हिमाचल प्रदेश में सोलन मार्ग से यात्रा बिलासपुर पहुंची। रामगढ़ का वृत्तान्त अलग से दे दिया गया है, लेकिन वहां की स्मृतियां सदैव साथ रहेंगी। उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा के निशान अभी भी पहाड़ी क्षेत्रें में स्पष्ट दिखाई दे जाते हैं। हालांकि हिमाचल में कोई तबाही नहीं हुई लेकिन पहाड़ों पर भारी वर्षा का प्रभाव पड़ा है। बिलासपुर डैम लबालब भरा हुआ है, जबकि यही बांध एक यात्रा के दौरान हमने एक सूखी नदी के समान देखा था। पीडब्ल्यूडी गैस्ट-हाउस में रात्रिविश्राम कर अगली सुबह वहां के ऑपरेटर अजय द्विवेदी से भेंट कर यात्रा अगले पड़ाव की ओर बढ़ गई। मुजफ्रफरनगर दंगे अब वहां के गांवों तक पहुंच गए हैं, सरकार पूरी तरह से दंगों को रोकने में असफल रही है। खबरें 48 लोगों के मारे जाने की आ गई हैं, अब पूरे दंगाग्रस्त क्षेत्र को अर्थात् मामला बहुत गम्भीर हो गया है। यात्रा के दौरान देश के भिन्न प्रदेशों-शहरों एवं लोगों से मिलने के साथ-साथ देश में होने वाली बड़ी घटनाओं से अपना ध्यान नहीं हटाया जा सकता है। इसलिए मुजफ्रफरनगर के दंगों की खबरें अच्छी नहीं लगती हैं।


बिलासपुर से कांगड़ा पहुंचकर रिन्कू भाई आदि से भेंट कर अगली सुबह सीधे पठानकोट होते हुए जम्मू पहुंची यात्रा। जम्मू में सुभाष भाई सहित सभी यात्रा के स्वागत में प्रतीक्षारत थे। डैस पर जम्मू एण्ड कश्मीर के ऑपरेटरों की प्रतिक्रिया को कैमरे में कैद कर वहीं रात्रिविश्राम के बाद अगली सुबह अमृतसर के लिए रवाना हुई यात्रा, लेकिन अमृतसर वाले ट्राई के ओपन हाउस में भाग लेने के लिए दिल्ली गए हुए थे। लुधियाना फास्टवे के गुरदीप भाई भी वहां ना होकर चण्डीगढ़ में थे, तब तक चलते-चलते यात्रा जम्मू से पठानकोट होते हुए जालन्धर के नजदीक पहुंच चुकी थी, मात्र 70-80 किमी- ही रह गया था जालन्धर, लेकिन अपना पूर्व निर्धाारित कार्यक्रम भी पूरा बिगड़ रहा था और वहां कोई उपलब्ध भी नहीं था, अतः जालन्धर ना जाकर डलहौजी-चम्बा के लिए यात्रा का मार्ग बदला गया। रात्रि में सीधे डलहौजी की खूबसूरत वादियों ने स्वागत किया। वहां के प्रमुख होटल माऊन्टवीय में रात्रिविश्राम किया। सुबह डलहौजी के ऑपरेटर कोहली जी के साथ डिजीटाईजेशन पर चर्चा के बाद यात्रा आगे के लिए रवाना हो गई, लेकिन तय नहीं हो पा रहा था कि आखिर अभी जाना कहां है, क्याेंकि डलहौजी के रास्ते में जगह-जगह लगे लंगरों के कारण मालूम हुआ कि कोई धार्मिक यात्रा चल रही है।


रास्ते में भटंवा गांव में लगे एक लगंर पर थोड़ा ठहर कर जानकारियां ली गई तब मालूम हुआ कि ‘मनीमहेश यात्रा’ चल रही है, जिसमें देश-विदेशों से भत्तफ़ों का सैलाब उमड़ आया है, उन्हीं की सेवा के लिए इस मार्ग में तमाम लंगर लगे हुए हैं। अमरनाथ यात्रा के बाद दूसरा नम्बर इसी मनीमहेश यात्रा का आता है। भटंवा गांव के लंगर प्रबन्धकों से यात्रा की जानकारियां लेने से ही मालूम हुआ कि हिमाचल में चम्बा से आगे भरमौर गांव से 13 किलोमीटर आगे हडसर तक गाड़ी से जाकर फिर 13 किलोमीटर पैदल ऊपर चढ़ाई करने पर ‘मनीमहेश दर्शन’ के लिए पहुुंच पाते हैं भत्तफ़जन। कृष्ण जन्माष्टमी से आरम्भ होकर राधाष्टमी तक पन्द्रह (15) दिनों तक चलती है यह यात्रा। वैसे तो भत्तफ़जन रक्षाबन्धन से ही शुरू हो जाते हैं। दुनियाभर से लोग इस यात्रा में शामिल होने के लिए इसी मार्ग से आते व जाते हैैं। इस कठिन यात्रा के श्रद्धालुओं की सेवा के लिए ही जगह-जगह लंगर लगाए जाते हैं।


बारहाल! डलहौजी से रवाना होकर चम्बा पहुंचने पर चम्बा का ऑपरेटर भी नहीं मिल सका तब भरमौर गांव के लिए आगे बढ़ चले यात्रा। बहुत ही कठिन मार्ग, पहाड़ों को काट-काट कर मार्ग बनाया हुआ था, तो बीच में पहाड़ों के बीच में से सुरंग मार्ग भी भरमौर ले जाने के लिए बनाया गया था। चम्बा से 67 किलोमीटर के ढेढ़े-मेढ़े तंग पहाड़ी रास्तों को सावधानीपूर्वक पार कर भरमौर पहुंचना तो हो गया, लेकिन इससे आगे के बारे में बिना जाने बढ़ना ठीक नहीं लगा। रात हो गई थी और टेम्प्रेचर का पारा भी काफी नीचे गिर चुका था, ठण्ड के कारण सभी ने यहां गर्म कपड़े पहने हुए थे, उन्हें देखकर मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है ठण्ड का। भरमौर में एक स्थान पर गाड़ी खड़ी कर पहले तो एक चक्कर पैदल मारकर वहां का जायजा लिया। बहुत ही संकरी सी वह भरमौर की सड़क है, जहां केवल एक ही गाड़ी नीचे से ऊपर आ जा सकती है। बिल्कुल खड़ी चढ़ाई पर एक बार अपनी गाड़ी बढ़ा देने पर सामने से आने वाली गाड़ी के कारण बीच में फंस जाने से हालत खराब हो जाती है। यहीं पर इस भरमौर गांव का मुख्य बाजार भी इसी सड़क के दोनों और है। यहां पर पैदल चलने वाले भत्तफ़ों की संख्या की भी कमी नहीं है। अतः इस सड़क पर गाड़ी चढ़ाना एक कठिन कार्य है।

भरमौर में ही भरमाषी माता का मन्दिर है, जिसके दर्शन मनीमहेश से पूर्व किए जाते हैं। चौरासी मन्दिर भी अपना विशेष महत्त्व रखता है यहां पहुंचने वाले भत्तफ़ों के लिए। सुबह मनीमहेश के लिए भरमौर से यात्रा का कार्यक्रम कैसे बनाया जाए, इसका निर्णय कर पाना बहुत कठिन हो गया था, क्योंकि भरमौर से आगे 13 किलोमीटर पर स्थित हडसर तक ही गाड़ी ले जाई जा सकती है, वहां से ऊपर 7-8 घण्टे की चढ़ाई 13 किलोमीटर की पैदल का मतलब है कि ऊपर चढ़ाई कर लेने के बाद रात्रि विश्राम वहीं ‘मनीमहेश’ में ही कर अगली सुबह वापिसी की जाए। मालूमात करने पर पता चला कि भरमौर से ऊपर मनीमहेश के लिए हैलिकाप्टर सर्विस भी है। अतः हैलिकाप्टर सर्विस के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि दो अलग-अलग कम्पनियां यहां हैलिकाप्टर सर्विस उपलब्ध करवा रही थीं, लेकिन उनमें से एक कम्पनी के हैलिकाप्टर में तकनीकी खराबी आ गई है, वह दो दिनों से उड़ान नहीं भर सका है अतः केवल एक ही चोपड़ आज उड़ान भर रहा था, लेकिन कल भी यह चोपड़ उड़ान भरेगा या नहीं यह पक्का नहीं है, क्योंकि मनीमहेश यात्रा आज सम्पन्न हो गई है। बताया गया है कि ऊपर स्नोफाल हो रहा है अतः अब ऊपर से लोग नीचे आने शुरू हो गए हैं।


आज तय नहीं हो सका कि कल क्या किया जाएगा। रात्रिविश्राम के लिए एक होटल महादेव में दो रूम ले लिए, वहां से अगली सुबह सबसे पहले वहीं पहुंचे जहां से हैलिकाप्टर सेवा मिलती है। गाड़ी रात्रि में ही हैलिपैड वाली जगह के निकट खड़ी कर दी गई थीं। हैलिकाप्टर सेवा के लिए 3-4 राऊण्ड की सवारियां आ गई थीं, अतः हमने भी तुरन्त अपनी 4 सीटें बुक करवा दीं। मात्र 5 मिनट की हवाई यात्रा के लिए 3400/- रूपये प्रति सवारी टिकट था। हैलिकाप्टर से ऊपर उड़ने का हमारे लिए यह पहला अवसर ही था, लेकिन बेहद रोमा×चक था यह पांच मिनट का सफर, जिसको शब्दों में नहीं लिखा जा सकता है, लेकिन कैमरे में कैद कर लिया। भरमौर से ऊपर मनीमहेश पहुंच कर दर्शन कर अपने तीन सहयोगी ऊपर से पैदल ही भरमौर वापिस आए, लेकिन मैं हैलिकाप्टर से ही वापिस भी आ गया। इस पूरी यात्रा का वर्णन अलग से किया जाएगा, लेकिन चेतना के साथ यह धार्मिक यात्रा दैवीय संयोग ही कहा जाएगा, क्योंकि ना तो हमारे कार्यक्रम में ही थी व ना ही हमें इस यात्रा के बारे में कुछ मालूम था, परन्तु कैलाश पर्वत से बुलावा आया तो हम भी वहां हाजिरी भर आए।


भरमौर से वापिसी फिर उन्हीं ढेढे़-मेढ़े पहाड़ी रास्तों से होकर चम्बा पहुंचकर वहां के ऑपरेटर गुुल्ला भाई से मिलकर अमृतसर की ओर बढ़ती रही यात्रा। रास्ते में चमेरा डैम में भरा पानी-नदी दूर तक साथ-साथ चलती हैं। चम्बा से थोड़ा आगे बढ़ जाने के बाद जितना भी नीचे उतरते जा रहे थे, एक चक्रवाती तूफान साथ-साथ बरसता-गरजता हुआ यात्रा का पीछा कर रहा था। जोरदार अांधी-बारिश ही नहीं बल्कि मोटे-मोटे ओले भी काफी दूर तक टप-टप कर गाड़ी पर गिरते रहे, लेकिन बिना रूके यात्रा आगे बढ़ती रही। आखिरकार पठानकोट पार कर अमृतसर मार्ग पर बटाला-गुरदासपुर तक तूफान ने अपनी शक्ति दिखलाई थी। सैकड़ों पेड़ मुख्यमार्ग पर गिरे हुए थे, जिनके कारण रास्ते अवरूद्ध हो गए थे। कई मार्गों को बदलते हुए, यहां से वहां भटक रहे थे तमाम वाहन आगे निकलने के लिए। आखिरकार सबको पारकर देर रात अमृतसर पहुंच ही गई भरमौर से चली चेतना यात्रा। रात्रि विश्राम होटल रंधावा में किया। सुबह अमृतसर ऑपरेटर भुल्लर से भेंट बिना ही यात्रा लुधियाना के लिए रवाना हो गई। जालन्धर में ऑपरेटर दर्शन कपूर के साथ अल्पाहार लेकर लुधियाना पहुंच गई यात्रा।


फास्टवे प्रमुख भाई गुरदीप के साथ डैस पर विस्तार से डिस्कशन हुई, राजू एवं पीयूष भी डिस्कशन में शामिल हो गए। वहीं शिमला के खन्ना जी से भी भेंट हो गई एवं बाजवा चण्डीगढ़ आदि भी वहीं मिल गए। विकास कपूर (रिलायंस) फईम एवं सिद्ध (फूड-फूड) व न्यूज़ 24 का प्रतिनिधी गगन तनेजा आदि अनेक लोग फास्टवे के ऑफिस में ही मिल गए, सबसे मिल-मिलाकर यात्रा वहां से आगे बढ़ी। भाई विकास अरोड़ा के साथ भावी सम्भावनाओं पर कुछ गम्भीर डिस्कशन के बाद रात्रि विश्राम भी लुधियाना के होटल गुलमोहर में किया। अगली सुबह गाड़ी की बैटरी ने फिर से प्रोब्लम की, अतः नई बैटरी लगवाई लुधियाना में। यहीं सारे मैले कपड़ों की भी ड्राईक्लीन करवाई। नाश्ता विकास अरोरा के ऑफिस में कर यात्रा आगे के लिए रवाना हो गई।

लुधियाना से रवाना होकर थोड़ा पूर्व निर्धारित मार्ग में परिवर्तन करते हुए यात्रा सीधे संगरूर होकर जींद पहुंची। जींद के ऑपरेटर रामफूल सिंह अपने अन्य साथियों सहित यात्रा के स्वागत में प्रतीक्षारत थे, उनके साथ इण्डस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर चर्चा के बाद भिवानी के लिए रवाना हो गई यात्रा, वहां राजकुमार आदि यात्रा का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा में थे। रात्रि विश्राम वहीं हरियाणा टूरिज्म के ‘बया’ रेस्ट हाउस में किया। सुबह नाश्ता राजकुमार के ऑफिस भिवानी हलचल में कर उनसे विदाई लेकर प्रदीप चौहान के आफिस में घर से आई लस्सी (मट्ठा) पीकर आगे राजस्थान की ओर बढ़ चली यात्रा। राजस्थान में झुंझनू-सीकर होते हुए इत्तिफाकन सालासर बाला जी पहुंच गई यात्रा। इस क्षेत्र में याकूब भाई का नेटवर्क है, उन्होंने सीकर में अपना बन्दा मिलने के लिए भेजने को बोला था, परन्तु बन्दा तो कोई नहीं आया बल्कि स्वंय याकूब भाई ने भी फोन नहीं उठाया, जब सीकर से सालासर पहुंच गई यात्रा। सालासर में ही हनुमान जी का बहुत प्रतिष्ठित बड़ा भव्य एवं प्रसिद्ध बालाजी का मन्दिर स्थित है। इसके भत्तफ़ों में इत्तिफाकन हम भी शामिल हो गए। सालासर में मन्दिर के बिल्कुल मुख्य दरवाजे के निकट ही मौजूद केबल टीवी ऑपरेटर मुन्ना भाई से बालाजी की महिमा हमें मालूम हुई, उन्हीं के सहयोग से बालाजी के दर्शन कर यात्रा चुरू के लिए रवाना हो गई।


जानकारी मिली कि चुरू के ऑपरेटर गौरीशंकर एक बड़े ऑपरेटर हैं, उन्होंने वहां डिजीटल हैण्डेड भी लगाया है। राजस्थान के गांवों का रास्ता पर करते हुए सालासर से रात्रि में चुरू पहुंच कर सीधे गौरीश्ांकर जी से भेंट की। उन्होंने बताया कि चुरू के साथ-साथ उन्होंने हनुमानगढ़ में भी डिजीटल हैण्डेड लगाया है। पूरा चुरू सैट्टॉप बॉक्स पर चल रहा है। वह स्वंय तो कुल साल डेढ़ साल से इस व्यवसाय को देखने लगे हैं, जबकि बता रहे हैं कि पिछले 17-18 सालों से वह केबल टीवी में हैं। अब हनुमानगढ़ में उन्हें कुछ पे चैनल नहीं मिल पा रहे हैं, लेकिन फैलाव वह आस-पास के क्षेत्रें में पूरा करना चाहते हैं। डैस लाइसेंस के बारे में भी उन्हें कुछ नहीं मालूम है परन्तु एक्सपर्ट पूरे दिखाई दिए, बिल्कुल ठेट केबल टीवी ऑपरेटर की ही तरह। ठेट ऑपरेटर का शब्द ऐसे गौरीशंकर जैसे ऑपरेटरों के लिए ही लिखा जा सकता है, क्योंकि कभी-कभी कई ऑपरेटर ऐसे काम कर ही जाते हैं जो उन्हें शोभा नहीं देता। बारहाल रात्रि विश्राम चुरू के होटल ‘सनसिटी’ में कर सुबह गौरीशंकर से बगैर मिले ही आगे बढ़ चली यात्रा।


आगे का रास्ता फिर वापिसी उसी मार्ग से होकर था, जिससे रात्रि में चुरू पहुंचे थे। अब चुरू से नागौर होते हुए यात्रा जोधपूर के लिए आगे बढ़ रही थी। चुरू से वापिस रतनगढ़-सुजानगढ़ होकर नागौर तक पूर्णतया रेगिस्तानी क्षेत्र ही है, पूरा डजर्ट क्षेत्र। इस मार्ग पर एक रेलवे फाटक के बन्द होने से वाहनों की लम्बी कतार को देखते हुए, थोड़ा सा डजर्ट की पगडण्डी पर गाड़ी बढ़ाकर देखा तब थोड़ा सा दूर जाकर दिखा तो वहां भी डजर्ट में एक बस्ती मिल गई। मेन रोड से डजर्ट की उस पगडण्डी पर उतरते हुए हमें कतई भी अनुमान नहीं था कि इससे आगे भी कोई रहता होगा, लेकिन वहां तो पूरा गांव बसा था। गांव में मन्दिर था और मस्जिद भी पक्के मकान, बिजली, पानी भी आश्चर्य हुआ, वहां एक बस्ती देखकर। बारहाल! पुनः वापिस मेन हाईवे पर पहुंचे तो फाटक अभी भी बन्द ही था जो थोड़ी और प्रतीक्षा करने के बाद खुला। बन्द फाटक के दोनों और खड़े वाहनों में एक वाहन में किसी मरीज को भी लेकर इलाज के लिए शहर ले जाया जा रहा था, जिसे बन्द फाटक से काफी तकलीफ हुई, लेकिन फाटक खुल जाने में प्राथमिकता दी।


देर रात जोधपुर पहुंच गई यात्रा, यहां ‘उम्मेद क्लब’ में रात्रि विश्राम की व्यवस्था भाई महिपाल निमबारा द्वारा करवाई गई थी। जोधपुर भी डैस सिटी है और यहां पूरी तरह से डैन का नेटवर्क काम कर रहा है। ‘उम्मेद क्लब’ की स्थापना सन् 1922 में हुई थी अतः आज भी इसकी आन-बान और शान में कोई कमी नहीं दिखाई देती है, वही रजवाड़ा पन आज भी बरकरार है। यहां ठहरना भी एक अलग अनुभव का एहसास करवाता है। चेतना यात्रा-9 के द्वितीय भाग को यहीं विराम देते हैं, यहीं से चेतना यात्रा-9 के तीसरे भाग को शुरू करेंगे, क्योंकि एक नया बदलाव शुरू हो रहा है यहां से। यात्रा के इस भाग में हिमाचल से जम्मू जाते हुए एक बन्दर पकड़ने वाला भी पिंजड़ा लगाए मिला था, जिसके पिंजड़े में दो बन्दर खाने के लालच में फंस गए थे, लेकिन बाकी बन्दर भाग गए थे। दूसरी जगह पिंजड़े में कोई बन्दर नहीं फंसा, शायद उसकी गाड़ी में बन्द बन्दरों ने बाहर के बन्दरों को बचने के लिए कोई मूक सन्देश दे दिया था। यात्रा में ऐसे अलग-अलग अनुभव मिलते ही रहते हैं, जिन्हें पाठकों तक पहुंचाने का आनन्द हम भी लेते है। आगे की स्मृतियों के लिए तीसरे भाग की प्रतीक्षा करें।