(पांचवां भाग)चेतना यात्रा-9हैदराबाद से कानपुर तक
आंध्रप्रदेश में दशहरा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दशहरा पर नौ दिनों के लिए भव्य झांकियों की सजावट शहरों में अपना अलग ही आकर्षण रखती है। हजारों लोगों की भीड़ उन झांकियों को देखने के लिए रोजाना उमड़ती है। दशहरा के दिन यह झाकियां विसर्जन के लिए ले जाई जाती है। प्रत्येक झांकी दूसरी झांकी से भव्य दिखाने का प्रयास किया जाता है। हैदराबाद में आज ही दशहरा है, इसलिए पूरा हैदराबाद भिन्न-भिन्न झांकियों के साथ सड़कों पर उमड़ा हुआ है। लोग नाचते, गाते, ढोल-मंजीरे बजाते हुए गुलाल उड़ाते अपनी-अपनी झांकियों के साथ टोलियों में विसर्जन के लिए जा रहे हैं। बहुत ही खूबसूरत झांकियों की सजावट है, अधिकांश दुकाने बाजार बंद हो गए हैं। पूरी तरह से सारा शहर दशहरा मय हो गया है।
हैदराबाद एक ऐतिहासिक शहर है। चार मिनार के साथ ही शिव जी का विशाल मंदिर भी स्थित है। इसके आस-पास का बाजार पूरा खुला हुआ है। इस बाजार में भारी भीड़ दिखाई दे रही है। हैदराबादी बिरयानी ही नहीं बल्कि हैदराबाद की पर्ल ज्वैलरी की मांग विश्वभर में होती है। यहां से सानिया मिर्जा ने खेल की दुनिया में विश्व पटल पर अपना नाम दर्ज करवाया जो बाद में एक पाकिस्तानी क्रिकेटर के साथ शादी कर वहां जा बसीं। एक कडुवाहट के साथ लिया जाने वाला नाम जनाब ओबेसी का भी है, जो खुलेआम हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं, वह भी यहां से अपनी घिनौनी नेतागिरी की दुकान चलाते हैं। हैदराबाद में भारी भीड़ सड़कों पर उमड़ी पड़ी है। सभी केबल टीवी ऑपरेटर भी दशहरा उत्सव में व्यस्त हैं। कुल आठ एम-एस-ओ यहां अपनी सर्विस दे रहे हैं। डैस के द्वीतीय चरण में यह शहर भी एक अप्रैल 2013 से शामिल हो गया है। अतः एनालाग प्रसारण यहां भी पूरी तरह से बंद है एवं बिना सैटटॉप बॉक्स के किसी भी टीवी को कोई चैनल नहीं मिल रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि एण्टरटेनमैंट टैक्स यहां केवल 4-3-2 रूपए प्रति उपभोक्ता ही लगा हुआ है।
आंध्रप्रदेश में केबल टीवी पर एण्टरटेनमैंट टैक्स शहरों की श्रेणीनुसार लगा हुआ है, ए ग्रेड की श्रेणी में सबसे अधिक 4 रूपए प्रति टीवी तो बी ग्रेड की सिटी में 3 रूपए एवं शेष क्षेत्र में मात्र 2 रूपए प्रति टीवी लगा हुआ है। डैस के द्वितीय चरण में आंध्रप्रदेश के कुल दो ही शहर हैदराबाद एवं विशाखापटनम अभी कुल 38 सिटी में शामिल किए गए हैं। हैदराबाद से यात्रा सीधे नागपुर जाएगी नागपुर अभी काफी दूर है, इसलिए दशहरा की धूम-झांकियों से निकलते हुए यात्रा आंध्रप्रदेश से महाराष्ट्र नागपुर के हाईवे की ओर निकलकर मैडचल शहर जाकर रात्रि विश्राम कर प्रातः नेशनल हाईवे-7 से नागपुर के लिए रवाना हो गई। यह मार्ग बीच-बीच में बहुत ही खराब रहा, लेकिन हैदराबाद नागपुर तक ठीक-ठाक ही सफर हो गया थोड़ा सा नक्सलग्रस्त क्षेत्र भी है यह क्षेत्र, क्योंकि आंध्र-महराष्ट्र का बार्डर क्षेत्र है। अभी एक बड़ी वारदात से नक्सलवादियों ने यहां अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवाई है।
नागपुर में बड़ी मीटिंग यात्रा का स्वागत के लिए प्रतीक्षा कर रही थी, अतः समयानुसार यात्रा कुशलपूर्वक नागपुर पहुंच गई। हैदराबाद में भी दशहरा केा लेकर विशेष सुरक्षा का बन्दोबस्त तो था ही लेकिन दशहरा से अगले दिन वहां भाजपा की बड़ी रैली भी थी जिसमें राष्ट्रीय स्तर के अनेक नेता आने वाले थे, अतः वहां सुरक्षा कुछ अतिरिक्त चाक चौबंद थी। नागपुर में भव्य स्वागत के बाद वहां ऑपरेटरों के साथ आयोजित बैठक में सीधे-सीधे उनके सवालों के जवाब देकर कन्फ्रयूजन दूर करने के प्रयत्न किए गए। शाम को दैनिक भास्कर के साथ एक भेंट और फिर रात्रि विश्राम कर प्रातः यात्र महाराष्ट्र के नागपुर शहर से छत्तीसगढ़ के लिए यात्र बढ़ चली। डैस के अंतर्गत द्वितीय चरण के लिए घोषित 38 शहरों में नागपुर का भी नाम शामिल है। महाराष्ट्र के नौ शहरों को डैस के द्वीतिय चरण में शामिल किया गया है, लेकिन पड़ौसी राज्य आंध्रप्रदेश में एण्टरटेनमैंट टैक्स लगा रखा है।
इतना ज्यादा टैक्स लगाए जाने का पूरे महाराष्ट्र में विरोध किया जा रहा है, अतः यह भी एक बड़ा कारण है कि महराष्ट्र में डैस के अर्न्तगत शामिल किए गए नौ शहरों में डैस पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है। ऑपरेटरों व एम-एस-ओ के बीच भी टैक्स को लेकर तमाम भ्रम की स्थिती बनी हुई है। दैनिक भास्कर नागपुर में यात्रा को लेकर प्रकाशित खबर के द्वारा भी भ्रम को दूर करने का एक सार्थक प्रयास करने की कोशिश की गई। नागपुर से भण्डारा तक मित्र प्रकाश दुबे जी भी यात्रा में साथ रहे, उन्हें भण्डारा छोड़ यात्रा आगे बढ़ चली। नागपुर की व्यवस्था भाई सुभाष बान्तै सहित नरेंद्र-गोटू भाई आदि के द्वारा की गई थी। जबकि हैदराबाद में स- सेवा सिंह एवं परिवार दशहरा पर्व का मेजबान रहा। नागपुर में दशहरा की धूम डाण्डिया कार्यक्रमों के कारण बहुत आकर्षक होती है, जो कि दो दिन पूर्व ही सम्पन्न हो गई।
नागपुर से रायपुर को यह मार्ग भी महाराष्ट्र- छत्तीसगढ़ बार्डर पर है, अतः यह क्षेत्र भी अक्सर नक्सल वादियों की गतिविधियों के कारण खबरों में सुर्खियां बटोरता रहता है। बारहाल भण्डारा से होते हुए सीधे दुर्ग-भिलाई पहुंची यात्रा। दुर्ग-भिलाई एक तरह से ट्विन शहर हैं। दोनों एक-दूसरे से बिलकुल सटेे हुए।
ऑपरेटरों के साथ भेंट कर यात्रा सीधे रायपुर के लिए आगे बढ़ी क्योंकि रायपुर में ही छत्तीगढ़ के एक विशिष्ट टूरिज्म, शिक्षा, धर्मस्व, संस्कृति एवं पीडब्लूडी श्री ब्रजमोहन अग्रवाल जी के साथ एक भेंट वार्ता भाई प्रकाश दुबे जी के द्वारा तय की गई थी। रात्रि विश्राम रायपुर में ही किया गया क्योंकि मंत्री जी से भेंट के लिए समय रात के 11 बजे के बाद तय हुआ था। राजनीतिक जीवन देखने वालों को भले ही आनंद दायक दिखता हो लेकिन कठिन कम नहीं होता है। ब्रिज मोहन जी रात्रि 2 बजे तक लोगों से मुलाकात करते हैं और फिर सुबह से ही लोगों की उनसे मिलने के लिए भीड़ लग जाती है। आम जिन्दगी में एक दिन में ही थक्कर चूर हो जाएगा आदमी, लेकिन राजनीतिक जीवन को जीने वालों के लिए यही दिनचर्या होती है। रायपुर के ऑपरेटरों के साथ इण्डस्ट्री की भावी सम्भावनाओं पर मीटिंग लेकर यात्र छत्तीसगढ़ से उड़ीसा के लिए रवाना हो गई। छत्तीसगढ़ से उड़ीसा का यह मार्ग भी नक्सल ग्रस्त कहलाता है। आदिवासी क्षेत्र भी है, इसी मार्ग से सीधे सम्बलपुर पहुंच विश्राम किया।
सम्बलपुर से केन्दझुरगढ़ होकर सीधे वेस्ट बंगाल कोलकाता पहुंची यात्रा। उड़ीसा में तकरीबन एक छत्र राज है, ओरटैल का। हालांकि डैस के अन्तर्गत उड़ीसा का अभी कोई शहर नहीं आया है, लेकिन ओरटैल कं- आरम्भ से ही डिजीटल पर काम कर रही है। उड़ीसा से निकलकर अब पड़ौसी राज्यों में भी ओरटैल ने अपना विस्तार किया है। बारहाल उड़ीसा से कोलकाता मार्ग भी भारी बारिश के कारण काफी क्षतिग्रस्त मिला। आखिरकार देर रात्रि में यात्रा ने कोलकाता मे प्रवेश किया। कोलकाता में यात्रा का स्वागत करने के लिए भाई सुरेश सेतिया आगे आए। उन्हीं के साथ रात्रि भोज एवं उनकी मेहमानवाजी में ही कोलकाता विश्राम हुआ। काली पूजा के कारण कोलकाता के ऑपरेटर धार्मिक कार्यक्रमों में अति व्यस्त दिखाई दिए। डैस के प्रथम चरण में शामिल कोलकाता में भी अब एनालाग प्रसारण पूर्णतया बंद हो चुका है।
बिना सैट्टाप बॉक्स के किसी भी टीवी को कोई चैनल उपलब्ध नहीं है। लेकिन इससे आग अभी कोलकाता भी बढ़ न हीं सका है। दशहरा पर्व को मनाने का तरीका बंगाल में उत्तरभारत से बिलकुल भिन्न है, लेकिन मनाया बहुत जोर-शोर से जाता है। यहां बड़े-बड़े भण्डार सजाए जाते हैं। बांसो के पण्डालों के द्वारा जो झांकियां बनाई जाती है, वह बहुत ही आकर्षक अद्भुत होती है। नौ दिन, नौ देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। साऊण्ड सिस्टम पर देवी माता के भजनों की गूंज पूरे बंगाल में गूंजती है। हर गली मुहल्ले की अलग-अलग झांकियां सजती है। दशहरा के अवसर पर एक प्रकार से पूरा बंगाल वार्षिक जश्न में डूबा हुआ होता है। हाईवे पर तमाम टोलियां वहां से गुजरने वाले वाहनों से चंदा इकट्ठा करती है। देवी माता की नौ दिनों तक विशेष पूजा की जाती है। हजारों लोग रोजाना पूजा में शामिल होेते हैं, हर झांकी अपना विशेष आकर्षण रखती है, जिन्हें देखने वालों की भारी भीड़ उमड़ती है। इसी दौरान बंगाली लोग टोलियां में भ्रमण पर भी निकला करते हैं। देश के दूर-दराज क्षेत्रें में टूरिस्ट की संख्या तो इस समय बढ़ ही जाती है, लेकिन बंगाल के टूरिस्ट भी भारी संख्या में सभी टूरिसट जगहों पर देखने को मिलते हैं।
कोलकाता से यात्रा वर्धमान होते हुए दुर्गापुर पहुंची, जहां एक बड़ी मीटिंग बलाई गई थी। दुर्गापुर के एक चर्च में मीटिंग की व्यवस्था की गई थी। इस क्षेत्र के आस-पास के क्षेत्रें में गरीबी की रेखा से नीचे की आबादी भी बड़ी संख्या में है। कुपोषण-भुखमरी व अभाव ग्रस्त परिवारों में ऐसे बच्चों की कमी नहीं जिन्हें जीविकापार्जन के लिए शैशवकाल से ही संघर्ष करना पड़ता है। अनेक बच्चे कुपोषण के कारण दम तोड़ देते है। ऐसे अनेक बच्चों को यह चर्च गोद लेकर उनका लालन-पालन किया करता है। इसी चर्च में दुर्गापुर एवं दुर्गापुर के आस-पास के क्षेत्रें से आपरेटर मीटिंग में शामिल हुए। आपरेटरों को इण्डष्ट्री की भावी समभावनाओं पर जानकारियां देकर यात्रा अगले पड़ाव की ओर बढ़ती लेकिन अन्धेरा जल्दी घिर आया अतः रात्रि विश्राम के लिए भी यहीं रुकना पड़ा, क्योंकि आगे का सफर अंधेरे में करने वाला नहीं है।
यह क्षेत्र पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। आदिवासियों के गांव भी इस मार्ग पर काफी हैं और थोड़ा लम्बा होते हुए चतरा डोबी मार्ग से झारखण्ड से बिहार प्रवेश कर पहुंचना है। इस मार्ग पर स्थित बस्तियों में रात का सन्नाटा कुछ ज्यादा ही प्रतीत होता है। लोग रात ढ़लते ही अपने-अपने घरों में सिमट जाया करते हैं। हालांकि पूर्व यात्राओं में हम देर रात भी इस मार्ग से गुजरे हैं, लेकिन रात में कहीं पहुंचने पर कोई होटल मिलने में बड़ी कठिनाई होती है। इसीलिए दुर्गापुर में ही रात्रि विश्राम कर अगली सुबह आग बढ़ी यात्रा। धनबाद में कोयला किस तरह ढ़ोया जाता है, उसकी कई तस्वीरें हमने ली, एक साधारण सी सायकिल पर किस तरह कोयला लादकर ले जाते अनेक लोगों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कि प्रशासन जैसी कोई चीज है ही नहीं इस क्षेत्र में। कोयला ढ़ोने का यह रोजाना का सिलसिला कुछ ऐसा ही है, जैसे दूसरे क्षेत्रें में आदिवासी महिलाएं जंगल से लकड़ियां इकट्ठी कर बाजारों में ले जाकर बेचती हैं। इसी तरह से झारखण्ड में धनबाद एवं निकटवर्ती क्षेत्रें में खदानों से निकाल कर अपनी सायकिलों पर लाद कर रोजाना टनों कोयला बाजारों में लाते हैं। बाजारों में यह कोयला खरीददार इकट्ठा कर ट्रकों में भरकर रोजना बेचते हैं। बाजारों तक कोयला लेकर आने वालों से वहां बनी ग्राम निगररानी चौकियां खुलेआम अपनी निगरानी की कीमत लेती हैं, ऐसा दृश्य भी हमारे कैमरे ने कैद किया।
कोयला लादे हुए जिस तरह से ये सायकिल को खींचते हैं, वह इतना सरल काम न हीं है, हर किसी कि वश की भी बात नहीं है। उन्हें सायकिल पर कोयला ले जाते हुए देखकर कोई भी दांतो तले अंगुली दबा लेगा, लेकिन वहां तो यह सामान्य सी बात है, क्योंकि वहां रोजमर्रा की बाते हैं। एक तरह से पूरी चेन वहां कोयले के काम में लगी हुई है। जैसे-जैसे उनका जीवन ही कोयला हो गया हो। धनबाद से बोकारो मीटिंग लेकर बिहार जाने के लिए मार्ग थोड़ा और भी कठिन हो जाएगा, ऐसी झारखण्ड में ही जानकारी मिल गई। अजय सिंह एवं अन्य साथियों के साथ बोकारो में भेंट हुई, शीघ्र ही बोकारो से चन्दवा-चतरा होते हुए डोबी पहुंच गई यात्रा। डोबी से गया के लिए हमने जीपीएस का सहारा ले लिया।
जीपीएस के अनुसार मुंबई-कोलकाता हाईवे से जिस रास्ते पर यात्रा चली गई, शुरू में नहीं पता लगा कि यह रास्ता आगे जाकर कैसा हो जाएगा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रें में से होकर जिस मार्ग पर जीपीएस हमे ले जा रहा था, वह आने वाले सम्भावित खतरों का संकेत भी साथ-साथ दे रहा था। अंधेरा आज कुछ समय से पहले ही गहरा गया था। सड़क के नाम पर गांवों में बैलगाड़ी-ट्रैक्टर निकलने के लिए कीचड़ भरे जो रास्ते होते हैं, कहीं-कहीं वह मिल जाते थे, वर्ना तो जीपीएस के दर्शाए जा रहे मार्ग से आग बढ़ते रहने के अलावा वहां किसी से भी यह पूछा नहीं जा सकता था, कि हम सही जा रहे हैं या नहीं।
बीच-बीच में कहीं-कहीं सड़क बनती है उसकी तैयारियां भी दिखाई दे जाती थी, तब ऐसी उम्मीद भी हो जाती थी, कि शायद आगे रोड बनी मिल जाए, और कभी-कभी रोड़ का कोई टुकड़ा बना हुआ भी मिल जाता था। इस मार्ग पर दो-तीन जगह लालटेन की रोशनी में एक साथ कई लोगों को मीटिंग करते देखकर अजीब सा अहसास हुआ, लेकिन यात्रा अपनी राह बढ़ती रही। मार्ग में गीदड़ कई जगह आगे-आगे दोड़ते मिल जाते थे, तो चिमगादड़े भी काफी संख्या में दिख रहीं थी और कुत्तों को रोने की कुकुश आवाज वातावरण को और भी भयावह किए जा रही थी, जबकि हमें, अब यह भी नहीं जान पड़ रहा था कि आखिर अभी कितनी दूर तक इस अंधेरे रास्ते पर आग बढ़ते रहना है।
आगे से कहीं फिर वापिस तो नहीं आना पड़ेगा या आगे निकलने का मार्ग कहीं आगे जाकर बंद तो नहीं हो जाएगा, क्यांकि अब जीपीएस ने भी साथ छोड़ दिया था, क्योंकि टैलिफोन के सिग्नल ही उपलब्ध नहीं थे। इसी क्षेत्र के आस-पास अभी दो-चार दिनों के आस-पास एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया था, अतः रुकने की तो कोई गुंजाईश ही नहीं थी, लेकिन चलती हुई कोई गाड़ी अपनी लाइटों को कारण ऐसा कोई संकत नहीं देती है, कि यह गाड़ी लोकल नहीं बल्कि बाहर के किसी व्यक्ति की है, परन्तु एक बार भी रास्ता जानने के लिए अथवा किसी दूसरे कारणों से भी अगर गाड़ी को रोका जाता है, तब दूसरे को तुरंत पता लग जाएगा कि यह तो शिकार स्वयं मांद में आ गया है।
गाड़ी के टायरों पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता था, क्योंकि गड्ढ़ों में जा-जा कर दो टायरों में फोड़े से निकले हुए हैं, वह दूर तक चल भी सकते है, और किसी भी गड्ढे़ पर बस्ट भी हो सकते हैं, तब की तब देखी जाएगी, फिलहाल तो गाड़ी में डीजल की सुई व जल चुकी डीजल की लाईटे ने भी चेतावनी दे दी है कि इसी बीच मोबाईल में कुछ हरकत हुई है, थोड़े से सिग्नल पकड़ने लगा है मोबाईल। नैट भी उपलब्ध है, अतः तुरंत हमने जीपीएस ऑन कर जानना चाहा कि गया अब कितनी दूर रह गया है। जीपीएस बता रहा है कि तकरीबन 12 किमी आगे जाने के बाद फिर एक और एसटी हाईवे पर जाना है, कुल 27 कि दूर है, अभी गया यहां से आगे जो एसटी हाईवे मिलेगा उसकी स्थिति कैसी होगी, यह तो वहीं पहुंचने पर मालूम पड़ेगा, आखिरकार यहां से एक-एक किलोमीटर हमने अपनी गाड़ी के मीटर से कम करना शुरू कर दिया। 8-10 किमी जाने के बाद इतना तो प्रतीत हाने लगा कि रास्ता आगे से ही मिलेगा अतः 12 किमी के बाद एक और पतली सी रोड मिली, जिस पर अन्य वाहन भी आ जा रहे थे, जबकि जिस मार्ग से होकर हम यहां पहुंचे है, वहां तो केवल एक ही गाड़ी हमारी ही उस हाईवे पर थी, जिस पर जीपीएस ने हमें पहुंचा दिया था।
नए हाईवे से होकर अर्ध रात्रि में किसी तरह यात्रा गया तो पहुंच ही गई, लेकिन थकावट कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी सभी को। सबसे पहले तो पैट्रोल पम्प से डीजल भरवाया और टायरों को थपथपा कर शाबाशी दी उनके सहयोग के लिए। फिर गया रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर रात्रि विश्राम के लिए एक होटल दरबार पहुंचकर भोजन कर विश्राम किया। बोकारों से चन्दवा-चतरा और डोबी तक सामान्य तौर पर ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी यात्रा, लेकिन डीबी से गया के लिए जीपीएस ने जो मार्ग दिखलाया उस पर बढ़कर एक बड़ी गल्ती हम कर बैठे थे, जिसका आभास होने तक यात्रा काफी अंदर तक बढ़ चुकी थी, बारहाल यात्रा का यह हिस्सा भी बहुत रोमान्चकारी उपलब्धी रही।
गया से अगली सुबह जहानाबाद होते हुए सीधे पटना पहुंची यात्रा। पटना भी राजनीतिक दृष्टिकोण से नेताओं की राजधानी कही जाती है। यहां लगे होर्डिंग अपनी नई कहानी कहते हैं, हुंकार रैली के बड़े-बड़े होर्डिंग हर चौराहों पर लगे हुए हैं। आपरेटरों के साथ दोपहर में मीटिंग मुश्किल से ही हो पाती है। यहां कोलकाता के सुरेश सेतिया ने आकर झण्डा गाड़ दिया है एवं हाथवे की झोली भी खाली नहीं रही है। डैस के द्वीतिय चरण में पटना का भी नाम है, इसलिए एनॉलाग यहां भी बंद हो चुका है एवं बिना सैट्टॉप बॉक्स के किसी भी टैलिविजन को सिग्नल प्राप्त नहीं हो रहे हैं, परन्तु एसएएफ फार्म पर अभी गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है। पटना से आगरा होकर मोहनिया के रास्ते यात्रा मुगल सराय से वाराणसी पहुंची। वराणसी पहुंचते-पहुंचते भी रात थोड़ी ज्यादा ही हो चुकी थी, लेकिन वहां होटल रामाडा में एक रूम हमारे लिए दीनू भाई बुक करवा चुके थे, जबकि वह स्वयं बनारस में नहीं थे। अगले दिन भाई आलोक से भेंट कर बनारस के नजदीक से देखने की कोशिश की। भारी संख्या में पुलिस बल तैनाती के कारणों में पाया किय अनाधिकृत निर्माण को तोड़ने के लिए सरकारी फरमान जारी किया गया है।
कहा जा रहा है कि सन 1970 के नक्शे के अनुुसार सब ठीक-ठाक करने की तैयारी है, अर्थात 1970 के बाद जो भी निर्माण हुआ होगा उसे अनाधिकृत मानते हुए गिराया जाएगा। यानिकि आज 40-45 साल बाद सरकार को यदि वह निर्माण नाजायज दिखाई दे रहा है तब इतने सालों से वह कहां सोई हुई थी \ वह निर्माण रातो-राज नहीं हो गए बल्कि हरेक निर्माण के लिए सरकारी बाबुओं को भेंट चढ़ानी ही होती है, तब क्यों नहीं रोके जा सके ऐसे निर्माण जिन्हें ढ़ाने के लिए अब इतना पुलिस बल लेकर पहुंचे है। सरकारी नुमाइंदे दीपावली सिर पर खड़ी है, आदमी आखिर क्या करे— सरकारी हथौड़े के सम्मुख आम आदमी किस कदर मजबूर है, यह देखना है तो बनारस में वह बेबशी स्पष्ट दिखाई दी। अभी इस वर्ष के दशहरा उत्सव का भी आखिरी भाग आज रात्रि को बनारस में होना है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग यहां पहुंचते हैं। हम तो पहुंचे हुए आगे जाने की सोच रहे थे, अतः आज की रात बनारस का वह कार्यक्रम जो कि ‘नककटैया’ कहा जाता है, देखने के लिए एक और रात बनारस में रुकना तय किया गया।
बनारस की सुबह प्रकृति प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण रखती है, जब गंगा के घर के घाट पर सूर्याेदय होता है तो बस कैमरे के बटन कितनी बार दबा दिए गए है। पता ही नहीं चलता है, मन करता है कि बस इस सुनहरी सुबह के फोटो खींचे ही जाओ। शाम को गंगा घाट पर होने वाली अद्भुद आरती दशर्कों को बांध लेती है। वहीं महाशमशान पर जलती चिताएं कभी बुझ नहीं पाती हैं। बनारस का पान, बनारस की साड़ियां, बनारस की ठंडाई-कचौड़िया ना जाने क्या-क्या मशहूर हैं। यहां दशहरा के अवसर पर अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग लीलाएं राजगद्दी, रावण संहार, भरत मिलाप व नाक कटईया आयोजित की जाती है। यह एक एतिहासिक शहर है, यहां रहने वाले आरम्भ से ही ऐसी परम्पराओं से जुड़े होते है, जबकि बाबा विश्वनाथ (शिवजी) के मंदिर में पूजा – अर्चना भी अब कड़ी सुरक्षा के घेरे में की जाती है।
नाक कटईया कार्यक्रम की शुरुआत ही अर्धरात्रि से होती है, जो कि सुबह भोर होने तक चलती है। झांकियों में राम की लीलाओं के अतिरिक्त इस बार लालू प्रसाद को जेल में दिखलाए जाने के झांकी सभी के लिए आकार्षण का केंद्र बनी हुई है। वाराणसी से आगे सीधे पहुंची यात्रा। इलाहाबार भी एक ऐतिहासिक शहर है। गंगा-यमुना सरस्वती नदियों का यहां संगम होता है, इसलिए त्रिवेणी भी कहते है इलाहाबाद हो। यहां पर कुम्भ का भी आयोजन अभी पिछले ही दिनों हुआ है। इलाहाबाद में केबल टीवी उत्तरप्रदेश के अन्य शहरों से कुछ अलग है। यहां डैन की स्थिति काफी कमजोर है, जबकि हाथवे नम्बर वन पर बना हुआ है। डैस सिटी में भी इलाहाबाद शामिल है, अतः एनालाग प्रसारण यहां भी बंद हो चुका है। इलाहाबाद के केबल टीवी दर्शक भी बिना सैट्टॉप बॉक्स के केबल टीवी नहीं देख पाते हैं। यही हाल बनारस का भी है, क्योंकि उत्तरप्रदेश में डैस के अन्तर्गत शामिल किए गए पांच शहरों में वाराणसी व इलाहाबाद भी है। इलाहाबाद में ही उत्तरप्रदेश का उच्च न्यायालय भी है एवं एजुकेशन सिटी भी इस शहर को कहा जा सकता है, जबकि वकीलों का शहर भी लोग इसे कहते हैं। इलाहाबाद से रायबरेली होकर यात्रा सीधे लखनऊ पहुंची।
रायबरेली का महत्व राजनीतिक गतिविधियों के कारण बना हुआ है, जबकि लोगों की हालत वैसी ही है जैसे उत्तरप्रदेश के अन्य शहरों की। रायबरेली से सीधे लखनऊ पहुंची यात्रा। लखनऊ में भाई ओमेश्वर, सुनील जौली एवं अन्य साथी यात्रा की प्रतीक्षा में थे। सभी ऑपरेटरों के द्वारा यात्रा का भव्य स्वागत सत्कार के बाद डैस पर विस्तृत चर्चा हुई, क्योंकि लखनऊ नवाबों का एतिहासिक शहर होने के साथ-साथ अब डैसी सिटी की श्रेणी में भी आ चुका था। उत्तरप्रदेश की राजधानी होने के कारण राजनीतिक दृष्टिकोण से भी लखनऊ का विशेष महत्व है एवं केबल टीवी में भी लखनऊ अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। लखनऊ की तहजीब, नजाकत, लहजा और खान-पान अभी भी अपनी विशेषता बनाए रखें हुए है।
यहां के मंदिरों में पान भी प्रसाद में दिया जाता है। लखनऊ का हजरगंज अब काफी बदल गया है, जबकि रेलवे स्टेशन की खूबसूरती देखते ही बनती है, जबकि महानगर गोमती आदि अनेक छोटे-छोटे लखनऊ वहां बन गए हैं। लखनऊ में देर रात तक आपरेटरों के साथ पार्टी चलती रही, अत- रात्रि विश्राम भाई ओमेश्वर की मेहमानवाजी में कर सुबह सीधे कानपुर के लिए रवाना हो गई यात्रा। कानपुर केबल टीवी इण्डस्ट्री के हिसाब से कुछ जल्दी ही सुबह पहुंच गई यहां यह यात्रा, इतनी सुबह ऑपरेटरों के मिलने का समय नहीं हुआ करता है, अतः ब्रेकफास्ट वार्ता सिटी केबल के कानपुर प्रमुख स- एच एस लार्ड साहब के निवास पर हुई। सिटी केबल के ऑफिस में ही ऑपरेटरों के साथ डैस पर खड़े प्रश्नों पर गंभीर चर्चा के बाद वहां दूसरे एमएसओ, डीजी के विशाल से भेंट कर आपरेटरों की अलग से एक मीटिंग ली गई। संजीव भाई (डैन) आज कानपुर में नहीं है अतः उनसे भेंट नहीं हो पाई।
डैस सिटी होने के कारण यहां भी एनालाग प्रसारण बंद हो चुका हैं एवं अब सैट्टाप बॉक्स के बिना किसी भी टैलिविजन को कोई भी सिग्नल उपलब्ध नहीं है। कमर्शियल दृष्टिकोण से कानपुर का विशेष महत्व होता है। यहां लैदर उद्योग के साथ-साथ पान मसाला, गुटखा आदि के बडे नामी उद्योग भी हैं। कई बड़ी-बड़ी नामी-गिरामी फैक्ट्रियां भी यहां स्थित है अतः विज्ञापनदाताओं को अपने दिए गए विज्ञापनों को यहां पर देखना भी होता है इस नजरिए से भी यहां केबल टीवी का विशेष महत्व हो जाता है। डैस पर यहां भी स्थिति दूसरे शहरों जैसी ही है। कानपुर से आगे की यात्रा बांदा होते हुए मध्यप्रदेश में प्रवेश करेगी, उसका वर्णन अगले अंक में किया जाएगा, यह भाग कानपुर तक ही रखते हैं—।
झारखण्ड में धनबाद एवं निकटवर्ती क्षेत्रें में खदानों से निकाल कर अपनी सायकिलों पर लाद कर रोजाना टनों कोयला बाजारों में लाते हैं। बाजारों में यह कोयला खरीददार इकट्ठा कर ट्रकों में भरकर रोजना बेचते हैं। बाजारों तक कोयला लेकर आने वालों से वहां बनी ग्राम निगररानी चौकियां खुलेआम अपनी निगरानी की कीमत लेती हैं, ऐसा दृश्य भी हमारे कैमरे ने कैद किया।
धनबाद से बोकारो मीटिंग लेकर बिहार जाने के लिए मार्ग थोड़ा और भी कठिन हो जाएगा, ऐसी झारखण्ड में ही जानकारी मिल गई। अजय सिंह एवं अन्य साथियों के साथ बोकारो में भेंट हुई, शीघ्र ही बोकारो से चन्दवा-चतरा होते हुए डोबी पहुंच गई यात्रा। डोबी से गया के लिए हमने जीपीएस का सहारा ले लिया। जीपीएस के अनुसार मुंबई-कोलकाता हाईवे से जिस रास्ते पर यात्रा चली गई, शुरू में नहीं पता लगा कि यह रास्ता आगे जाकर कैसा हो जाएगा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रें में से होकर जिस मार्ग पर जीपीएस हमें ले जा रहा था, वह आने वाले सम्भावित खतरों का संकेत भी साथ-साथ दे रहा था।
डैस के द्वीतिय चरण में पटना का भी नाम है, इसलिए एनॉलाग यहां भी बंद हो चुका है एवं बिना सैट्टॉप बॉक्स के किसी भी टैलिविजन को सिग्नल प्राप्त नहीं हो रहे हैं, परन्तु एसएएफ फार्म पर अभी गंभीरता नहीं दिखाई दे रही है। पटना से आगरा होकर मोहनिया के रास्ते यात्रा मुगल सराय से वाराणसी पहुंची।