कण्डीशनल एक्सेस सिस्टम यानिकि ब्।ै के लिए जब केबल टीवी एक्ट में संशोधन किया गया था तभी देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों को कैस के प्रति जागरूक करने के लिए चेतना यात्रा की योजना बनाई गई थी, लेकिन परिस्थिति में बड़े बदलाव आए तत्कालीन सरकार द्वारा 14 जनवरी, 2003 को जारी की गई अधिसूचना धरी की धरी ही रह गई। कानून बना देना अलग बात होती है, लेकिन कानून को लागू किया जाना अलग बात हुआ करती है, यह तभी मालूम हुआ जब कैस कानून बनाए जाने के बाद एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका। आम चुनाव आ गए और एनडीए सरकार के स्थान पर कांग्रेस की यूपीए सरकार का राज कायम हो गया, अतः एनडीए सरकार के द्वारा बनाया गया कैस कानून भी बंमाने हो गया।

हालांकि तब केबल टीवी का कोई अन्य विकल्प ही नहीं था अतः उस समय कैस कानून की ज़रूरत भी थी, क्योंकि समस्या केबल पे चैनलों को लेकर थी। फ्री टू एयर चैनलों के लिए कानून में किसी भी तरह को कोई संशोधन नहीं किया गया था, लेकिन पे चैनलों के लिए डिजीटाईजेशन सैट्टॉप बॉक्स अनिवार्य किया गया था। उपभोक्ताओं को पूरी आज़ादी दी गई थी कि वह केवल उन्हीं पे चैनलों का भुगतान करें जो वह देखना चाहते हैं, कानून में फ्री टू एयर चैनलों के लिए एनालॉग सिस्टम को बदले जाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। इसलिए अगर कैस कानून लागू होता तब देशभर के केबल टीवी उपभोक्ताओं को बहुत लाभ होना था। हरेक उपभोक्ता को जबर्दस्ती सैट्टॉप बॉक्स लेने की कोई ज़रूरत नहीं थी। सिर्फ पे चैनलों के लिए ही सैट्टॉप बॉक्स की अनिवार्यता थी, अतः उम्मीद की जा रही थी कि कैस लागू हो जाने पर कई पे चैनलों को फ्री टु एयर हो जाना मजबूरी हो जाता।


कैस कानून के अन्तर्गत बेवजह भारत की विदेशी मुद्रा विदेशों को नहीं जाती, बल्कि आवश्यकता के हिसाब से भारत में ही शायद सैट्टॉप बॉक्स भी बनाए जाने शुरू हो जाते, क्योंकि उपभोक्ता लम्बे समय तक फ्री टु एयर चैनलों से ही स्वंय को संतुष्ट करने की कोशिश करते। पे चैनल देखने के लिए अधिकांश केबल टीवी उपभोक्ता सैट्टॉप बॉक्स पर खर्चा करने से बचते, अतः एनालॉग प्रसारण को ज़्यादा पसन्द किया जाता, जबकि अब डिजीटाईजेशन को जबरन थोप दिया गया है। कैस कानून के प्रति देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों को जागरूक करने के लिए सन्- 2005 में शुरू की गई चेतना यात्रा आज भी जारी है। आज यह यात्रा डिजीटाईजेशन पर ऑपरेटरों को जागरूक कर रही है, लेकिन इसकी योजना कैस कानून के समय बनाई गई थी।

कैस लागू नहीं हो पाया था, लेकिन सन्- 2004 में डीटीएच प्रचलन में आ गया था। अर्थात् केबल टीवी का एक विकल्प उपभोक्ताओं के लिए बाज़ार में आ चुका था। कैस का कानून तभी बनाया गया था, जब उपभोक्ताओं के लिए केबल टीवी का कोई अन्य विकल्प ही नहीं था। डीटीएच प्रचलन में आ जाने के बाद कैस की उपयोगिता ही नहीं रह गई थी, क्योंकि यदि कोई उपभोक्ता केबल टीवी से सन्तुष्ट नहीं है, तब उसके लिए डीटीएच एक विकल्प के रूप में उपलब्ध हो गया था।


पूर्व एनडीए सरकार द्वारा बनाया गया कैस कानून नई आई यूपीए सरकार के गले नहीं उतर रहा था, अतः वह इसे लागू किए जाने में इच्छुक नहीं थी, लेकिन कैस के लिए पैसा खर्च चुके एमएसओ पशोपेश में थे। उन्होंने अदालत में कैस लागू किए जाने की गुहार लगाई, जबकि यूपीए सरकार इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं थी, तिस पर डीटीएच एक बड़ा प्रतिस्पर्धी बन गया था केबल टीवी का। फिर से केबल टीवी एक भंवरजाल में फंस सा गया था। केबल टीवी ऑपरेटरों की समझ से परे हो चुके थे हालात, अतः सन्- 2005 में पहली बार शुरू हुई चेतना यात्रा निरन्तर जारी है। लगातार आठ यात्रा एं कर देश का कोई भी कोना अछूता नहीं रह गया है, लेकिन केबल टीवी इण्डस्ट्री में भी बड़ा बदलाव आया है।

देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों को कैस के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें डीटीएच से भी अपने उपभोक्ताओं को बचाने के उपाय बताने में ही शुरूआती यात्रा एं रहीं, लेकिन शीघ्र ही केबल टीवी ऑपरेटर कम्यूनिटी को जनहितार्थ कार्यों के प्रति भी प्रोत्साहित किया जाने लगा। पृथ्वी के बढ़ते जा रहे तापमान के प्रति केबल टीवी ऑपरेटरों को जागरूक करने के साथ-साथ देशभर में ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए वृक्षारोपड़ अभियान भी यात्रा के दरमियान शुरू किया गया। इसी तरह से व्यावसायिक समस्याओं के समाधानों के साथ-साथ जनहितार्थ भी अपना दायित्व निर्वाह करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई।
आखिरकार एक जनवरी, 2007 को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से कैस कानून का प्रथम चरण लागू किए जाने के लिए सरकार को बाध्य होना ही पड़ा। कैस के प्रथम चरण में साउथ दिल्ली, मुम्बई (साउथ), साउथ कोलकाता एवं चेन्नई शामिल हो गए। सरकार की अधिसूचना जारी होते ही कैस एरिया में एमएसओ द्वारा आयात किए गए सैट्टॉप बॉक्स गोदामों से निकलकर कैस एरिया के उपभोक्ताओं तक पहुंच गए। इस मौके का डीटीएच ने पूरा फायदा उठाया अर्थात उन्हें केबल टीवी उपभोक्ताओं में अपनी पैठ बनाने का वह सुनहरा अवसर मिल गया जिसकी प्रतीक्षा वह 2004 से ही कर रहे थे। कैस की कहानी प्रथम चरण तक ही सिमट कर रह गई, क्योंकि सरकार की मंशा कुछ और ही थी, जो कि बाद में डैस के रूप में बाहर आई। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा नान कैस एरिया के लिए टैरिफ तय करने का निर्देश ट्राई को दिया गया, तब ट्राई ने अदालत को जवाब देने के लिए खूब कवायद की।


ट्राई नान कैस एरिया के टैरिफ तय नहीं कर सकी अतः नान कैस एरिया को ही खत्म करने का निर्णय ट्राई द्व़ारा ले लिया गया, वहीं से डिजीटल एड्रेसिबल सिस्टम यानिकि डैस पैदा हुआ। कैस तो बीती बातें हो गया, लेकिन डैस के लिए बड़ी सोच समझ कर केबल टीवी एक्ट- 1995 में संशोधन किए गए। डैस के लिए बनाए गए कानून को संसद के दोनों सदनों में पास करवाने के बाद शीघ्र ही माननीय राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर हो जाने के बाद इसे लागू करवाए जाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई। सरकारी अधिसूचनानुसार पहली जुलाई, 2012 से डैस का प्रथम चरण लागू किए जाना था, जिसे बदलकर एक नवम्बर, 2012 करना पड़ा। केबल टीवी व्यवसाय में डैस ने खलबली मचाकर रख दी, तमाम अगर-मगर, किन्तु-परन्तु खड़े हो गए, लेकिन सरकार अपने इरादों में पूरी तरह से पक्की निकली, क्योंकि एक नवम्बर, 2012 से डैस के प्रथम चरण की सरकार ने शुरूआत कर ही दी। डैस को लेकर अभी भी केबल टीवी ऑपरेटरों में तमाम सवालिया निशान लगे हुए हैं, जबकि सरकारी अधिसूचनानुसार एक नवम्बर, 2012 को प्रथम चरण के बाद एक अप्रैल, 2013 से डैस का द्वितीय चरण भी आरम्भ हो गया है।

प्रथम चरण में मात्र चारों महानगर दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता व चेन्नई ही शामिल थे, जिनमें से कुल दो महानगरों दिल्ली एवं मुम्बई में ही सरकार डैस की शुरूआत करवा पाई। डैस लागू करवाने में सरकार इतनी जल्दी में है कि प्रथम चरण को पूर्णतया लागू किए गिना द्वितीय चरण के लिए अधिसूचित देश के 38 शहरों में भी डैस को लागू कर दिया गया है। डैस के लिए आयात किए जा रहे सैट्टॉप बॉक्स सहित अन्य हार्डवेयर के एवज में कितनी राशि विदेशी मुद्रा के रूप में देश से बाहर जा रही है उसकी परवाह ना करते हुए सरकार को डैस लागू करवाए जाने की बड़ी जल्दी है। डॉलर के मुकाबले लुढ़कते रूपए में डैस की भी बड़ी भूमिका है। अभी देश की राजधानी दिल्ली में भी पूर्णतया लागू नहीं हो पाया है डैस, जबकि पूरे ग्यारह महीने बीत चुके हैं। डैस के प्रथम चरण में दिल्ली का भी जब पूर्णतया डैस लागू नहीं करवाया जा सका है तब प्रथम चरण की शेष तीनों मेट्रो सिटी मुम्बई व कोलकाता की स्थिति कैसी होगी, जबकि चेन्नई में तो अभी शुरूआत भी नहीं करवाई जा सकी है। सरकार तो डैस के द्वितीय चरण में 38 शहरों में डैस को लागू करवाने पर बढ़ चुकी है, अतः ‘चेतना यात्रा-9’ का उद्देश्य पूर्णतया इस बार डैस पर फोकस है।


5 सितम्बर, 2013 को दिल्ली से आरम्भ हुई चेतना यात्रा-9 डैस में शामिल सभी शहरों में जाकर यह जानकारी लेगी कि बाकी शहरों में डैस की वास्तविक स्थिति क्या है। दिल्ली की स्थिति तो देश के बाकी शहरों से बिल्कुल अलग है ही। कई दिनों की तैयारी के बाद केबल टीवी ऑपरेटरों का राष्ट्रीय अधिवेशन 16-17 अगस्त, 2013 को दिल्ली में बुलाया गया, जिसमें देश के भिन्न राज्यों के प्रमुख ऑपरेटरों ने भाग लिया। केबल टीवी ऑपरेटरों के राष्ट्रीय अधिवेशन के साथ-साथ ऑपरेटरों द्वारा समाज सेवा में संलग्न विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किए जाने के लिए ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ का भी आयोजन दिल्ली में किया गया। 16-17 अगस्त को आयोजित कार्यक्रमों के उपरान्त ‘चेतना यात्रा-9’ की शुरूआत दिल्ली से 5 सितम्बर की प्रातः 8 बजे आदर्श नगर पार्क में राजकुमार भाटिया एवं मोर्निंग क्लब द्वारा की गई।

दिल्ली से विदा लेकर नोएडा एबीपी न्यूज़ चैनल के ऑफिस के बाद सीधे मेरठ के लिए रवाना हुई यात्रा। 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में एक बहुत ही शुभ दिन माना जाता है, जबकि वृहस्पतिवार जिसे गुरूवार भी कहा जाता है अर्थात् गुरूवार के दिन ही शिक्षक दिवस के अवसर पर देशभर के केबल टीवी ऑपरेटरों के लिए दिल्ली से एक शिक्षक का दायित्व निभाने के लिए यात्रा की शुरूआत हुई। मेरठ पहुंचते-पहुंचते काफी अबेर हो चुकी थी, लेकिन रोमी भाई यात्रा का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा में मिले। मेरठ के साथ-साथ अन्य शहरों में भी पूरे जोर-शोर के साथ रोमी भाई डैस पर काम कर रहे हैं। अगले दिन यात्रा के भव्य स्वागत की तैयारियों का निर्देश देकर सब रात्रि विश्राम पर चले गए। मेरठ के होटल में विश्राम कर प्रातः जल्दी ही आगे के लिए तैयार होकर वहां पहुंची यात्रा जहां मेरठ ऑपरेटरों के द्वारा स्वागत कार्यक्रम था।

बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर इतनी बड़ी संख्या में ऑपरेटरों को बुलाने का काम हर कोई नहीं कर सकता है, लेकिन ऑपरेटरों की उत्सुकता एवं रोमी भाई के व्यवहार से भारी संख्या में ऑपरेटर पहुंचे थे। ऑपरेटरों के साथ-साथ प्रैस कॉन्फ्रेस के लिए भी पत्रकारों की संख्या में कोई कमी नहीं थी। वहीं रोमी भाई ने हमें आईबीएन-7 के प्रमुख अभिषेक से भी भेंट करवाई थी। वहीं अभिषेक जिन्हें आप मुजफ्रफनगर पर विशेष रिपोर्ट करते हुए अब रोजाना ही टीवी पर देख रहे हैं, तब उनके अन्य सहयोगी भी उस मीटिंग में थे। मुजफ्रफनगर दंगों में मारे गए आईबीएन-7 के पत्रकार व फोटोग्राफर की हत्या पर हमें भी बहुत दुःख पहुंचा है। मेरठ मीटिंग के बाद हमने यात्रा का पूर्व निर्धारित रूट बदलना ही ज़्यादा बेहतर समझा, क्योंकि उधर स्थितियां काफी तनावपूर्ण हैं, ऐसी जानकारियां मिल रही थीं।

रोमी भाई की मीटिंग से मुरादाबाद के लिए यात्रा रवाना हो गई, लेकिन तभी मेरठ के आकाशदीप शर्मा (ऑपरेटर एवं चैनल डिस्ट्रीब्यूटर) का फोन आ गया और इत्तिफाकन उनसे भेंट हो गई। उन्हीं के साथ-साथ मुजफ्रफरनगर के ऑपरेटरों से भी वहां भेंट हुई एवं आकाश ने मुरादाबाद मार्ग में गजरौला के ऑपरेटर संदीप रस्तोगी के साथ भी भेंट तय कर दी, अतः रास्ते में संदीप रस्तोगी एवं अन्य ऑपरेटरों के साथ गजरौला मीटिंग कर यात्रा मुरादाबाद पहुंची, जहां भारी संख्या में ऑपरेटर चेतना यात्रा का स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे। स्वागत-सत्कार के बाद ऑपरेटरों को मार्गदर्शन कर मुरादाबाद में ही विश्राम किया। अगली सुबह-सबेरे ही मुरादाबाद के प्रमुख ऑपरेटर फिरासत भाई अपने पुत्र सहित भेंट करने आए और उनसे मिलकर यात्रा आगे के लिए रवाना हो गई। मुरादाबाद की व्यवस्था का दायित्व राजीव जौहरी ने बखूबी निभाया।


मुरादाबाद से रवाना होकर यात्रा सीधे बिजनौर पहुंची। इस मार्ग पर मुजफ्रफनगर तनाव का प्रभाव प्रतीत होने लगा था। मुरादाबाद से बिजनौर के लिए एक मार्ग कांठ-स्योहारा-धामपुर होते हुए भी जाता है, उसी मार्ग पर स्थित ऑपरेटरों के साथ मीटिंग रखी गई थी, लेकिन समयाभाव के कारण यहां का रूट भी बदला गया एवं नूरपुर से होकर बिजनौर पहुंचने का निर्णय लिया गया। बिजनौर से तकरीबन 10-12 किलोमीटर पहले किसी गांव में एक मेला लगा हुआ था, जिसमें दूर-दराज गांवों से बैलगाड़ियों में भरकर परिवार सहित ग्रामीण मेले में जा रहे थे। मेले में जाते ग्रामीणाें के चेहरे पर एक अलग ही तरह की खुशी झलक रही थी, खिलखिलाते चेहरे, पूर्णतया सन्तुष्ट और खुश नज़र आ रहे थे। अतः एक अजीब सा आर्कषण मेले में खींच ले गया। मुश्किल से ही वहां गाड़ी ले जाई जा सकी।


दोयज का मेला बड़े बाबा के मन्दिर पर सड़क से हटकर बिल्कुल अलग अन्दर कहीं लगा हुआ था, जहां आस-पास के अनेक गांव से परिवार सहित लोग अपने-अपने ग्रामीण ट्रांसपोर्ट साधनों से पहुंचे हुए थे। पूरा मेला छोटी-छोटी दुकानों से सजा-धजा था। खाने की तमाम मिठाईयों में जलेबी सबसे ज़्यादा लुभा रही थी। मेले में कश्तियों का भी खेल खेला जा रहा था, जहां कोई भी किसी के साथ कुश्ती लड़ने के लिए स्वतन्त्र था। बड़ी ही रोमांचक कुश्तियां देखने केा यहां मिलीं। कुश्तियों के बाद देखा कि कुछ लोग सुअर लेकर अलग-अलग बैठे हुए थे। हमें लगा कि जैसे इनकी बलि दी जानी है, लेकिन बलि नहीं बल्कि इन सुअरों के साथ बैठे इनके मालिकों द्वारा बच्चों की बीमारी का इलाज किया जा रहा था।

मान्यता है कि जिन बच्चों का कान बहता है या बच्चे डर जाते हैं उन बच्चों को इन सुअरों के दो बालों से टोटका कर इलाज होता है यहां। यह दृश्य भी वाकई चौंकाने वाला था। मेले से निकल कर शीघ्र ही बिजनौर की मीटिंग लेकर यात्रा सीधे ऋषिकेश के लिए रवाना हो गई। चांदपुर से ऑपरेटर सुल्तान भी यात्रा के स्वागत के लिए बिजनौर पहुंचे थे। बिजनौर में ही टीवी चैनलों से जानकारी मिली कि मुजफ्रफरनगर में दंगे भड़क गए हैं, वहां छः लोग मारे भी गए हैं। मुजफ्रफनगर दंगों के कारण आस-पास के सभी क्षेत्र भी अतिसंवेदनशील हो गए हैं। शाम ढ़लती जा रही थी, अफवाहों का दौर शुरू हो गया था। शहर में सावधानी बरतते हुए पीएसी की टुकड़ियां पहुंचने लगी थी, अतः हम भी बिजनौर से ऋषिकेश के लिए रवाना हो गए।

बिजनौर-ऋषिकेश मार्ग में अनेक जगह लोग आपस में गुट बनाकर खुसर-पुसर करते दिख्ााई दे रहे थे, तो जगह-जगह पुलिस-प्रशासन भी चौकस सा दिखने लगा था। एक अनजाना सा खतरा सारे रास्ते पसरा था, लेकिन यात्रा निर्विघ्न सकुशल ऋषिकेश पहुंच गई, जबकि ऋषिकेश सहित पूर्ण उत्तराखण्ड में यात्रा की व्यवस्था की जि़म्मेदारी देख रहे अजय चौधरी दिल्ली से मुजफ्रफरनगर मार्ग पर फंस कर रह गए थे। वह अपनी गाड़ी से दिल्ली से ऋषिकेश के लिए चले थे, लेकिन मुजफ्रफरनगर दंगों के कारण किन्हीं भी मार्गों मुजफ्रफरनगर क्रॉस कर ऋषिकेश पहुंचना जब असम्भव हो गया तब वहां से वापिस दिल्ली जाकर दिल्ली से हवाई जहाज से ऋषिकेश आने का निर्णय अजय चौधरी ने लिया। अगले दिन दोपहर को अजय चौधरी दिल्ली से ऋषिकेश पहुंच गए तभी ऋषिकेश में ऑपरेटरों के साथ मीटिंग हो सकी। भारी संख्या में आए ऑपरेटरों को देखकर उनकी उत्सुकता-जिज्ञासा का स्पष्ट पता लग रहा था।


मुजफ्रफरनगर में हालात बहुत बिगड़ जाने की खबरें डरा रहीं थी, अफवाहों का कोई अन्त नहीं था व ना ही मीडिया से छन-छन कर आ रहीं खबरों पर यकीन बन पा रहा था, लेकिन इतना स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि बहुत बड़े स्तर पर नरसंहार वहां हो रहा है। बारहाल मुजफ्रफरनगर से आगे निकलते हुए ऋषिकेश के बाद यात्रा देहरादून पहुंची। रास्ते में मानियावाला के ऑपरेटर मनीष के यहीं शाम को 4ः30 बजे एबीपी न्यूज़ चैनल पर प्रसारण हो रहे अपने ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ के कार्यक्रम को देखने का भी मौका मिल गया। एबीपी न्यूज़ पर बहुत ही बेहतरीन ढं़ग से ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ कार्यक्रम का आधे घण्टे का प्रसारण किया गया। देशभर से कार्यक्रम पर बधाईयां आईं। मानियावाला में मनीष भाई से विदा लेकर यात्रा अजय चौधरी से भी विदा लेकर यात्रा सीधे प×चकुला की ओर बढ़ चली। इस मार्ग में मुजफ्रफरनगर दंगों का कोई प्रभाव नहीं दिखाई दिया, लेकिन देहरादून से आज सीधे सोलन (हि-प्र-) पहुंचने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम बदलने का कारण नाहान से ऊपर धूर्मपुर तक की सड़क का बहुत ज़्यादा क्षतिग्रस्त होना था।


नाहान से सीधे प×चकुला मार्ग पर बरवाला से 10-12 किलोमीटर आगे निकलने पर ‘रामगढ़’ में ‘ज्ीम थ्वतज त्ंउहंती’ अर्थात् रामगढ़ का किला में प×चकुला के नम्रता वाले राजेश मलिक की मेहमानवाजी में रात्रि विज्ञाम हुआ। रामगढ़ का किला एक अद्भुत अनुभव है। यह स्थान अभी भी अपनी शान-ओ-शौकत के साथ बड़ी बुलन्दियों को सहेज कर रखे हुए है। यहां तक पहुंचना ही ‘चेतना यात्रा-9’ का प्रथम भाग होगा, क्योंकि अगले भाग में यहीं से स्मृतियों का पिटारा खोला जाएगा। किले की कहानी बड़ी ही रोमा×चक एवं रोचक है, क्योंकि यहां हमारी भेंट चंदेलों की 13 व 14वीं पीढ़ी से रूबरू हुई है। इस प्रथम भाग से आगे बढ़ने तक हम चाहते हैं कि मुजफ्रफरनगर पूरी तरह से शान्त वातारवरण में पहुंच जाए। शेष आगामी अंक में—-!

फ्री टू एयर चैनलों के लिए कानून में किसी भी तरह को कोई संशोधन नहीं किया गया था, लेकिन पे चैनलों के लिए डिजीटाईजेशन सैट्टॉप बॉक्स अनिवार्य किया गया था। उपभोक्ताओं को पूरी आज़ादी दी गई थी कि वह केवल उन्हीं पे चैनलों का भुगतान करें जो वह देखना चाहते हैं, कानून में फ्री टू एयर चैनलों के लिए एनालॉग सिस्टम को बदले जाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। इसलिए अगर कैस कानून लागू होता तब देशभर के केबल टीवी उपभोक्ताओं को बहुत लाभ होना था।

‘चेतना यात्रा-9’ का उद्देश्य पूर्णतया इस बार डैस पर फोकस है। 5 सितम्बर, 2013 को दिल्ली से आरम्भ हुई चेतना यात्रा-9 डैस में शामिल सभी शहरों में जाकर यह जानकारी लेगी कि बाकी शहरों में डैस की वास्तविक स्थिति क्या है। दिल्ली की स्थिति तो देश के बाकी शहरों से बिल्कुल अलग है ही। कई दिनों की तैयारी के बाद केबल टीवी ऑपरेटरों का राष्ट्रीय अधिवेशन 16-17 अगस्त, 2013 को दिल्ली में बुलाया गया, जिसमें देश के भिन्न राज्यों के प्रमुख ऑपरेटरों ने भाग लिया। केबल टीवी ऑपरेटरों के राष्ट्रीय अधिवेशन के साथ-साथ ऑपरेटरों द्वारा समाज सेवा में संलग्न विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किए जाने के लिए ‘ईमान इण्डिया सम्मान’ का भी आयोजन दिल्ली में किया गया।