चिर प्रतीक्षित चेतना यात्रा-8 का शुभारम्भ कुछ खास तरीके से किया गया, क्योंकि इस चेतना यात्रा का मकसद भी बहुत खास और पूर्व में की गई सात चेतना यात्राओं से बिल्कुल हटकर है। केबल टीवी एक्ट-1995 में हुए संशोधन के बाद फ्केबल टीवी एक्ट (संशोधित) 2011य् में काफी अन्तर आ गया हैै। एक तरीके से बाईस सालों बाद यह इण्डस्ट्री फिर से जीते से ही आरम्भ होने जा रही है, क्योंकि वर्तमान में प्रचलित एनालॉग टैक्नालॉजी पूर्णतया प्रतिबन्धित हो जाएगी एवं डिजिटल एड्रेसिबल सिस्टम अनिवार्य होगा पूरे देश में, इसलिए फिर एक बार से यह इण्डस्ट्री जीरो से आरम्भ हो रही है। देश के कौने-कौने तक विद्यमान केबल टीवी ऑपरेटरों को आने वाले परिवर्तन के प्रति जागरूक करना इस यात्रा का प्रथम उद्देश्य है एवं उन्हें आपस में जोड़कर उनके द्वारा समाज के लिए किए जाने वाले कार्याे के प्रति भी उन्हें प्रोत्साहित करना। दूसरा उद्देश्य है, अर्थात समूची कम्यूनिटी को समाज में वह सम्मान दिलाना जिसके वह हकदार हैं।

अभी तक आपने पढ़ा कि 7 सितम्बर को दिल्ली से रवाना होने के बाद उत्तर प्रदेश से गुजरते हुए उत्तराखण्ड कवर करती हुई पुनः सहारनपुर के रास्ते उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर यमुना नगर से हरियाणा पहुंची यात्रा। हरियाणा में अम्बाला पहुुंचकर गाड़ी की भी थोड़ी मैन्टीनैंस की गई, यानिकि एक पंचर और एक स्टैंड भी लगवाना अम्बाला में। लम्बा पहाड़ी एरिया कवर करने के बाद थोड़ा सा यह प्लेन एरिया यात्रा के बीच में आया है तो गाड़ी को भी पूरी तरह से दुरूस्त कर लेना आवश्यक है आगे के बेहतर सफर के लिए। चण्डीगढ़ हिमाचल भवन से यात्रा के इस भाग की शुरूआत करते है। माननीया गर्वनर हिमाचल प्रदेश भी धूमल जी का एक ही समय पर एक ही स्थान पर ठहरना प्रशासन के लिए चुुनौती बन जाता है, ऐसे वातावरण में हमें यह उम्मीद नहीं थीं कि प्रदेश के प्रमुख मेहमानों के बीच हिमाचल भवन में हमारी बुकिंग को भी तवज्जो दी जाएगी। लेकिन यह जानकर आश्चर्य के साथ-साथ खुशी भी हुई कि हमारी मांगनुसार हमें भी वहां ठहरने की अनुमति दी गई।

अन्तर केवल फर्स्ट एवं थर्ड फ्रलोर का ही था, बाकी सब एक समान ही था। उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन अवश्य वहां मौजूद था, लेकिन उनके होने से हिमाचल भवन के बाकी गैस्ट कतई भी प्रभावित नहीं थे। सब कुछ बिल्कुल सामान्य सा, हमारी गाड़ियां भी बिल्कुल सामान्य तरीके से बिना किसी विघ्न के आ जा रही थीं और वहां तीसरी मन्जिल पर ठहरे विशिष्ट मेहमानों की गाड़ियां भी। ना उन्हें हमसे और ना हमें उनसे कोई परेशानी थी। दिल्ली की मुख्यामन्त्री श्रीमती शीला दीक्षित जी के द्वारा झण्डी दिखाकर रवाना की गई यात्रा को यहां दो-दो माननीय देखकर उनसे भी शुभकामनाएँ लेने की सूझी अतः तीसरी मन्जिल पर पहुंच कर उनसे मिलने का प्रयास किया गया। माननीय मुख्यमन्त्री श्री धूमल जी के प्राइवेट सेक्रेटरी सुख राम ठाकुर मिले और उन्होंने बहुत ही शालीनता के साथ अगले ही दिन दोपहर में शिमला में मिलवाने का समय दिया, उन्होंने अपना मोबाइल नम्बर सहित सी-एम- हाऊस के लाइन नम्बर भी लिखकर दिए, लेकिन शिमला पहुंचने पर उनका मोबाइल भी नहीं उठा और लाइन नम्बर पर भी ठाकुर साहब नहीं जा सके।

मालूम हुआ कि आज सुबह ही दिल्ली चले गए है सी-एम- साहब हिमाचल भवन में ही ठहरें माननीय गवर्नर श्रीमती उर्मिला सिंह जी से यात्रा के लिए शुभकामनाओं हेतु भेंट हुई उनके एवजे में अर्जुन सिंह से, उन्होंने बताया कि अभी तो साहिबा हाइनैस रैस्ट कर रही हैं और उठेंगी तो सीधे दिल्ली जाना है , फिलहाल समय नहीं मिल सकेगा। सी-एम- के पी-एस- से में अर्जुन का जवाब ज्यादा अच्छा लगा क्योंकि यह स्पष्ट मना थी ना कि झांसा। बहरहाल! यात्रा उनकी शुभकामनाओं की मोहताज नहीं है, इनकी शुभकामनाओं के बगैर सात यात्राएँ सफलता पूर्वक की जा चुकी है। हिमाचल भवन चण्डीगढ़ में सन्नीगिल व मनमोहन सिंह बाजवा जी के सहयोग से नक्ल के द्वारा बुलाए गए केबल टीवी ऑपरेटरों के साथ मीटिंग के बाद यात्रा शिमला के लिए रवाना हो गई।

पन्चकुला-कालका जी के रास्ते धरमपुर होते हुए सोलन में राजन (ऑपरेटर) के साथ भेंटवार्ता कर सीधे शिमला पहुंची यात्रा। शिमला प्रवेश से पूर्व ही एक अच्छी सी रीर्सोट एशियादि डाऊन’ में नाईट हाल्ट कर अगली सुबह एस-एन खन्ना जी के साथ लम्बी बातचीत एवं मीडिया क्लब ऑफ इण्डिया का हिमाचल प्रदेश का दायित्व सुपुर्दकर मुकेश मल्होत्र से भी मिलने का प्रयास किया गया, लेकिन अपनी आदत से मजबूर मल्होत्र जी ने फोन उठाना ही बंद कर दिया। यात्रा बिलासपुर के लिए बढ़ चली। वहां द्ववेदी भी मल्होत्र से भिन्न नहीं है। बिलासपुर में दो मीटर साइकिल सवार मि- निरन्जन (बंगलौर) एवं स- प्रभजोत सिंह (अम्बाला) टूरिस्ट मिल गए, जो कि मनाली-लेह-रोहतांग की यात्रा पर निकले हुए थे। बंगलौर से निरन्जन अकेले बंगलौर-कन्याकुमारी की यात्रा करते हुए अम्बाला पहुंचा है और अम्बाला से आगे की यात्रा में स-प्रभजोत सिंह को साथ में लिया है। वापसी में प्रभजोत सिंह अम्बाला रूक जाएगा एवं निरन्जन फिर से अकेले बंगलौर जाएगा। इन दोनों मोटर साईकिल सवारों को बिलासपुर में हमने मेहमान बनाया। रात्रि विश्राम साथ किया और अगले दिन दोनों अपनी आपनी यात्रा के लिए बढ़ चलें।

बिलासपुर में अगले दिन भी द्ववेदी जी नहीं मिल सके और यात्रा हमीरपुर के लिए रवाना हो गई। मोन्टी भाई हमीरपुर में यात्रा की प्रतीक्षा में थे, उनसे लम्बी वार्तालाप के बाद रविवार के कारण कांगड़ा-धर्मशाला में किसी से सम्पर्क ना हो पाने के कारण सीधे पठानकोट की ओर बढ़ चली यात्रा। इस मार्ग पर जगह-जगह गिरा पहाड़ो का मलबा बता रहा था कि किस कदर रास्ते अवरूद्ध रहे हैं। पठानकोट पहुंचते-पहुंचते काफी रात हो गई, अतः बिना किसी को तंग किए सीधे-होटल वीनस में नाईट हाल्ट कर सुबह वहां पठानकोट के ऑपरेटरों से मिलने का प्रयास किया, लेकिन नहीं मिल सके तब सीधे जम्मू पहुंची यात्रा। जम्मू में सुभाष चौधरी श्रीनगर गए हुए थे, लेकिन उनका यात्रा के स्वागत के लिए निर्देश दिया हुआ था। उनकी अनुपस्थिति में भी यात्रा के स्वागत की पूरी तैयारी की हुई थी, साथ ही वृक्षारोपड़ का भी बन्दोबस्त किया गया था। वृक्षारोपड़ के बाद डैस पर मीटिंग और फिर जम्मू से पठानकोट होते हुए अमृतसर के लिए वापसी।

भारत-पाकिस्तान दोनों के दरवाजे आमने-सामने, खोलने और बंद करने की विशिष्ट प्रक्रिया को साकार देखने का अवसर होता है। अपने-अपने ध्वज उतारने के साथ-साथ ध्वज के प्रति कितना समर्पण-सम्मान व त्याग की भावना है इसका भी स्पष्ट प्रदर्शन देखने को यहां मिलता है। एक ही देश के दो टुकड़े करने वालों की छाती पर सदैव यह रस्म ऐसा दर्शाती हैं कि आखिर कब तलक सियासत दान दोनों देशों की जनता को एक-दूसरे से आखिर कब तक कितना जुदा रख सकेंगे\

अमृतसर पहुंचते ही भारी बारिश का सामना करना पड़ा। बड़ी तूफानी बारिश थी चंहुओर पानी ही पानी भर गया था अमृतसर में। नाइट हाल्ट अमृतसर ही किया, अगली सुबह सबसे मिलने की कोशिश की गई, डैस पर बातें हुई और फिर हार्डवेयर इण्डस्ट्री में शार्प के डीलर से भेंट हुई, तत्पश्चात् बब्बी भाई ने रीट्रीट देखने के लिए अटारी-बाघा बार्डर का विशिष्ट प्रबंध करवाया। बाघा बार्डर पर सूर्यास्त पर ध्वज उतारने की प्रक्रिया को देखने के लिए रोजाना देशभर से लोग आते है। हजारों का हुजूम यहां देशभक्ति के जुनून में भावविभोर हो जाता है। देशप्रेम का एक अनूठा संगम यहां देखने को मिलता है। बार-बार आने के बाद भी हर बार यहां आने को मन करता है।

रोम-रोम देशभक्ति के जोश से पुलंकित हो जाता है यहां। यह दोनों देशों के आमने-सामने का नजारा होता है। भारत-पाकिस्तान दोनों के दरवाजे आमने-सामने, खोलने और बंद करने की विशिष्ट प्रक्रिया को साकार देखने का अवसर होता है। अपने-अपने ध्वज उतारने के साथ-साथ ध्वज के प्रति कितना समर्पण-सम्मान व त्याग की भावना है इसका भी स्पष्ट प्रदर्शन देखने को यहां मिलता है। एक ही देश के दो टुकड़े करने वालों की छाती पर सदैव यह रस्म ऐसा दर्शाती हैं कि आखिर कब तलक सियासत दान दोनों देशों की जनता को एक-दूसरे से आखिर कब तक कितना जुदा रख सकेंगे\ कोई दिन तो ऐसा आएगा कि बीच की ये दीवारे ही हट जाएंगी। बाघा बार्डर की रीट्रीट देखने जाने से पहले ही दिल्ली से अन्णू यात्रा के लिए कुछ ओर सामान लेकर वहां पहुंच गया।

सभी ने एक साथ ड्रिल देखी, फिर जीरो माइलस्टोन भी देखा और वापिस अमृतसर होकर जलंधर के लिए बढ़ चली यात्रा। अटारी-बाघा बार्डर से यात्रा की दो गाड़ियों और कुल छः जने हो गए। बाघा से अमृतसर होकर जलंधर पहुंचने में रात ज्यादा हो गई थी, लेकिन फास्टवे के जलन्धर प्रमुख कटारिया जी के सहयोग से वहां शंग्रीला होटल में बुकिंग हो गई थी अतः ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन थोड़ा सा होटल शंग्रीला के लिए भी यहां अवश्य लिखा जाता, परन्तु होटल मालिकों से बात हो गई और उन्होंने भविष्य में और बेहतर सेवाएं देने का आश्वासन दिया है अतः जलंधर से आगे बढ़ गई यात्रा। रात्रि विश्राम कर सुबह जलंधर में भाई दर्शन कपूर आदि के साथ डैस पर वार्तालाप के बाद यात्रा जलंधर से लुधियाना पहुंची। लुधियाना में फास्टवे प्रमुख श्री गुरदीप सिंह जी के साथ डिजिटल एैड्रेसिबल सिस्टम पर लम्बी वार्तालाप हुई, उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह से डैस में वह भारत के नम्बर वन स्थान पर अपने नेटवर्क को ले रहे है।

उनके साथ हुई लम्बी वार्तालाप पर अलग से लिखा जाएगा, लेकिन फास्टवे प्रमुख गुरदीप सिंह की बातों में पूरी तरह से केबल टीवी इण्डस्ट्री के बारे में परिपक्वता नजर आती हैं,वह इण्डस्ट्री की जमीनी हकीकत से पूरी तरह से वाकिफ हो चुके हैं एवं दूरदर्शिता के साथ एक सही दिशा में ले जा रहे हैं अपने आधीन नेटवर्क को फास्ट वे की ओर से चेतना यात्रा-8 की शुभकामनाओं में गुरदीप सिंह द्वारा भेंट किया गया एक लाख रूपए का चैक भी शामिल था। फास्ट वे में सलंग्न पंजाब केबल टीवी इण्डस्ट्री के कई पूर्व पिलर्स से भी वहां भेंट वार्ता हुई। पंजाब में केबल टीवी कम्युनिटी को एकता का मार्ग दिखाने वाले सन्नीगिल भी फास्टवे के एक मजबूत पिलर के रूप में दिखाई दिए जबकि बाजवा जी, राजभाई एवं राजा सहित अनेक पंजाब के पुराने दिग्गजों को भी फास्टवे का महत्वपूर्ण हिस्सा बने वहां देखा।

गुरदीप सिंह जी के साथ लम्बी वार्तालाप के कारण देर रात हो गई अतः रात्रि विश्राम फास्टवे की मेजबानी में लुधियाना ही रहा। फास्टवे के ऑफिस में ही दिल्ली से आए हुए कैटविजन के कुकरेजा जी से भी भेंट हुई, उनसे जानकारी मिली कि डैस के अर्न्तगत वह भी काफी कुछ कर रहे है। यह अच्छी बात है कि भारत के पूर्व हार्डवेयर मैन्युफैक्चर्स में से एक कैटविजन बदलती टैक्नालॉजी के अर्न्तगत स्वयं को भी अपग्रेड करते हुए ऑपरेटरों के साथ सम्पर्क सीधे रहे है। अगली सुबह भारत बंद की काल तकरीबन सभी विपक्षी दलों द्वारा की गई थीं, क्योंकि देश की जनता पर कमरतोड़ महंगाई के साथ-साथ भारत सरकार ने विदेशी निवेश के लिए भी फिरंगियों को बड़ा आकर्षक आमन्त्रण देने की घोषणा कर दी है।

एफडीआई के मुद्दे पर समूचा विपक्ष बिदका हुआ है अतः भारत बंद की घोषणा के कारण लुधियाना से आगे का आज का सफर कहां तक पहुंच सकेगा नहीं मालूम, लेकिन बंद के कारण यात्रा को वहीं रोकने की अपेक्षा आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया। भटिण्डा में एक मीटिंग के बाद यात्रा हरियाणा होेते हुए निर्विघ्न राजस्थान पहुंच गई। हालांकि अनेक प्रमुख मांगों पर बंद का प्रभाव देखने को मिला, लेकिन यात्रा गांवों के मार्ग से होते हुए आगे बढ़ती रही। इसी प्रकार से देररात बीकानेर पहुंच गई यात्रा, वहीं विश्राम किया। बीकानेर में ‘राजविलास पैलेस होटल में याकूब भाई का नाम लेने पर ही 50 परसेंट का डिस्काउंट मिल जाने से बड़ी राहत मिली। अगले दिन बीकानेर से सीधे जोधपुर पहुंची यात्रा। इस क्षेत्र में याकूब भाई का दूसरा भाई राजा मोहम्मद ही नेटवर्क चलाता है। मि- राजा मोहम्मद (याकूब के भाई) केबल टीवी व्यवसाय भी सम्भालते हैं। यहीं से राजस्थान का मरूस्थल भी आरम्भ हो जाता है। कपास की खेती कहीं-कहीं दिखाई देती हैं जबकि गर्मी अभी भी काफी है यहां, वहां महीपाल सिंह निम्बाना द्वारा यात्रा के स्वागत एवं पृथ्वी के बढ़ते तापमान के संदर्भ में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम का आयोजन रखा गया था।

महीपाल जी के साथ उनके परममित्र गौरव सारंग भी यात्रा के स्वागत में अपने ही अन्दाज में प्रतीक्षा रत मिलें। देर रात तक वहां आने-जाने वालों का सिलसिला चलता रहा और यात्रा वृतान्त भी जारी रहा। अगली सुबह सवेरे ही यात्रा के स्वागत-शुभकामना का कार्यक्रम आरम्भ हो गया। जोधपुर के सर्किट हाऊस के प्रांगण में कार्यक्रम का आयोजन रखा गया था। जोधपुर के प्रसिद्ध स्कूल सेन्ट ।ग्प्डै के छात्रें द्वारा यात्रा का पूरी गर्भजोशी के साथ स्वागत किया गया। पृथ्वी के बढ़ते जा रहे तापमान पर छात्रें को जानकारी के साथ उसे रोकने में उनकी भूमिका पर दिए गए संदेश को उन्होंने बड़ी गम्भीरता से ग्रहण किया। स्कूल डायरेक्टर आंनद जोर्ज सहित जोधपुर के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस अजय पाल लांबा द्वारा यात्रा की शुभकामनाओं के साथ झण्डी दिखला कर जोधपुर से आगे के लिए विदाई की गई।

वहां उपस्थित तमाम अन्य गण्मान्य व्यक्तियों ने भी यात्रा रवानगी में अपना पूरा सहयोग दिया। जोधपुर-पाली मार्ग पर स्थित एक गांव में बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर के प्रांगण में ग्राम पंचायत द्वारा यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। महिपाल सिंह निम्बाना एवं स्छ जलानी, (एक्स डायरेक्टर ैण्ठण्ठण्श्र) अपनी गाड़ियों से यात्रा के साथ-साथ जोधपुर से 70 किलोमीटर दूर पाली तक यात्रा में सहभागी बने। पाली जिला कलेक्टर नीरज के- पवन (प्।ै) डिस्ट्रीक्ट क्लब में यात्रा का स्वागत एवं वहां से आगे के लिए शुभकामनाओं सहित झण्डी दिखलाकर विदाई की गई। पाली के माननीय सांसद द्वारा भी यात्रा गर्मजोशी के साथ भव्य स्वागत एवं झण्डी दिखलाकर विदाई की गई। जिला कलेक्टर श्री बदरी राम जाखड एवं पूर्व विधायक भीमराज भाठी बहुत ही जवां कम आयु के कर्मयोगी प्रतीत हुए, उन्होंने बताया कि उन्होंने यहां प्रत्येक बेटी के नाम पर एक पौधा लगाने का अभियान शुरू किया है।

पौधे पर बाकायदा उसके नाम की टैकिंग होती है जिसके द्वारा वह लगाया जाता है, वहीं उसकी देखभाल भी करती है। अपनी तरह का यह एक अच्छा अभियान है जो ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम हैं पाली से स्वागत-सत्कार सहित विदाई लेकर यात्रा सीधे माऊण्ट आबू की ओर रवाना हो गई। महिपाल निम्बाना और उनके समस्त सहभागी पाली ही रूक गए वह यहां से वापिस जोधपुर जाएंगे। पाली से माऊण्ट आबू का रास्ता पिण्डवाड़ा होकर जाता है। पिण्डवाडा पहुंचना कभी बहुत कठिन हुआ करता था, क्योंकि बीच मार्ग में आदिवासियों का भी एक एसा टुकड़ा हुआ करता था, जो राहजनों से लूटमार भी किया करते थे।

हमने उस दौरान भी इस मार्ग से यात्रा की है, लेकिन फोरलेन हाईवे बन जाने के कारण नहीं मालूम कि वह तीर-कमान-तलवार वाले आदिवासी कहां चले गए। अब यह मार्ग बिल्कुल सुरक्षित हो गया है। आबू रोड़ पर स्थित ब्रहमकुमारी शान्तिवन कार्यक्रम में मीडिया पर चल रही गोष्ठी में सम्मिलित होकर अगली सुबह यात्रा राजस्थान से सीधे गुजरात की ओर बढ़ चली, लेकिन इससे पहले कि फोरलेन हाईवे पकड़े गाड़ी पंचर हो गई। पंचर हुआ टायर तो बदल लिया परन्तु अब नए टायर डलवाने का समय आ गया है, उम्मीद की गई थी कि आगे बड़ा शहर पालनपुर पड़ेगा वहीं नए टायर ले लेंगे, इस क्षेत्र का जीटीपीएल का दायित्व सम्भाल रहे मि- शैलेश भाई के साथ बराबर सम्पर्क बना रहा, ेउन्होंने ही इस मार्ग पर पूरा सहयोग दिया। होटल मंगलम में रात्रिविश्राम कर अगली सुबह सबसे पहले वहां टायर बदल गए गाड़ी में, क्योंकि अब स्थिति एर्मजेंसी वाली आ चुकी थी, फिर भी आबू रोड़ से भुज तक का साथ देकर उन टायरों ने काफी हिम्मत की थी। नए टायर डलवाने के बाद गाड़ी की ओर से अब पूरी बेफिक्री हो गई थी, अतः भुज से आगे की यात्रा बड़ी आरामदायक रही गाड़ी की ओर से। यही क्षेत्र कच्छ कहलाता है जिसके बारे में सदीनायक श्री अमिताभ बच्चन जी ने कहा है कि कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। वाकई वह सही कह रहे हैं अब हम भी मानते है कि कच्छ नहीं देखा तो वाकइ कुछ नहीं देखा।

हिस्टोरिकल कच्छ का जितना भी कुरेदेंगे उतनी ही कहानियां-इतिहास यहां दबे मिल जाएंगे, यह भारत का एक ऐसा प्राचीन क्षेत्र है जहां विश्वभर से तमाम व्यापारियों का आवा-गमन होता रहा है। राजे-रजवाड़ों का क्षेत्र कच्छ प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार शिकार हुआ हैं, लेकिन आज भी अपनी आन-बान और शान के साथ सारे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता है। अतः अमिताभ जी की ही भांति अब हम भी कहते हैं कि कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।

बिल्कुल भिन्न अनुभव, बिल्कुल अलग। यहां की सभ्यता पारिधान-खान-पान सब कुछ सबसे अलग। यहां की गाय के बड़े-बड़े सींग बहुत ही आकर्षक लगते हैं। यहां के वाहन जुगाड जो कि रायल एन फील्ड मोटर साईकिल से बनाए गए है उनका आकर्षक भी कम नहीं है और उनपर लदी सवारियों के बीच बैठा ड्राइवर तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि वह खड़ा होकर वाहन चला रहा हो। पुरूषों की तो तकरीबन सफेद रंग की ही वेशभूषा होती है लेकिन महिलाओं की वेशभूषा चटकीले आकर्षक रंगो में होती है। सभी पुरूष साफा भी पहने होते हैं, साथ ही उनके श्रृंगार और उनके द्वारा पहने गए आभूषण कहीं ओर देखने को नहीं मिलते है, जबकि कच्छ की महिलाओं की वेशभूषा-श्रृंगार-आभूषण अपना विशेष आकर्षण रखती है। सारी दुनिया से बिल्कुल अलग, एक खास अन्दाज है कच्छ का।

सोने-चांदी के आभूषण से युक्त महिलाएं कहीं भी स्वच्छंद रूप से आ जा सकती हैं, कोई उन जेवरों को झटकने वाला नहीं, कोई चेन स्नैचर नहीं होता है कच्छ में। हिस्टोरिकल कच्छ का जितना भी कुरेदेंगे उतनी ही कहानियां-इतिहास यहां दबे मिल जाएंगे, यह भारत का एक ऐसा प्राचीन क्षेत्र है जहां विश्वभर से तमाम व्यापारियों का आवा-गमन होता रहा है। राजे-रजवाड़ों का क्षेत्र कच्छ प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार शिकार हुआ हैं, लेकिन आज भी अपनी आन-बान और शान के साथ सारे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता है। अतः अमिताभ जी की ही भांति अब हम भी कहते हैं कि कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। कच्छ के एतिहासिक नगर लखपत-नारायण सरोवर और कोटेश्वर से अगला भाग शुरू किया जाएगा, फिलहाल कच्छ में ही है चेतना यात्रा-8।