम्भ हुई यह नौवी चेतना यात्रा देशभर की समस्त डैस सिटी में भी पहुंची, लेकिन अब जबकि सिर्फ आज का ही दिन शेष बचा था, अतः मथुरा से यात्रा सीधे आगरा पहुंची। आगरा में एम एस ओ के साथ अलग-अलग भेंट कर डैस पर आगरा की स्थिती की जानकारी लेकर यात्रा दिल्ली रवाना होने से पूर्व गाड़ी में प्रोब्लम आ गई। हुआ यूं कि सरिस्का मार्ग में लगे झटकों के कारण गाड़ी में पेट्रोल टैंक के अन्दर कोई क्षति पहुंची जिसकी वजह से टंकी में कितना डीजल है उसका ठीक-2 पता नहीं लग पा रहा था। आखिरकार वही हुआ जिसका डर था, आगरा में डीजल खत्म हो जाने के कारण गाड़ी का डीजल पम्प हवा ले गया, और गाड़ी ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। आखिरकार अनेक सेल्फ मारने पर भी जब गाड़ी चलने को तैयार नहीं हो पाई तब धक्के भी लगाए, लेकिन टस से मस नहीं होकर दी गाड़ी जैसे कह रही हो कि यात्रा अभी जारी रखो।
पैट्रोल पम्प से डीजल भरकर गाड़ी में डाला गया, तत्पश्चात गाड़ी में डीजल पम्प को एक्सरसाइज की गई, तब कहीं जाकर काफी कसरत करवाकर गाड़ी पटरी पर आई। एक बार स्टार्ट हो जाने के बाद फिर से यात्रा पर चलने के लिए गाड़ी पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी। दीपावली के अवसर पर सारे बाजार सजे हुए थे एवं बाजारों में रवासी भीड़ भी उमड़ी पड़ी थी, इसीलिए आगरा से दिल्ली पहुंचने के लिए सीधा यमुना एकस्प्रेस हार्दवे मार्ग से बिना कही रूके बाजारो व भीड़ से बचते हुए निर्विधन सफलता पूर्वक यात्रा पूर्व घोषित समयानुसार दिल्ली पहुंच गई।
दिल्ली में भव्य स्वागत सत्कार के लिए सभी प्रमीक्षारत थे, आखिर दो महीने बाद देशभर का कठिन भ्रमण कर यात्रा बापिस जो पहुंच रही थी। सभी ने जोरदार स्वागत किया एवं परिवार ने मंगल आरती की। पोती-पोते को गोद में उठाकर जब कन्धे से लगाया तब सारी थकावट छूमन्तर हो गई यात्रा की। प्रत्येक वर्ष की जाने वाली यात्रा में एक और सफल यात्रा का अध्याय जुड़ गया है। इस प्रकार 5 सितम्बर 2013 से आरम्भ हुई नौवी चेतना यात्रा 31 अक्टूबर 2013 को सम्पन्न हो गई, लेकिन सफर अभी रूका नहीं है, यात्रा कभी रूका नहीं करती हैं,समय के साथ-साथ चलते-चलते पगडण्डियां पथ एवं पथिक भले ही बदल जाते हो लेकिन सफर सदैव जारी रहता है। अगले सफर की ओर बढ़ते हुए समस्त सहभागियों की स्मृतियों के खजाने की पूंजी को समेटे यात्रा फिर से आगे की तैयारी मे है।
सभी का आभार व धन्यवाद सहित———–!!