केबल टीवी को देखने के नजरिए भी अलग-अलग हैं। व्यवसासिक नजरिए से देखें तब अदना सा दिखने वाला यह व्यवसाय स्वंय में इतना आकर्षण रखता है कि भारत में जैसे ही व्यवसायिक रूप में इसकी शुरूआत हुई वैसे ही देश के प्रतिष्ठित उद्योग घरानों को इस व्यवसाय के प्रति इतना आकर्षण हुआ कि वह इस व्यवसाय में उतरने से स्वंय को रोक नहीं सके। बिना ज़रा सा भी समय गंवाए वह केबल टीवी व्यवसाय में भी अपने पांव जमाने के लिए घुसपैठ कर गए। हालांकि सफलता मिलने की बात अलग है, सभी को सफलता हाथ नहीं लगी। ऐसे असफल उद्योगपति कुछ करोड़ गंवाकर आराम के साथ इस व्यवसाय से बाहर भी हो गए जिनमें प्प्ज्स् अर्थात बिड़ला ग्रुप एवं आरपीजी यानिकि गोयना ग्रुप सहित कई और भी शामिल रहे। कोई हार-जीत का मुकाबला नहीं , धन्धा-धन्धा है किसी को रास आया, किसी को नहीं आया, लेकिन केबल टीवी व्यवसाय ने आकर्षित किया, इस बात में कोई अतिश्योत्तफ़ी नहीं है।

जो असफल रहे वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर केबल टीवी को टाटा कर गए, लेकिन हिन्दुजा ग्रुप, रहेजा ग्रुप ऐसे जमे कि बस छा गए। इसी व्यवसाय का वह भी एक अहम हिस्सा बन गये। इसी तरह से ब्रॉडकासि्ंटग के क्षेत्र से केबल टीवी के क्षेत्र में भी अपना वर्चस्व जमाने के लिए स्टार टीवी के द्वारा ज़ी ग्रुप को साथ लेकर की गई, लेकिन ज़ी-स्टार की सहभागिता लम्बी नहीं चल पाई परन्तु दोनों की भागीदारी से उपजा सिटी केबल आज भी अपनी मौजूदगी बनाए हुए है केबल टीवी में, जबकि स्टार टीवी, ज़ी ग्रुप से अलग हो जाने के बाद रहेजा ग्रुप के साथ केबल टीवी का भी हिस्सा बने रहने का मोह नहीं छोड़ पाया। इन्हीं के बीच में से कई और केबल टीवी व्यवसाय की धुरी बन गए और एम-एस-ओ- कहलाते हैं।


केबल टीवी व्यवसाय के संचालकों में इस तरह से दो ध्रुव बन गए। जिनमें केबल टीवी ऑपरेटर एवं एम-एस-ओ- दो भाग हो गए। यहीं से इस व्यवसाय में पहेलियां बनने-बुझने लगी, क्योंकि ऑपरेटर भी एम-एस-ओ- की श्रेणी में स्वंय को स्थापित करने में सफलता हासिल करते गए। आरटेल (उड़ीशा), जीटीपीएल (गुजरात), मंथन (कोलकाता), यूसीएन (नागपुर), आईसीसी (पुणे), फास्टवे (पंजाब), एकट्राई (बंगलौर), एशिया नेट (केरल) आदि अनेक केबल टीवी ऑपरेटरों ने स्वंय को एक कामयाब एम-एस-ओ- के रूप में स्थापित किया जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इन केबल, सिटी केबल, हाथवे केबल, डीजी केबल एवं डैन केबल ने अपना परचम लहराया है। केबल टीवी व्यवसाय में ज़ी ग्रुप या स्टार टीवी का उतरना दूरदर्शी सोच की ज़रूरत थी, क्योंकि उन्हें दिखाई दे रहा था कि शीघ्र ही ब्रॉडकासि्ंटग क्षेत्र में कई और भी ब्रॉडकास्टर्स शामिल हो जाएंगे। चैनलों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जाएगी, तब बाजी केबल टीवी ऑपरेटरों के हाथों में चली जाएगी।

वही तय करेंगे कि किस चैनल को चलाएं या किसको नहीं चलाएं। यानिकि चैनल तो ले आयो लेकिन ऑपरेटरों ने चलाने को ही ना कर दिया तब क्या करोगे, क्योंकि 1994 से ही पे चैनलों की भी ‘स्टार मूवी’ से शुरूआत हो चुकी थी। ज़रूरी तो नहीं कि ऑपरेटर हरेक चैनल को प्रसारण के लिए ब्रॉडकास्टर्स को भुगतान करें। केबल टीवी ऑपरेटरों ने गर चैनल चलाने का विरोध ही करना शुरू कर दिया तब उसका उपाय तो ढूंढना ही होगा, इसीलिए ब्रॉडकास्टर्स के लिए ब्रॉडकासि्ंटग के साथ-साथ केबल टीवी का क्षेत्र भी उतना ही ज़रूरी हो गया। इसीलिए स्टार टीवी ने सबसे पहले ज़ी ग्रुप के साथ मिलकर सिटी केबल की नींव रखी, लेकिन ज़ी से अलग हो जाने के बाद स्टार टीवी ने रहेजा ग्रुप के हाथवे केबल में भी अपनी हिस्सेदारी बनाई।
आज बाईस-तेईस वर्षों की इस केबल टीवी इण्डष्ट्री की चकाचौंध दुनियाभर के धनकुबेरों को आकर्षित कर रही है, बात कहां तक पहुंचेगी, फिलहाल पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन कयास पूरे लगाए जा सकते हैं कि अभी इस व्यवसाय का सफरनामा जारी है, कहां तक पहुंचेगा नहीं मालूम, लेकिन उपभोक्ताओं का जो जखीरा यहां केबल टीवी की झोली में है वैसा आंकड़ा विश्व में कहीं और नहीं है।

यह एक बड़े बदलाव की बयार है, जिसमे टैक्नोलॉजिकल बदलावों के साथ-साथ कानूनन बदलाव भी नए आयाम बनाएंगे। इन्हें बहुत ही बारीकी के साथ देश के हरेक केबल टीवी ऑपरेटर को समझना होगा, अन्यथा इस व्यवसाय से बाहर हो जाने से उसे कोई रोक नहीं पाएगा। केबल टीवी व्यवसाय की शुरूआत करने वाले भारत के केबल टीवी ऑपरेटरों ने स्वंय की उपलब्धी पर कभी उतनी गंभीरता से नहीं सोचा कि आखि़र उन्होंने कैसे इसे एक व्यवसायिक जामा पहनाया, और क्यों इस व्यवसाय ने देश के प्रतिष्ठित उद्योग घरानों को आकर्षित किया\ वह आए तो उनके साथ मनी पावर सहित मसल पावर का आना भी स्वाभाविक ही था, लेकिन लाख जतन कर भी वह केबल टीवी ऑपरेटरों पर ही निर्भर रहे, सीधे-सीधे उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच सके। अपनी इसी उपलब्धि को ही केबल टीवी ऑपरेटर समझ लेते तब भी बात अलग होती, लेकिन स्वंय पर उनकी खूब मार पड़ने के बावजूद भी वह डटे रहे यह भी कम नहीं है।

अब सारा का सारा सिस्टम ही बदल रहा है। टैक्नोलॉजी को ही बदले जाने के लिए कानून में संशोधन करवा दिया गया है। एनालॉग से डिजीटाईजेशन पर चला जाएगा केबल टीवी, जिसकी समय-सीमा तय हो चुकी है 31 दिसम्बर, 2014 जब पूरा देश ही डिजीटाईजेशन पर चला जाएगा, अर्थात 31 दिसम्बर, 2014 के बाद भारत में एनालॉग केबल टीवी प्रसारण पूरी तरह से गैर-कानूनी हो जाएगा। इसकी शुरूआत 1 नवम्बर, 2012 से इसके प्रथम चरण से हो चुकी है। अब 1 अप्रैल, 2013 से देश की ओर 38 सिटी को लेकर द्वितीय चरण भी चालू हो गया है एवं शीघ्र ही तृतीय चरण के निकट पहुंचने वाली है केबल टीवी इण्डस्ट्री, लेकिन केबल टीवी ऑपरेटरों के रवैये से ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कि वह इस बदलाव की गंभीरता को समझा पाने में बहुत देर कर रहे हैं। जैसे कि वह विवश से किसी बहाव में बह रहे हैं, होने क्या जा रहा है अथवा केबल टीवी किस भविष्य की ओर बढ़ चला है, ऑपरेटरों के लिए वह समझ पाना कठिन होता जा रहा है, शायद यही कारण है कि अब उसका बहुत ज़्यादा छटपटाना भी शुरू हो गया है।

ऑपरेटरों में असुरक्षा की भावना ज़्यादा घर करती जा रही है, लेकिन मार्ग नहीं खोज पा रहा है। हालांकि स्वंय को पूरी तरह से सुरक्षित बना लेने में वह सक्षम है, लेकिन दूरदर्शिता के अभाव के साथ-साथ ठुका हुआ विश्वास भी चाहिए सफलता के लिए जो उसके पास नहीं है। ना ही वह किसी दूसरे पर करता है और ना ही कोई दूसरा उस पर, इसीलिए सही दिशा की ओर नहीं बढ़ पा रहे हैं केबल टीवी ऑपरेटर।


14 जनवरी, 2003 को मकर सक्रांन्ति के शुभ दिन कण्डीश्नल एक्सेस सिस्टम (ब्।ै) के लिए बनाए गए कानून को लागू किए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन केबल टीवी ऑपरेटरों में उसे लेकर भी कन्फ्रयूजन ही कन्फ्रयूजन थे, जबकि वही इलाज भी था। इसीलिए देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों का कन्फ्रयूजन दूर करने की सोच कर उस समय चेतना यात्रा की योजना तैयार की गई थी। 2005 में आरंभ हुई चेतना यात्रा आज भी जारी है। बीते आठ वर्षों में लगातार आठ चेतना यात्रएं देश की कर लेने के बावजूद भी नौवीं चेतना यात्रा की तैयारी शुरू हो गई है। केबल टीवी व्यवसाय का चेतना यात्रा भी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। अब देशभर में तमाम आयोजनों के साथ यात्रा आगे बढ़ती जाती है। देश के कोने-कोने में पहुंच कर छोटे-छोटे गांव कस्बों की भी तमाम कड़ियों को जोड़ने का प्रयास चेतना यात्रा के अर्न्तगत किया जाता है।

भारतीय ब्रॉडकासि्ंटग एण्ड केबल टीवी व्यवसाय में प्रत्येक वर्ष की जाने वाली इस चेतना यात्रा का महत्त्व तब और बढ़ जाता है जब इसमें से ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक करने का अमृत निकलता है। पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान को रोकने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है एवं देश के तमाम स्कूलों में बच्चों को पृथ्वी के प्रति उनकी िज़म्मेदारी की बात समझाई जाती है या फिर सबको साथ लेकर सब जगह वृक्षा रोपड़ करवाया जाता है, तब केबल टीवी से जुड़े हर शख्स का सीना गर्व से फूल जाता है, क्योंकि अपने लिए तो हर कोई कुछ भी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है, लेकिन जब समूची मानव जाति के लिए निःस्वार्थ भाव से कुछ भी किया जाता है तब जो सन्तुष्टि मिलती है, उसे किसी भी कीमत में तोला नहीं जा सकता है।


ब्रॉडकासि्ंटग एण्ड केबल टीवी इण्डस्ट्री को ‘ग्रीन ब्रॉडकासि्ंटग’ के बैनर तले पृथ्वी के बढ़ते जा रहे तापमान को रोकने के लिए यथासंभव जो भी किया जा सकता है, किए जाने के लिए इस व्यवसाय में संलग्न हर शख्स को उत्प्रेरित करना चेतना यात्राओं की विशेष उपलब्धि कही जाएगी। सबकी सहभागिता के साथ देश के भिन्न शहरों में लगाए गए पौधे अब वृक्ष बनते जा रहे हैं, कई फलदार वृक्षों पर फल भी आ गए हैं, उन्हें देखकर उनको लगाने वालों की खुशी को बयां नहीं किया जा सकता है। ब्रॉडकासि्ंटग एण्ड केबल टीवी इण्डस्ट्री में बरसने वाली अकूत दौलत की चमक तो सबको आकर्षित कर अपनी ओर खींचती है, लेकिन इसकी शत्तिफ़ अद्भुद है। यह अन्ना जैसे बड़े-बड़े आन्दोलनों को जन्म दे सकती है, तो भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों तक भी पहुंचा सकती है, लेकिन प्रकृति की सुरक्षा के लिए किए जाने वाले ऐसे प्रयासों से वह आंखें मूंद लेती है। निरन्तर बिना रूके, बिना थके प्रत्येक वर्ष की जाने वाली इस चेतना यात्रा को समाचार चैनलों पर वह जगह नहीं मिल पाती है जिसकी वह हकदार है।


देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों को आपस में जोड़ना उनकी समस्याओं के समाधान निकालने का प्रयास करना एवं भावी संभावनाओं के प्रति उन्हें जागरूक करना यात्रा का प्रथम कर्त्तव्य होता है। ब्रॉडकास्टर्स, एम-एस-ओ- एवं केबल टीवी ऑपरेटरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना अर्थात इन सबके बीच एक मजबूत ब्रिज का दायित्व निभाना यात्रा का दूसरा कर्त्तव्य होता है, जबकि समूची पृथ्वी के लिए किए जाने वाले कार्यों में इण्डस्ट्री के सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। कण्डीश्नल एक्सेस सिस्टम के बाद डिजीटाईजेशन पर पहुंची इस इण्डस्ट्री में इस बार की जाने वाली चेतना यात्रा का बहुत ही विशेष महत्त्व है, क्योंकि डैस की शुरूआत होने के साथ ही बहुत सारे भ्रम भी इस व्यवसाय में फैल गए हैं। सभी वर्ग स्वंय को ठगा महसूस कर रहे हैं, लेकिन नया कानून अब इम्प्लीमेंट होना शुरू हो गया है।

यहीं से इण्डस्ट्री को अब और ऊंचाईयों की ओर ले जाना है, लेकिन सभी को साथ लेकर सबके अधिकारों का ध्यान रखकर आगे बढ़ना सबको भाएगा। आपसी प्रतिस्पर्धा में भला मुफ्रत के भाव में भी कब तक माल लुटाया जा सकता है। अतः केबल टीवी के प्रतिस्पर्धी डी-टी-एच- ऑपरेटरों को भी इसी व्यवसाय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानते हुए साथ लेकर आगे बढ़ना ज़्यादा कारगर सिद्ध होगा यह सब तभी सम्भव है, जब सभी एक-दूसरे पर भरोसा करें, विश्वास करें। अपनी-अपनी में ही सब लगे रहे तो समय ज़्यादा खराब होगा और परिणाम भी अपेक्षानुसार नहीं आ पाएंगे। आवश्यकता है म्युचल अण्डरस्टैंडिंग की, समझदारी की, दूरदर्शिता की एवं सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि दूसरों की ज़रूरतों को भी समझने की। सभी के सहयोग से ही यह इण्डस्ट्री आज तक पहुंच सकी है, अतः ब्रॉडकास्टर्स हों या फिर एम-एस-ओ- किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि केबल टीवी ऑपरेटरों की कोई भूमिका ही नहीं रही। इसी तरह से केबल टीवी ऑपरेटरों को भी स्वंय को खुदा नहीं समझना चाहिए, ब्रॉडकास्टर्स के बगैर उनका महत्त्व ही क्या होता।

इसी तरह से डी-टी-एच- ऑपरेटरों को भी एम-एस-ओ- अथवा केबल टीवी ऑपरेटरों को अपना शत्रु नहीं समझना चाहिए। ग्राहकों के पास पहुंचाया जाने वाला प्रोडक्ट तो दोनों के पास एक ही है केवल रास्ते ही तो अलग-अलग हैं फिर झगड़ा कैसा\ पैसा तो उपभोक्ता की जेबों से ही आना है फिर मुफ्रत के भाव में क्यों—\ इसी प्रकार से इण्डस्ट्री के सभी वर्गों को जोड़ने-जगाने का लक्ष्य लिए ‘चेतना यात्रा-9’ 5 सितम्बर को दिल्ली से शुरू की जायेगी।

‘चेतना यात्रा-9’ का फोकस विशेष तौर पर डैस पर होगा। देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों में डैस को लेकर जो भ्रम हैं उन्हें दूर करने का प्रयास इस यात्रा में किया जाएगा। डिजीटाईजेशन पर डैस के दूसरे फेस के कुल 38 शहरों में ‘राऊण्ड टेबल डिस्कशन ऑन डैस’ भी आयोजित किए जाएंगे तो अनेक शहरों में बड़े सम्मेलनों के आयोजन होंगे।
देशभर के तमाम शहरों में विद्यमान हार्डवेयर वालों को भी इस बार विशेष रूप से यात्रा के साथ जोड़ा जाएगा। भिन्न चैनलों के चैनल डिस्ट्रीब्यूटरों सहित चैनलों के प्रतिनिधियों को भी यात्रा में शामिल किया जायेगा। प्रयास किया जायेगा कि डी-टी-एच- ऑपरेटरों को भी यात्रा का सहभागी बनाकर आपसी भेदभाव को दूर किया जाए, अन्यथा केबल टीवी में डी-टी-एच- को एक बड़ा शत्रु ही समझा जाता है।

समूची इण्डस्ट्री का लक्ष्य ता उपभोक्ता ही है, भले ही मार्ग भिन्न हों तब बैर कैसा, सबको संयुक्त प्रयास करते हुए श्रेष्ठ सेवाएं उचित दरों पर उपलब्ध करवानी चाहिए। विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ताओं का जखीरा इस इण्डस्ट्री के पास है, केबल टीवी से आगे निकलकर उपभोक्ताओं के लिए और भी बहुत कुछ इसी माध्यम से उपलब्ध करवाए जाने की ओर बढ़ना चाहिए इण्डस्ट्री को। इसके लिए अब उपभोक्ताओं के और निकट जाने का समय आ गया है, अतः समूची इण्डस्ट्री को दूरदर्शिता पूर्ण सोचने व निर्णय लेने का समय आ गया है। यह तभी सम्भव है जब समस्त कड़ियों को आपस में जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर एक विशाल संगठन का गठन किया जाए, नाम ‘मीडिया क्लब ऑफ इण्डिया’ भी रखा जा सकता है, लेकिन तार केन्द्र से लेकर देश के प्रत्येक वार्ड तक जुड़े होने चाहिए, जिनकी शाखाएं हरेक गांव-कस्वे तक पहुंची होनी चाहिएं, तभी ट।ैधटव्क् अथवा अन्य व्यवसायिक लाभ भी भविष्य में जोड़ने सरल हो जाएंगे समूची कम्युनिटी के लिए। नौवीं चेतना यात्रा ग्लोबलवार्मिंग डैस सहित कई और लक्ष्य भी साथ लेकर अपनी तैयारी कर रही है। जिसकी प्रतीक्षा सारे देश में की जा रही है।

व्यवसासिक नजरिए से देखें तब अदना सा दिखने वाला यह व्यवसाय स्वंय में इतना आकर्षण रखता है कि भारत में जैसे ही व्यवसायिक रूप में इसकी शुरूआत हुई वैसे ही देश के प्रतिष्ठित उद्योग घरानों को इस व्यवसाय के प्रति इतना आकर्षण हुआ कि वह इस व्यवसाय में उतरने से स्वंय को रोक नहीं सके। बिना ज़रा सा भी समय गंवाए वह केबल टीवी व्यवसाय में भी अपने पांव जमाने के लिए घुसपैठ कर गए। हालांकि सफलता मिलने की बात अलग है, सभी को सफलता हाथ नहीं लगी। ऐसे असफल उद्योगपति कुछ करोड़ गंवाकर आराम के साथ इस व्यवसाय से बाहर भी हो गए जिनमें प्प्ज्स् अर्थात बिड़ला ग्रुप एवं आरपीजी यानिकि गोयना ग्रुप सहित कई और भी शामिल रहे। कोई हार-जीत का मुकाबला नहीं, धन्धा-धन्धा है किसी को रास आया, किसी को नहीं आया, लेकिन केबल टीवी व्यवसाय ने आकर्षित किया, इस बात में कोई अतिश्योत्तफ़ी नहीं है।

14 जनवरी, 2003 को मकर सक्रांन्ति के शुभ दिन कण्डीश्नल एक्सेस सिस्टम (ब्।ै) के लिए बनाए गए कानून को लागू किए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन केबल टीवी ऑपरेटरों में उसे लेकर भी कन्फ्रयूजन ही कन्फ्रयूजन थे, जबकि वही इलाज भी था। इसीलिए देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों का कन्फ्रयूजन दूर करने की सोच कर उस समय चेतना यात्रा की योजना तैयार की गई थी। 2005 में आरंभ हुई चेतना यात्रा आज भी जारी है। बीते आठ वर्षों में लगातार आठ चेतना यात्रएं देश की कर लेने के बावजूद भी नौवीं चेतना यात्रा की तैयारी शुरू हो गई है। केबल टीवी व्यवसाय का चेतना यात्रा भी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। अब देशभर में तमाम आयोजनों के साथ यात्रा आगे बढ़ती जाती है। देश के कोने-कोने में पहुंच कर छोटे-छोटे गांव कस्बों की भी तमाम कड़ियों को जोड़ने का प्रयास चेतना यात्रा के अर्न्तगत किया जाता है।

‘चेतना यात्रा-9’ का फोकस विशेष तौर पर डैस पर होगा। देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों में डैस को लेकर जो भ्रम हैं उन्हें दूर करने का प्रयास इस यात्रा में किया जाएगा। डिजीटाईजेशन पर डैस के दूसरे फेस के कुल 38 शहरों में ‘राऊण्ड टेबल डिस्कशन ऑन डैस’ भी आयोजित किए जाएंगे तो अनेक शहरों में बड़े सम्मेलनों के आयोजन होंगे।